खून में डूबे हुए थे रास्ते सब इस नगर के.
हम जो गलियों में छुपे थे, घाट के थे और न घर के.
ठीक था सबकुछ यहां तो लोग अपनी हांकते थे
खतरा मंडराने लगा तो चल दिए इक-एक कर के.
हादिसा जब कोई गुज़रा या लुटा जब दिल का चैन
यूं लगा कि कोई रावण ले गया सीता को हर के.
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1 comments:
खून से जिसने रँगा था,
इस नगर के रास्तों को।
देखियेगा आज वह,
मंत्री बना सरकार में।
खुद बदलना हम न चाहें,
जग बदल जाए मगर।
इस तरह की बात करते,
मित्र हम बेकार में।
हो गये हैं हादसे अब,
आम से इस देश में,
एक देन ऐसा नहीं,
छपता न हो अखबार में।
अब नहीं रावण से खतरा,
डर रहे हनुमान से,
हो रही सीता हरण अब,
दिन में औ' बाजार में।
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