निर्मल बाबा प्रकरण में एक दिलचस्प मोड़ आया है. देश के 84 तीर्थस्थलों के पुरोहितों ने कुम्भ मेले में निर्मल बाबा के प्रवेश पर रोक लगाने की मांग करने का निर्णय लिया है. पुरोहितों के तीर्थ महाधिवेशन में 84 तीर्थस्थलों के 350 प्रतिनिधियों ने यह निर्णय लिया है. उनको अंदेशा है कि कुम्भ के पवित्र आयोजन के दौरान पाखंडी धर्मगुरु धर्म और अध्यात्म के नाम पर पैसे की वसूली करते हैं. पुरोहित लोगों को अपने बारे में क्या खयाल है और अंधविश्वास तथा आस्था के व्यवसाय का विरोध करने वाले मीडिया का इन पुरोहितों के बारे में क्या ख़याल हैं. क्या वे लोग मेले में जन-आस्था के नाम पर वसूली का काम नहीं करते या अंधविश्वास फ़ैलाने में इनकी कोई भूमिका नहीं होती. या उनको इसका पुश्तैनी अधिकार है जिससे मीडिया का कुछ लेने-देना नहीं है. निर्मल बाबा ने अभी तक कुम्भ मेले में जाने की कोई घोषणा नहीं की है. फिर पुरोहितों को यह भय क्यों सताने लगा कि निर्मल बाबा उनके व्यवसाय में हिस्सेदारी कर सकते हैं. महालक्ष्मी यंत्र और गंडे ताबीज से लेकर बहुमूल्य रत्नों का व्यवसाय करने वाले दूसरे बाबाओं के आगमन की आशंका ने उन्हें इस कदर भयभीत नहीं किया इसका क्या कारण है? जन-आस्था के दोहन का दायरा बहुत विशाल है. निर्मल बाबा उसके एक छोटे से हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं. उनका भंडाफोड़ कर मीडिया ने अपनी पीठ थपथपा ली. टीआरपी और प्रसार संख्या में भी बढ़ोत्तरी कर ली. संभवतः उनका लक्ष्य भी यही था. यदि जन-आस्था के दोहन के समूल तंत्र पर हमला करेंगे तो उनके लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. इसके लिए साहस भी चाहिए जो शायद ही किसी मीडिया घराने में मौजूद हो. वे खून लगाकर शहीदों की कतार में खड़े होनेवाले लोग हैं. उनका काम थोड़ी सनसनी पैदा करना भर था जो उन्होंने सफलता पूर्वक कर लिया. अब पूरे तंत्र की सफाई करने का उन्होंने ठेका थोड़े ही ले रखा है. अंधश्रद्धा का कारोबार चलता है तो चलता रहे उनका क्या. है न यही बात.
fact n figure: जन-आस्था के दोहन के समूल तंत्र पर हमला करे मीडिया:
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1 comments:
सार्थक प्रस्तुति.
मेरे ब्लॉग पर आपके आने का आभारी हूँ.
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