अजित गुप्ता जी एक मंझी हुई साहित्कार हैं। ब्लॉगिंग में बंट रहे पुरस्कारों पर उन्होंने अपने विचार प्रकट करते हुए जो कहा है, उसे भी इस पोस्ट पर उनके एक कमेंट में देखा जा सकता है।
ओह, आपकी पोस्ट पर दिए लिंक से सारा माजरा समझ आया। पहले तो प्रब्लेस शब्द समझ नहीं आ रहा था, लेकिन अब सब कुछ स्पष्ट है। साहित्य में पुरस्कार और सम्मान की परम्परा इस आधुनिक युग में प्रारम्भ हुई थी तो प्रत्येक संस्था इसी उद्योग में लग गयी है। खुश होने दीजिए ऐसे लोगों को, स्वयं की खुशी से ज्यादा इन सम्मानों का और कोई अर्थ नहीं है।
1 comments:
sahi likha hai Ajitgupta ji ne.
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