एक तथ्यपरक चर्चा बेहतर भविष्य के लिए
हमारी भूलें : आहार व्यवहार की अपवित्रता - 2
आहार व्यवहार की अपवित्रता भाग - १ से आगे..............व्यवहार में पवित्रतता लाने के लिए आहार की पवित्रता अत्यंत आवश्यक है| कहा गया है कि – “ जैसा अन्न वैसा मन”| जिस प्रकार का हम आहार करते है उसी प्रकार का मन बनने का आशय है कि यदि हमारा आहार तामस है तो मन उससे प्रभावित होकर अहंकार के पक्ष में निर्णय करेगा व यदि आहार सात्विक है तो मन सदा बुद्धि के अनुकूल रहकर हमको तर्क संगत विकासशील मार्ग अग्रसर करता रहेगा|
इसी विषय पर यहां भी चर्चा जारी है.
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1 comments:
प्रेरणादायक प्रस्तुति के लिये धन्यबाद ..!
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