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चाय के ठेले पर विकास पुरूष
जिन किसानों की ज़मीनें विकास पुरूष ने बहकाकर पूंजीपतियों को लगभग मुफ़त ही नाम करवा दी थीं। ज़मीन खोकर खाने के लिए किसानों को पैसे की ज़रूरत पड़ी तो उन्हें पूंजीपतियों से भारी ब्याज पर क़र्ज़ लेना पड़ा। क़र्ज़ में दबकर किसी की पत्नी और किसी की बेटी को ब्याजख़ोर से दबना पड़ा और किसी को अपने गले में फंदा डालकर दुनिया से उठ जाना पड़ा।
विकास पुरूष ने गांव के लिए जो कुछ किया है, उसे याद करके गांव के लोगों की आंखे भर आती हैं, आदर से नहीं बल्कि दर्द के मारे। लालवाणी जी भी कोठी में पड़े रोते रहते हैं। सोचते हैं कि जो सत्ता उनके हाथ ही नहीं आई, उसके लिए उन्होंने बेशुमार लोगों को मरवा दिया। अब अंत समय है। मरने के बाद पुण्य ही काम आना है और वह पाप के मुक़ाबले बहुत कम है। इसी वजह से अड्डू दादा आजकल आहत हैं।
विकास पुरूष आहत है या नहीं, हमें पता नहीं। किसी भाई बहन को उसका हाल चाल पता चले तो हमें भी बताना।