लेखकNov 11, 2013 11:22 AMसभी पोस्ट देखें
और ख़ुदा ने उनकी किसमत में जि़ला वतनी न लिखा होता तो उन पर दुनिया में भी
(दूसरी तरह) अज़ाब करता और आख़ेरत में तो उन पर जहन्नुम का अज़ाब है ही
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सूरए अल हश्र
सूरए अल हश्र मक्का में नाजि़ल हुआ, और उसकी चैबीस (24) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
जो चीज़...
2 comments:
सुन्दर प्रस्तुति-
शुभकामनायें आदरणीय-
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