नुक्कड़ पर दीपक भाजपाई उर्फ़ संघ वादी खड़े हो कर चिल्ला रहे थे - " ऐ भाई संघ का समर्थन ले लो भाई ।" हमने पूछ लिया - "" जिसको समर्थन देना है, उसी से डाइरेक्ट जाकर क्यों नही कहते।" दीपक बाबू फ़ट पड़े - "वो ले ही नही रहा, लेता तो क्या बात थी।" हम अचरज में पड़ गये,
...हमने कहा - "ये कैसा समर्थन है दीपक बाबू, मुंह में राम बगल में छुरी, एक तरफ़ गले पड़ाउ समर्थन देने की बात करते हो। दूसरी ओर सायबर ब्रिगेड को लगा रखा है कि सुबह शाम अन्ना हजारे और उसकी टीम को कोसो, क्या चक्कर है रे भाई।"
...हमने कहा - "भाई तुम लोग गांधी का स्वदेशी चुरा लिये, खादी चुरा लिये, हे राम तक चुरा लिये, चश्मा क्यों नही चुराये। चश्मा चुरा लेते तो साफ़ साफ़ नजर आता कि हिंदुओ का हित किसमे है ? क्यों विरोधाभासी विचारधारा अपनाते हो।
...दीपक भाजपाई कम संघी भड़क उठे - " जब गधे के कानो में हवा भर जाती है तो वो इधर से उधर दौड़ने लगता है ....यही हाल भारत की मूर्ख जनता का हो चला है ..... इन निष्कृष्टों को हमेशा कुछ ऐसा चाहिए जिसमे कुछ करना न पड़े और इनकी देशभक्ति के ढोंग को दिखाने के लिए आयाम मिल जाये। गांधी ने भी यही सोचकर चरखा घुमाते हुये ,
...हमने कहा- "रे भाई हिंदूओ के स्वयंभू ठेकेदार हम बता रहे कि आपको तकलीफ़ क्या है। आपकी शाखाओं मे कौंवे बोल रहे हैं। आपके बुलाये लोग एकत्रित नही हो रहे तो दूसरो के सर पर सवार होकर आपको अपना एजेंडा पूरा करना है।
...दीपक संघी बोले -"हमे आप के जैसे छद्म धर्मनिरपेक्ष सिकुलर बिकाउ मीडिया के भांड, देशद्रोही लोगो की नसीहत नही चाहिये। हम अब इस देश में हिंदुत्व की लहर उठा कर रहेंगे और इस देश से आप जैसे लोगो को भगा कर रहेंगे।"
इतना कह दीपक बाबू पैर पटकते चल दिये और हम सिर खुजाते खड़े रह गये कि
इतना कह दीपक बाबू पैर पटकते चल दिये और हम सिर खुजाते खड़े रह गये कि
... इनके मुद्दे बटवारे के समय के हिंदुस्तान, पाकिस्तान पर अटके हैं। गांधी मर गये, गोडसे मर गये। लेकिन ये भाई लोग है कि उस समय की सोच पर ही अटके हैं।
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1 comments:
जनता जगे,अथवा फिर-फिर छले जाने के लिए तैयार रहे।
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