आज के कुछ पत्रकार कुत्ते हैं या शेर में समझ नहीं पाया ...
भाइयों और खासकर पत्रकार भाइयों मेरी किसी भी बात का कोई भी प्लीज़ बुरा ना माना क्योंकि में खुद भी इस जमात में शामिल हूँ और जो भी बात मेरे जरिये कहलवाई जा रही है वोह आप जेसे लोगों के लियें नहीं केवल बीस प्रतिशत मठाधीश पत्रकारों के लियें है .........दोस्तों कल प्रेस क्लब में एक कार्यक्रम के दोरान चर्चा चल रही थी के आज के पत्रकार मालिक के गुलाम और इशारे पर चलने वाले सर्कस के शज़र हो गए हैं ,,एक भाई ने कहा के पत्रकार पहले शेर हुआ करते थे और जंगल के राजा की तरह सभी लोग उनके सम्मान में रहते थे लेकिन आज कुछ शेर झो पत्रकार हैं वोह चिड़िया घर के शेर हो गए हैं और कुछ हैं के मालिकों के नोकर बन कर उनके इशारे पर सर्कस के शेर की तरह इशारे कर रहे हैं ..यह बात चल ही रही थे के एक लघु समाचार पात्र से जुड़े भाई ने कहा के नहीं शेर नहीं कुछ पत्रकार तो आजकल कुत्ते से भी बुरे हो गए है ..भाई पत्रकार की पत्रकारों के लियें इस प्रतिक्रिया से सभी उखड गए और पूंछने लगे ऐसा केसे कहा जा रहा है ...बस फिर किया था छोटे पत्रकार जी ने बढ़ी बातें करना शुरू की पहले तो उन्होंने ने कुत्तों की किसमे और फिर उनके लड़ने का अंदाज़ अपनी अपनी गली में खुद के शेर होने के अहसास की प्रव्रत्ति के बारे में बताया और कहा के कोई भी कुत्ता दुसरे कुत्ते को पसंद नहीं करता है और गली के कुत्ते उसे दूर भगा भगा कर मारते हैं ..भाई पत्रकार ने उदाहरण दिया हाल ही में कोटा में राजस्थान पत्रिका के सीधे साधे मिशनरी पत्रकार के साथ पुलिस अधिकारी ने अभद्रता की और इस अभद्रता के बाद पत्रकारों के जो रोल रहे वोह देखने लायक थे एक बढ़े समाचार पत्र भास्कर ने तो इस मामले में खबर ही नहीं छापी और दुसरे अख़बारों ने इस खबर को समेत कर रख दिया ...हाल ही में एक छोटे पत्रकार असलम रोमी ने उनके अख़बार जगत के अपराध का दस साला जश्न मनाया ..जयपुर में मुख्यमंत्री जी की उपस्थिति में वेद व्यास जी पत्रकार ने कार्यक्रम किया लेकिन अख़बारों और मिडिया चेनल ने इस मामले में खबर ही प्रकाशित नहीं की ..कोटा में असलम रोमी जगत के अपराध के कार्यक्रम में तो कुछ लोगों ने हालत यह बना दिए के कार्यक्रम में अतिथि गन भी नहीं आयें और कोई पत्रकार इस कार्यक्रम में नहीं जाए ..बस इन उदाहरणों से हाँ समझ गए के हमारा भाई पत्रकार इन दिनों पत्रकारिता में कुत्तों की तरह से चल रही लड़ाई और पत्रकारों की परस्पर स्पर्धा में इर्ष्या के कारण ऐसा हो रहा है और इस लड़ाई में देश के अस्सी फीसदी पत्रकार भी बदनाम हो रहे हैं ..तो मेरे भाइयों पत्रकार साथियों प्लीज़ अगर हो सके तो मुझ पर नाराज़ हुए बगेर इस मामले को गंभीरता से ले के आखिर शहर में किसी के थूकने की भी खबर जब अख़बार में आती है तब पत्रकार साथियों के कार्यक्रम की खबर , प्रेस क्लब की खबर और पत्रकारों को कोई पुरस्कार या उपलब्धि मिलती है तो उसकी खबर क्यूँ प्रकाशित नहीं की जाती इस पर चिंतन पर मनन कर इसमें सुधार की जरूरत है ..........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
2 comments:
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
पत्रकार शेरदिल भी हैं जैसे कि जेडे और सत्ता के दलाल भी हैं। जिसके जैसे हालात हैं और जैसा चरित्र है वैसा ही वह है।
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