केरल के मंदिर से 1 लाख करोड़ से ज़्यादा का ख़ज़ाना मिला है और दीगर मंदिरों में लाखों करोड़ के ख़ज़ाने हैं। शंकराचार्य सोने के सिंहासन पर बैठते हैं और पूरी दुनिया में वह अकेले आदमी हैं जिसके पास सोने का सिंहासन है। जब वह मरते हैं तो उन्हें स्नान भी सोने के तख्ते पर दिया जाता है।
एक तरफ़ तो इन धर्म स्थलों के पास इतने ख़ज़ाने हैं और दूसरी तरफ़ हाल यह है कि
संस्कृत का दैनिक समाचार पत्र पैसे की तंगी का शिकार है।
जब माल भी है और ख़र्च करने के लिए मद भी है तो आज तक मंदिरों का यह धन संस्कृत के उत्थान में क्यों न लगाया गया ?
मंदिर और संस्कृत के नाम पर राजनीति करने वाले कहां हैं ?
वे आखि़र क्या कर रहे हैं ?
जब यह देखने के लिए ब्लॉग्स टटोले गए तो यह देखकर ताज्जुब हुआ कि वतन के राष्ट्रवादी रखवाले संस्कृत के बजाय हत्या के आरोपियों को संरक्षण दे रहे हैं।
आप भी देख सकते हैं और देखना चाहिए ताकि आप जान सकें कि देश के पास माल भी और मद भी है लेकिन सही मद में माल को तरीक़े से ख़र्च करने वाले बहुत ही कम हैं और वे तो हैं ही नहीं जो दावा करते हैं कि हुकूमत हमारी ही होनी चाहिए।
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इन लोगों के पास संस्कृत दैनिक दो दान देने के लिए तो पैसे निकलते नहीं हैं लेकिनस्वामी अग्निवेश को क़त्ल करने के लिए 10 लाख रूपया देने का ऐलान कर दिया।
आप ख़ुद सोचिए !!!
1 comments:
bahut kub kaha aap ne
आप का बलाँग मूझे पढ कर अच्छा लगा , मैं भी एक बलाँग खोली हू
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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