दिमाग़ हल्का हुआ तो पेट ने भी हल्का होने की ख्वाहिश ज़ाहिर की। लिहाज़ा हम अपने किचन गार्डन की तरफ़ चल दिए। एक शौचालय यहां भी बना हुआ है। यहां पूरी तरह प्राइवेसी है। दरअस्ल हम बचपन से ही योगी स्वभाव के आदमी हैं।
योग की सबसे अच्छी शिक्षक ‘मां‘ होती है। योग में सबसे पहले शौच और आसन की सिद्धि करनी अनिवार्य है। अगर मनुष्य यम-नियम का पाबंद नहीं है, उसका अंतःकरण पवित्र नहीं है, वह धैर्यपूर्वक एक आसन में स्थिर नहीं हो सकता तो उसे योग की सिद्धि कभी हो ही नहीं सकती। वह मां ही तो है जो बच्चे को सबसे पहले पॉटी करना सिखाती है, उसे पॉटी के लिए बैठना सिखाती है, उसे पवित्र रहना सिखाती है। योग की प्राथमिक शिक्षा यहीं से शुरू हो जाती है। हरेक इंसान का पहला गुरू उसकी मां होती है। इंसान बड़ा होता है तो उसे अपना अभ्यास भी बढ़ा देना चाहिए। अब उसे कोशिश करनी चाहिए कि शरीर की तरह उसके मन में भी गंदे विचार जमा न होने पाएं। लेकिन इंसान अपने मन को निर्मल बनाने पर ध्यान ही नहीं देता। हम जब भी शौच के लिए जाएं तभी हम अपने मन को भी बुरे विचारों से पाक करने की कोशिश करें। इस तरह एक ही समय में हमें दो लाभ हो सकते हैं। इस समय शरीर खुद को साफ़ करने में जितना समय लेता है, उतने समय में हम कोई और काम तो कर ही नहीं सकते। लिहाज़ा उतने समय में हमें अपने मन को ही टटोल लेना चाहिए कि हमारे मन में कोई बुरा विचार तो नहीं आ गया है। हम नाहक़ किसी को सता तो नहीं रहे हैं ?
किसी का कोई हक़ तो हमने नहीं मार लिया है ?
अगर हम ढंग से शौच करना ही सीख लें तो हमारी मां और बहनों की आर्थिक स्थिति ठीक हो जाएगी, मां अपने घर में और बहनें अपनी ससुराल में खुश ही रहेंगी। हमें शौच करना भी आज तक ढंग से नहीं आया इसीलिए आज मां अपने घर में ही उपेक्षित है और बहनें अपनी ससुराल में भाई की राह तक रही हैं और कभी वे मायके आ भी जाती हैं तो उन्हें यही अहसास बार बार दिलाया जाता है कि ब्याह के बाद अब तेरा यहां कुछ नहीं है। यह एक बुराई है जो हर घर में आम है। कमज़ोर का हक़ मारकर कोई समाज कभी खुशहाल नहीं हो सकता। लिहाज़ा हम भी आज तक खुशहाल न हो पाए। आज हमारे समाज में कन्या को गर्भ में ही मार दिया जाता है और जिन्हें मार नहीं पाते तो उनकी ज़िंदगी मरने से बदतर कर दी जाती है।
बदन की पाकी के साथ दिल को भी पाक करना चाहिए। जितनी देर में हमने किचन गार्डन पार किया उतनी ही देर में यह सब ख़याल तेज़ी से आकर चले गए। हम शौचालय में दाखि़ल होकर ‘शौचासन‘ में बैठ गए। यह आसन मन को बड़ा प्रफुल्लित करता है। इसे बच्चे से लेकर बूढ़ा तक हरेक कर सकता है, यहां तक कि किसी भी रोग का रोगी और गर्भवती स्त्रियां भी निःशंक होकर इस आसन को कर सकती हैं।
योग की सबसे अच्छी शिक्षक ‘मां‘ होती है। योग में सबसे पहले शौच और आसन की सिद्धि करनी अनिवार्य है। अगर मनुष्य यम-नियम का पाबंद नहीं है, उसका अंतःकरण पवित्र नहीं है, वह धैर्यपूर्वक एक आसन में स्थिर नहीं हो सकता तो उसे योग की सिद्धि कभी हो ही नहीं सकती। वह मां ही तो है जो बच्चे को सबसे पहले पॉटी करना सिखाती है, उसे पॉटी के लिए बैठना सिखाती है, उसे पवित्र रहना सिखाती है। योग की प्राथमिक शिक्षा यहीं से शुरू हो जाती है। हरेक इंसान का पहला गुरू उसकी मां होती है। इंसान बड़ा होता है तो उसे अपना अभ्यास भी बढ़ा देना चाहिए। अब उसे कोशिश करनी चाहिए कि शरीर की तरह उसके मन में भी गंदे विचार जमा न होने पाएं। लेकिन इंसान अपने मन को निर्मल बनाने पर ध्यान ही नहीं देता। हम जब भी शौच के लिए जाएं तभी हम अपने मन को भी बुरे विचारों से पाक करने की कोशिश करें। इस तरह एक ही समय में हमें दो लाभ हो सकते हैं। इस समय शरीर खुद को साफ़ करने में जितना समय लेता है, उतने समय में हम कोई और काम तो कर ही नहीं सकते। लिहाज़ा उतने समय में हमें अपने मन को ही टटोल लेना चाहिए कि हमारे मन में कोई बुरा विचार तो नहीं आ गया है। हम नाहक़ किसी को सता तो नहीं रहे हैं ?
किसी का कोई हक़ तो हमने नहीं मार लिया है ?
अगर हम ढंग से शौच करना ही सीख लें तो हमारी मां और बहनों की आर्थिक स्थिति ठीक हो जाएगी, मां अपने घर में और बहनें अपनी ससुराल में खुश ही रहेंगी। हमें शौच करना भी आज तक ढंग से नहीं आया इसीलिए आज मां अपने घर में ही उपेक्षित है और बहनें अपनी ससुराल में भाई की राह तक रही हैं और कभी वे मायके आ भी जाती हैं तो उन्हें यही अहसास बार बार दिलाया जाता है कि ब्याह के बाद अब तेरा यहां कुछ नहीं है। यह एक बुराई है जो हर घर में आम है। कमज़ोर का हक़ मारकर कोई समाज कभी खुशहाल नहीं हो सकता। लिहाज़ा हम भी आज तक खुशहाल न हो पाए। आज हमारे समाज में कन्या को गर्भ में ही मार दिया जाता है और जिन्हें मार नहीं पाते तो उनकी ज़िंदगी मरने से बदतर कर दी जाती है।
बदन की पाकी के साथ दिल को भी पाक करना चाहिए। जितनी देर में हमने किचन गार्डन पार किया उतनी ही देर में यह सब ख़याल तेज़ी से आकर चले गए। हम शौचालय में दाखि़ल होकर ‘शौचासन‘ में बैठ गए। यह आसन मन को बड़ा प्रफुल्लित करता है। इसे बच्चे से लेकर बूढ़ा तक हरेक कर सकता है, यहां तक कि किसी भी रोग का रोगी और गर्भवती स्त्रियां भी निःशंक होकर इस आसन को कर सकती हैं।
और बताएं की हमारी वाणी ने इस पोस्ट को आज हित होने के बावुजूद क्यों हटा दिया अपने बोर्ड से ?
यह है खुला Virtual Corruption.
0 comments:
Post a Comment