ब्लॉग जगत में जो कुछ चल रहा है वह इतना है कि
वे हमारे बीच के सुनहरे उभरते हीरे को इस्तेमाल करते हैं और इस्तेमाल होने के बाद उसे फेंक देते है. यही हमेशा से चलता आ रहा है.
वे हमारे बीच के सुनहरे उभरते हीरे को इस्तेमाल करते हैं और इस्तेमाल होने के बाद उसे फेंक देते है. यही हमेशा से चलता आ रहा है.
वैसे एक जानकारी देता चलूँ कि हमारीवाणी.कॉम बनाने का बुनियादी concept मैंने अर्थात सलीम ख़ान ने दिया था और ब्लॉग जगत के जिस शख्स ने हमारीवाणी.कॉम का नामकरण किया था उससे पहले उसने ही हमारीअंजुमन.कॉम का भी नामकरण किया था....!
पता है वह शख्स कौन है ?
ब्लॉग पितामह,
ब्लॉगर श्री जनाब मुहम्मद उमर कैरानवी साहब !!!
अरे ऐ एग्रीगेटर के मालिक ज़रा सोचो तुम किसलिए ब्लॉग में आये थे और क्या करने लगे??? जिस तरह अल्लाह इंसान से पूछता है कि वह दुनिया में किसलिए आया है और वह क्या कर रहा है ?,
क्या उसे अन्जाम की फिक्र नहीं है ?
... तो यकीनन वह दिन आएगा जब सारा सच सामने आ जायेगा.
क्या उसे अन्जाम की फिक्र नहीं है ?
... तो यकीनन वह दिन आएगा जब सारा सच सामने आ जायेगा.
इसी तरह मैं इस एग्रीगेटर के मालिक से पूछ्ना चाहता हूँ कि तुम किस लिए ब्लॉग में लाये गए थे और किस लिए तुम ब्लॉग में आये थे और क्या करने लगे...???
5 comments:
यही जान जाते सब लोग तो इतनी हाय-तोबा नहीं मचती यहाँ पर!
मैं पूरे प्रकरण से अवगत नहीं हूं। केवल इतना कहना चाहता हूं कि हर व्यक्ति को उसके किए का श्रेय मिलना चाहिए और हर किसी को कतिपय मर्यादाओं का पालन अवश्य करना चाहिए।
अनवर साहब की पोस्ट पढते पढते अचानक इस पोस्ट पर नज़र पडी, आपने मुझे 'ब्लॉग पितामह' लिखा तो सही या गलत अपनी जानकारी के अनुसार लिखा है, लेकिन हैरत है कि किसी को एतराज नहीं?
@ भाई सलीम ख़ान साहब ! हमारी वाणी का कॉन्सेप्ट आपका था, यह सच है और यह भी सच है कि ‘हमारी वाणी‘ नाम रखा था जनाब उमर कैरानवी साहब ने और यह भी सच है इसके फ़ीचर्स तय करने में मेरी सलाह ली गई थी। इसे डिज़ायन किया है शाहनवाज़ भाई ने। हमारी वाणी ने तरक्क़ी की और जब शाहनवाज़ भाई को लगा कि अब काम जम गया है तो फिर उन्हें याद आया कि ये तीनों तो मुसलमान हैं। इन तीन मुसलमानों की वजह से नास्तिकों को जोड़ने में दिक्क़त हो सकती है। इसी सोच के साथ के साथ वह नास्तिकों से जुड़ते चले गए और हमसे कटते चले गए। हमसे कट जाते तो भी किसी हद तक ठीक था लेकिन फिर उन्होंने हमारे ब्लॉग भी काटने शुरू कर दिए और पोस्ट भी। इससे आगे बढ़कर फिर उन्होंने हमारी सूचनाएं भी लीक करनी शुरू कर दीं। यह सब कुछ हमारी वाणी के लिए गंभीर ख़तरा है। हमने समय समय पर शाहनवाज़ भाई को समझाया लेकिन उन्हें लगता है कि वे दिल्ली में रहते हैं तो उनकी खोपड़ी भी हमसे बड़ी है। वह नहीं माने तो हमने हमारी वाणी के दो और मालिकों को सारी सूरते हाल से आगाह किया और ख़ुद को हमारी वाणी से अलग कर लिया।
6-7 हिट के लिए इतनी सिरदर्दी से क्या फ़ायदा ?
इसके बाद हमने अपने ब्लॉग्स को फ़ेसबुक के नेटवर्क में शामिल कर लिया और अभी पाठक बढ़ाने के लिए कुछ नई जगहों पर और भी जोड़ दिया जाएगा। इस तरह हमारे पाठक भी बढ़ जाएंगे और हमें रोज़ रोज़ की साज़िशों से छुटकारा भी शायद मिल जाएगा।
आपकी पोस्ट सामयिक है, अच्छी लगी।
हमारी यह पोस्ट भी आपको अच्छी लगेगी।
हमारी वाणी के दो मालिकों से चार बातें
हैरत है...
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