हमें परिचर्चा बहुत पसंद है और इसी नाम से एक ब्लॉग भी रश्मि प्रभा जी ने बना लिया है । आज जब हमने उनके ब्लॉग का मुआयना किया तो 3 पोस्ट्स ऐसी निकलीं जिन पर हमारा एक भी कमेँट नहीं था
एक चर्चा नफरत को लेकर थी । हमने अपनी राय जाहिर करते हुए कहा कि
'नफरत को भारतीय साहित्य में घृणित माना गया है जो कि एक ग़लत बात है । नफरत हमारे स्वभाव का हिस्सा है । जहाँ भी हम कोई बुराई देखते हैं उसके लिए हमारे मन में नफरत स्वाभाविक रूप से उपजती है । जो आदमी जानते बूझते अपनी नाजायज़ मंशा की खातिर सामूहिक नरसंहार करता है उसे हम नफरत के सिवा कुछ और दे ही नहीं सकते और अगर दिया जा सकता है तो आप कसाब को देकर दिखाएँ ।
नफरत को छोड़ना नहीं है बल्कि हमें उसका सही जगह और सही तरीके से इस्तेमाल करना है । मैं यही करता हूँ और अपने शिष्यों को भी यही सिखाता हूं। मनुष्य का सहज स्वाभाविक धर्म यही है ।'
इससे पिछली पोस्ट पर अहिंसा पर जनाब नरेंद्र व्यास जी कह रहे थे कि बुद्ध जी के कहने की वजह से भारत के लोगों ने मांस खाना शुरू कर दिया वर्ना तो बात यूँ नहीं यूँ थी ।
हमने इस पर भी अपना नजरिया दे दिया । जो बात हमने कही उसे देखने के लिए आपको जाना होगा रश्मि जी के ब्लॉग 'परिचर्चा' पर । इसी ब्लॉग पर साइड में लिंक आपकी सुविधा के लिए पहले से ही मौजूद है । तो फिर देर किस बात की ?
दौड़ कर देख आइए न कि कौन क्या कह रहा है ?
और अपनी राय भी देते आइएगा ।
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