थाईलैंडवासी डा. दिव्या ने अपनी पसंद की पार्टी के हक़ में वोटर्स के ध्रुवीकरण के लिए आग उगली। नतीजा यह हुआ कि उनके ब्लॉग पर आग देखकर टिप्पणीकार भाग खड़े हुए।
उनकी ताज़ा पोस्ट पर एक और महिला ब्लॉगर ने उन्हें आड़े हाथों ले लिया और ब्लॉग जगत ने भी उनका समर्थन कर दिया। डा. दिव्या को दिन में तारे और रात में सूरज दोनों दिखाई देने लगे तो उन्होंने तुरंत अपनी नीति बदली।
ताज़ा नीति के अनुसार उन्होंने सामाजिक लेख लिखने शुरू कर दिए हैं। इससे टिप्प्पणीकार वापस जुटने में आसानी होगी और जब वे जुट जाएंगे तो मुसलमानों के त्यौहार और चुनाव के समय पर वह फिर से आग उगलने लगेंगी। टिप्पणीकार भाग जाएंगे तो उन्हें सामाजिक लेख लिखकर या कविता आदि समर्पित करके फिर से मना लिया जाएगा।
ब्लॉगर्स भी बदलते रंग और मिज़ाज से उनके मन में चल रही उथल पुथल को ताड़ रहे हैं।
3 टिप्पणीकार वापस आ भी चुके हैं।
देखते हैं फिर से 50 का आंकड़ा कितने दिन में वापस आता है ?
एक सस्पेंस , एक पहेली !
ताज़ा नीति के अनुसार उन्होंने सामाजिक लेख लिखने शुरू कर दिए हैं। इससे टिप्प्पणीकार वापस जुटने में आसानी होगी और जब वे जुट जाएंगे तो मुसलमानों के त्यौहार और चुनाव के समय पर वह फिर से आग उगलने लगेंगी। टिप्पणीकार भाग जाएंगे तो उन्हें सामाजिक लेख लिखकर या कविता आदि समर्पित करके फिर से मना लिया जाएगा।
ब्लॉगर्स भी बदलते रंग और मिज़ाज से उनके मन में चल रही उथल पुथल को ताड़ रहे हैं।
3 टिप्पणीकार वापस आ भी चुके हैं।
देखते हैं फिर से 50 का आंकड़ा कितने दिन में वापस आता है ?
एक सस्पेंस , एक पहेली !
8 comments:
नीति वही है, चेहरा बदल गया है. सामाजिक कुरीतियों के नाम पर वही बातें उठाई जा रही हैं जो मुसलमानों में ज्यादा मानी जाती हैं. जैसे की First Cousin Marriage.
IS BLOG PAR LIKHI JAA RAHI POST KISI MAHILA DWARA HI LIKHI JA RAHI HAIN -IS PAR MUJHE SANDEH HAI .HO SAKTA HAI KOI CHADAM NAAM SE IS PAR LIKH RAHA HO .POST ME JO KATTARTA HAI VO MAHILAON ME MUSHKIL SE HI HOTI HAI .
@ शिखा जी ! आपकी तरह हकीम यूनुस ख़ान साहब ने भी हमारी एक पोस्ट पर इसी तरह का शक ज़ाहिर करते हुए ब्लॉगर अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी से सवाल किया था। दिव्या जी और अमरेन्द्र जी के बीच प्रेम संबंध टाइप कुछ था। बाद में दिव्या जी ने उन्हें भाई भाई कहना शुरू किया जिसके लिए अमरेन्द्र जी तैयार नहीं हुए सो बड़ा विवाद हुआ। काफ़ी ब्लॉगर्स ने बीच बचाव कराया लेकिन दिव्या जी अपने अंदाज़ में उनकी ख़बर लेती रहीं और इसी रौ में बहकर एक दिन वह हमें कुछ कह बैठीं।
हमने एक पोस्ट तैयार की-
‘देशभक्ति का दावा और उसकी हक़ीक़त‘
इस पोस्ट पर अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी ने वह सब बताया जो कि दिव्या जी ने पर्सनल लैटर्स में उन्हें कहा था या फ़ोन पर उनसे कहा था।
अमरेन्द्र जी ने बताया कि दिव्या नाम की ब्लॉगर सचमुच में है और वह लड़की ही है और थाईलैंड में रहती है। दिव्या जी के मकान और उनके परिवार वग़ैरह के बारे में भी अमरेन्द्र जी जानते हैं।
दिव्या जी में ऊर्जा है। राजनेता जनता को बांटकर हमारा ख़ून पीते हैं। राजनीति के चक्कर हमें आपस में सिर फुटौव्वल नहीं करनी चाहिए। मिलजुल कर सभी एक देश की उन्नति के लिए काम करें ताकि समाज में शांति क़ायम हो। ग़लतियां सबसे होती हैं। उन्हें दोहराते चले जाना ठीक नहीं है।
दिव्या जी अच्छा लिखें, यही हमारी कामना है।
आ गया न फिर वही दिव्या पुराण लेकर। शर्म नहीं आती किसी स्त्री का इस प्रकार अपमान करते? दो टेक की तेरी औकात नहीं और चला है है दूसरों के चरित्र पर ऊँगली उठाने? क्या यही सिखाता है तेरा दीन तुझे?
डर गया क्या बे?
अबे दम है तो कमेन्ट डिलीट क्यों कर रहा है डरपोक?
दिवस के नाम से दिव्या जी ही लिखती हैं
@ हमारे ब्लॉग के आदरणीय पाठकों ! डा. दिव्या जी ने अपनी पोस्ट पर कमेंट्स का अम्बार लगाने के लिए कुछ नक़ली प्रोफाईल्स भी बना रखे हैं.
दिवस के नाम से भी दिव्या जी ही लिखती हैं.
दिव्या जी और दिवस जी के विषय और भाषा-शैली एक समान हैं .
यहाँ एक पोस्ट का लिंक दिया जा रहा है. इस पोस्ट में आप दिव्या जी की भाषा और उनकी सोच दोनों ही देख सकते हैं-
डा. दिव्या श्रीवास्तव का परिचय हमें कैसे मिला ? Dr. Divya Shriwastawa's Introduction
हम दिव्या जी के कई नक़ली प्रोफाइल्स जानते हैं. दिवस जी की निशानदेही करने के बाद अब हिंदी ब्लॉग जगत भी यह जान जाएगा कि देश की एकता और शांति को नष्ट करने के लिए दिव्या जी कितनी ज़्यादा मेहनत कर रही हैं ?
उनके दिल में कितनी नफरत भरी है . ब्लॉगिंग को उनके द्वारा दिए जा रहे समय को देख कर जाना जा सकता है .
हम उनकी हक़ीक़त जनहित में जगज़ाहिर कर देते हैं . सिर्फ इसी वजह से वह हमसे ख़ार खाती हैं. खाती रहें , सच कहना अपना काम है.
bahut hi seedhi aur saaf bhasha me bahut kaam ki baat batai aapne anwar sahab. Badqismati se bharat me ek ajeeb se bhasha hai desh bhakti ki: jab tak musalamanon ko gali na do, bura bhala na kaho - tab tak desh bhakt nahi maana jaata. Aur ye sab hua hai desh ki sab se badi deshdrohi sanstha - jansangh aur unke jaisi dusre org ki wajah se. He ishwaar - logon ko sat budhdhi de.
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