सूफ़ी रहस्यवाद-5
अमीर खुसरो |
सूफ़ी ईश्वर से प्रेम करता है और यह विश्वास रखता है कि ईश्वर उससे प्रेम करता है और यह भी कि ईश्वर का हरेक काम हिकमत (तत्वदर्शिता) से भरा होता है। जब लोग केवल परंपराओं का पालन कर रहे होते हैं, तब सूफ़ी उस परंपरा के मूल का निर्वाह भी कर रहा होता है। मिसाल के तौर पर नमाज़ को लिया जाए तो जब आम आदमी नमाज़ में खड़े होने और झुकने की क्रियाएं कर रहा होगा तब सूफ़ी इन क्रियाओं के मूल को भी आत्मसात कर रहा होता है। जब वह सज्दे में अपना सिर रखता है, तब वह अपने अहंकार को भी त्याग देता है। सूफ़ी केवल बाह्याचार का रस्मी पालन नहीं करता बल्कि उस तत्व को भी ग्रहण करता है जो कि उससे वांछित होता है। यह सब करने के लिए वह प्रेम से ऊर्जा लेता है और इससे उसका प्रेम और भी ज़्यादा बढ़ जाता है।
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