Monday, July 25, 2011

क्या महिलाएं अपने से कम पढ़े -लिखे और कम हैसियत-दार से शादी के लिए तैयार हैं ?

भारतीय समाज जहाँ एक उक्ति आमतौर पर प्रचलित है कि-''बहू अपने से नीचे घर से लाओ और बेटी को अपने से ऊँचे घर में दो .''पता है ये किस लिए  सिर्फ इसलिए कि जिससे बहु और बेटी अपने अपने घर में सेवा भाव लेकर जाएँ .आज इस उक्ति का अनुसरण कितने लोग कर रहे हैं मेरे विचार में शायद कुछ दिल के हाथों मजबूर ही इसका अनुसरण कर रहे हैं नहीं तो अधिकांशतया आज के युवक अपने से ऊँचे घरों की लड़कियों से ही विवाह की इच्छा रखते हैं किन्तु यदि आज की युवतियों की बात करें तो स्थिति थोड़ी भिन्न कही जा सकती है .युवतियां जहाँ उनकी इच्छा कहें या राय पूछी जाती है या जहाँ वे अपना जीवनसाथी स्वयं चुनती है वहां उनकी प्रमुखता एक ऐसे युवक की रहती है जो उन्हें बहुत प्यार करे व् उनकी इच्छा के अनुसार ही चलने को तैयार हो .ऐसा केवल आज ही नहीं हो रहा है पहले भी ऐसा हुआ है .भारत का सबसे लोकप्रिय राजनीतिक परिवार में इंदिरा गाँधी और प्रियंका गाँधी दोनों ही के विवाह प्रेम विवाह हैं और दोनों ही की तुलना में  उनके पति का रसूख यदि कहा जाये तो कुछ भी नहीं है .आज योग्यता पढाई लिखाई व् रसूख पर हावी हो रही है और मेरे विचार में युवतियां युवकों की योग्यता को अपने जीवनसाथी के चयन में ज्यादा तरजीह दे रही हैं .इसके साथ ही साथ आज दो बातें जो आज के युवकों के लिए युवतियों की पसंद में सम्मिलित हो चुकी हैं वे हैं युवक की अधिक तनख्वाह व् उसका अपने घर से अलग रहना क्योंकि आम तौर पर आज की युवतियां अपने जीवनसाथी के परिवार की जिम्मेदारी एक बोझ स्वीकार कर चलती हैं क्योंकि आज भारत में लगभग एकल परिवार का चलन है और अकेले परिवार में रहने वाले बच्चे जब अपने माँ-बाप को उनके माँ-बाप से अलग चैन से रहते देखते हैं तो अपने भविष्य में भी पहले से ही पृथक रहने की ही सोचकर चलते हैं और अपने जीवनसाथी के परिवार को मात्र एक बोझ मानते हैं इसीलिए जहाँ तक मेरा विचार है आज की युवतियां अपने जीवन साथी की अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी और उसके अलग रहने को महत्व देती हैं वहीँ आपका क्या विचार है ?
आप अपने विचारों से टिप्पणी के माध्यम से अवगत कराएँ .
                       शालिनी कौशिक
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7 comments:

रविकर said...

क्या महिलाएं अपने से कम पढ़े -लिखे और कम हैसियत दार से शादी के लिए तैयार हैं ?

बराबरी के इस दौर में प्राय: महिलायें शादी अपनी बराबरी या अपने से अधिक पढ़े-लिखे और रसूखदार पुरुषों से ही करने की सोचती हैं ||
इसमें उनके अभिभावक भी शामिल हैं ||

हाँ कुछ अपवाद हैं ||

जैसे प्रगाढ़ प्रेम-विवाह ||
यहाँ बेमेल शादियाँ भी देखने को मिली हैं ||

हाँ एक बात और ---
एक चर्चित मंच की नारी वादी महिला को अगर पति चुनना होगा तो-----
तो अंदाजा लगाना मुश्किल है की वो क्या करेंगी ||

अच्छी चर्चा का आगाज ||

शुरूआती टिप्पणी कर प्रसन्न हूँ ||

आभार ||

Shikha Kaushik said...

यह व्यक्ति -व्यक्ति पर निर्भर है .उसे कैसे संस्कार मिले हैं ?यह भी इस मामले में महत्व रखता है .जिसके लिए पैसा ही सब कुछ है वो प्रेम के भाव को नहीं जान पाता इसलिए वो तो पैसे को महत्व देगा किन्तु भावना प्रधान के लिए प्रेम ज्यादा महत्व रखता है .सोच पर निर्भर है सब .

रविकर said...

क्या महिलाएं अपने से कम पढ़े -लिखे और कम हैसियत दार से शादी के लिए तैयार हैं ?

Please correct -- कम

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सोचने को बाध्य करती हुई पोस्ट!

DR. ANWER JAMAL said...

आपके नए ब्लॉग का स्वागत है
आपने बहुत अच्छा मुददा चुना है और उस पर अपनी राय रखकर और भी अच्छा किया है और इससे भी ज़्यादा अच्छा किया है आपने एक नया ब्लॉग बनाकर । ‘भारतीय नारी‘ के ज़रिये अब आप सही बात खुलकर कह सकती हैं। आर्थिक रूप से भारतीय नारी को सशक्त बनाने के साथ साथ उसे नैतिक रूप से सशक्त बनाने की भी ज़रूरत है जिसे कि नारी की आज़ादी के नाम पर शोर मचाने वाली अंग्रेज़ियतज़दा औरतें प्रायः नज़रअंदाज़ कर देती हैं और कहने लगती हैं कि आप मर्द हैं लिहाज़ा आप औरत को यह मत बताइये कि वह क्या करे और क्या नहीं ?
यह कोई लॉजिक नहीं है।
सही बात कोई भी किसी को बता सकता है। औरत भी सही बात मर्दों को बता सकती है और इसी तरह मर्द भी सही बात औरतों को बता सकता है। शराब पीकर देर रात तक गुलछर्रे उड़ाऊ पार्टियों में अपने ही जैसे मर्दों के साथ सिगरेट के छल्ले छोड़ने वाली औरतों को इस उसूल के मानने से ही घुटन सी होने लगती है।
ठीक है, अगर वे नहीं मानना चाहती हैं किसी सही बात को तो न मानें लेकिन फिर सारी औरतों की ठेकेदार बनकर मर्दों से पंगेबाज़ी करना तो छोड़ दें।

आपके नए ब्लॉग का स्वागत है और हर तरह से हम उसके समर्थन में हैं।
इसी के साथ हम आपको बता दें कि हमारे सारे ही मंच उसके सभी सदस्यों के लिए खुले हुए हैं, उन्हें वे अपने विवेक के अनुसार बेहतर तरीक़े से जैसे चाहे वैसे इस्तेमाल कर सकते हैं। अपने ब्लॉगर सदस्यों की सुविधा के लिए ब्लॉग्स के नियम बदले भी जा सकते हैं। असली बात यह है कि हमारे ब्लॉगर सदस्यों को ज़्यादा से ज़्यादा आज़ादी हो और नियम की पाबंदी के नाम पर अपनी ज़ाती पसंद नापसंद न थोपी जाए।
जो लोग ब्लॉगिंग की प्रकृति तक से वाक़िफ़ नहीं हैं वे गुरू बनकर अपनी हांक रहे हैं। इससे सत्य को सामने लाने का मिशन बाधित हो रहा है। संकीर्णता छोड़ना ब्लॉगिंग की बुनियादी शर्त है। आगे की तरक्क़ी उसके बाद ही संभव है।

धन्यवाद !

डा श्याम गुप्त said...

कोई नियम नहीं बन् सकता इस सार्वकालिक चिंतनीय व विविध रूपेण व्याख्यायित विषय पर.....वास्तव में तो यह सदाचरण व सत्याचरण का विषय है जो दोनों ओर से प्रभावी होना चाहिए ....किसी को भी सशक्त बनाने की आवश्यकता नहीं है नारी सदा से ही सशक्त है ....आवश्यकता है दोनों ओर से शुचि, सम्यग,यथानुसार व्यवहार की, विशवास व मर्यादा की रक्षा की....

संजय भास्‍कर said...

....सोच पर निर्भर है

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3- क्या है प्यार का आवश्यक उपकरण ?
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8- बेवफा छोड़ के जाता है चला जा
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19- दुनिया में सबसे ज्यादा शादियाँ करने वाला कौन है?
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20 - ब्लॉगर्स मीट अब ब्लॉग पर आयोजित हुआ करेगी और वह भी वीकली Bloggers' Meet Weekly
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22- इसलाम में आर्थिक व्यवस्था के मार्गदर्शक सिद्धांत
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