परिकल्पना के मास्टरमाइंड ने महेंद्र श्रीवास्तव जी और एक महिला ब्लॉगर की टिप्पणियों पर ऐतराज़ जताते हुए पूछा है कि
हमारा कहना तो यह है कि बच्चा बूढ़ा और जवान सबकुछ एक साथ है यह। जो जैसा वह वैसा ही लिख रहा है। कुछ तो काल कवलित भी हो चुके हैं। ब्लॉग जगत बच्चा होता तो चुनाव और धंधे का जुगाड़ कैसे कर लेता ?
जहां चुनाव होता है वहां चुनाव आयोग ज़रूर होता है। जब ब्लॉग जगत में सरकार ही नहीं है तो फिर चुनाव आयोग किसने बना दिया ?
यह एक फ़र्ज़ी चुनाव आयोग है।
किसी ने नामांकन नहीं भरा , किसी ने ज़मानत की राशि नहीं भरी और न ही वोटर लिस्ट बनी और आयोग ने कुछ नाम चुनकर आदेश दे दिया कि
‘तुम चुनाव में खड़े हो, लड़ो चुनाव‘
तुम्हारा नाम होगा और अपना धंधा चलेगा।
जिसे 100 टिप्पणियां मिलती हैं उसे 4 वोट मिलने मुश्किल हो रहे हैं।
इससे ब्लॉगर का नाम हो रहा है या वह बदनाम हो रहा है ?,
कहना मुश्किल है।
जब चुनाव आयोग ही फ़र्ज़ी है तो उसके नतीजे भी अवैध और अमान्य ही होंगे। वैसे भी चुनाव के ज़रिये जिस तरह के लोग सरकार में आते हैं, उनसे पिंड छुड़ाने के लिए बार बार चुनाव कराने पड़ते हैं और यहां सरकार नहीं बनाई जा रही है बल्कि एक दशक (?) में ब्लॉगर्स के योगदान का आकलन करना है।
साहित्य का आकलन साहित्य जगत कैसे करता है ?
क्या वह कोई चुनाव आयोजित करता है ?
नहीं , बिल्कुल नहीं।
साहित्यकारों या ब्लॉगर्स के योगदान का आकलन चुनाव द्वारा पूरी दुनिया में कहीं भी नहीं होता लेकिन हिंदी ब्लॉग जगत में किया जा रहा है।
एक तो ब्लॉग जगत पर मध्यावधि चुनाव थोप दिया और पता चला कि बिल्कुल बेवजह और पूछ रहे हैं कि ब्लॉग जगत बच्चा है क्या ?
बच्चा यहां कोई नहीं है, हरेक बालिग़ भी है समझदार भी।
हरेक जानता है कि चुनाव में पैसे वाला ही जीतता है। वही इस चुनाव में नज़र आ रहा है।
सूची में सबसे ऊपर समीर लाल जी का नाम नज़र आ रहा है।
समीर लाल जी का योगदान अपनी जगह है और हम भी उन्हें सम्मान की नज़र से देखते हैं लेकिन क्या यह कहना सही होगा कि हिंदी ब्लॉगिंग के एक दशक में सबसे ज़्यादा योगदान उन्होंने किया है ?
ऐसा तो स्वयं समीर लाल जी भी नहीं कह सकते।
मज़े की बात यह है कि नतीजा शुरू से ही ग़लत आ रहा है और जो ग़लती बता रहे हैं उनकी बोलती बंद की जा रही है।
रवीन्द्र प्रभात जी लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं लेकिन ख़ुद उनका लोकतंत्र में कितना विश्वास है ?
‘ब्लॉग की ख़बरें‘ ने जब उनके विरोध में ख़बर प्रकाशित की और उनकी पोस्ट पर
( कौन बनेगा इस दशक का हिन्दी चिट्ठाकार ? ) एक कमेंट के साथ उसका लिंक दिया तो उसे उन्होंने तुरंत ही डिलीट कर दिया।
( कौन बनेगा इस दशक का हिन्दी चिट्ठाकार ? ) एक कमेंट के साथ उसका लिंक दिया तो उसे उन्होंने तुरंत ही डिलीट कर दिया।
क्या विरोध के स्वर को मिटा देना ही लोकतंत्र है ?
...और उपन्यास का शीर्षक रखते हैं ‘ताकि बचा रहे लोकतंत्र‘ ?
ऐसे कैसे बचेगा लोकतंत्र ???
‘ब्लॉग की ख़बरें‘ देता है बिल्कुल निष्पक्ष और सच्ची ख़बरें,
जिससे उजागर होती है ब्लॉगिंग को धंधेबाज़ी में बदलने वालों की हक़ीक़त
इसी क्रम में महेन्द्र श्रीवास्तव जी की ताज़ा टिप्पणियां और रवीन्द्र प्रभात जी का जवाब देखिए,
चर्चित महिला का मतलब मुझे आप समझा दीजिएगा... जहां तक मेरी समझ और जानकारी है ये एक निगेटिव शब्द है, और कम से कम किसी महिला के नाम के आगे लगाने के पहले सोचना चाहिए।
खैर मुझे आपने चुनाव में लोकतात्रिक व्यवस्था से अज्ञानी होना बताया है। मैं आपको विनम्रता से चुनाव और लोकतंत्र की बात समझा दूं। पहले तो चुनाव में नामांकन उम्मीदवार को खुद करना होता है, ये किसी के पिता जी नहीं करते। अच्छा होता कि यहां भी आपने लोगों से नामांकन आमंत्रित किया होता। आपने कुछ के नाम शामिल करके और एक अन्य कालम बना दिया कि कोई भी यहां आ जाए। पहला दोष तो ये है। अब सभी ब्लागर नामांकित हो गए। शायद आप जानते होंगे कि आप को उतने वोट हासिल नहीं हो सकते तो आपने यहीं ऐलान कर दिया कि मुझे वोट ना दें। बहुत सारे लोग हो सकते है, जो आपके इस चुनावी व्यवस्था को ठीक नहीं समझ रहे हों, पर उनके नाम के आगे आप दो तीन वोट लिखकर माखौल उड़ा रहे हैं।
दूसरी बात चुनाव में बोगस वोट को रोकने का आपके पास कोई व्यवस्था नहीं है। लोग एक बोगस मेल आईडी और बोगस ब्लाग बनाए और वोट करते रहे।
जिस तरह से आपका सिस्टम है, अगर कोई खाली आदमी है तो उस ब्लाग को विजेता बना सकता है, जो ब्लाग आज खुला हो और उस पर कोई पोस्ट भी ना हो।
बहरहाल मैने तो सिर्फ अपनी बात रखी थी, आपको इतनी तकलीफ होगी, मैने सोचा नहीं था। वरना हम रोजमर्रा के जीवन में तमाम चीजों की अनदेखी करते हैं, इसे भी कर देते।
मैं आभारी हूँ जो आप मुझे सम्मान की नज़रों से देखते हैं . चर्चित महिला नहीं "चर्चित महिला ब्लोगर" कहा गया है पोस्ट में . आप बहुत बाद में आएं हैं इस ब्लॉग जगत में इसलिए शायद आपको यह नहीं पता कि यह संवोधन अदा जी के लिए है . उन्हें विगत वर्ष "वर्ष की महिला ब्लोगर" का सम्मान प्राप्त हुआ था और वे लगातार चर्चा मे रही थी। क्या चर्चित कहना गलत है ? कोई जरूरी नहीं कि किसी का नाम लेकर ही अपनी बात कही जाए .
आपको पता होगा कि जितने भी रियलिटि शो है, सभी में लोग प्रीपेड फोन से फर्जी वोटिंग करते हैं। लेकिन वहां एक से ज्यादा वोट करने की मनाही नहीं होती है। वहां वोटिंग की लाइन खुलते ही आपको अपने प्रिय कलाकार के लिए वोटिंग करनी होती है और ताकतवर ( ताकत यानि पैसा) जीत जाता है।
भाई रवींद्र जी हम जो एसएमएस मंगाते हैं वो एक व्यावसायिक उद्देश्य है। पता नहीं आपको पता है या नहीं वैसे प्रति एसएमस 30 या 40 पैसे की होती है, पर प्रतियोगिता में शामिल होने वाले एसएमएस की कीमत छह रुपये होती है। जिसमें चैनल और टेलीफोन कंपनी आधी आधी रकम बांटते हैं।
अगर आप इसी व्यवस्था से प्रभावित होकर ऐसा चुनाव करा रहे हैं तब तो कोई बात नहीं यहां भी पैसे वाले अधिक संसाधनों वाले जीत जाएं।
एक ब्लॉगर ने तो वोट के लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर ही आपत्ति दर्ज कर दी, जबकि पूरी दुनिया चुनाव की लोकतान्त्रिक व्यवस्था को श्रेष्ठ व्यवस्था की संज्ञा देती है । .......
इसलिए मैने आपको बताने की कोशिश की, लोकतंत्र में चुनाव में उम्मीदवार को खुद नामांकन करना होता है, अब ये क्या बात है कि आपने कुछ लोगों के साथ मिलकर नाम तय कर दिए और जब नाम तय किए गए तो अन्य का कालम क्यों। मसला साफ है कि आपने जिस टीम के साथ ये नाम तय किए उस पर आपको भी भरोसा नहीं था। .. अगर अन्य का कालम है तो फिर नाम क्यों ?
सब लोग अपने पसंदीदा का नाम लिख कर वोट कर देते।
अब आप सीमित संसाधनों की बात कर रहे हैं। जबकि पहले आप मेरे लोकतांत्रिक चुनाव व्यवस्था के ज्ञान पर उंगली उठा रहे थे।
खैर मैं अपनी बातों को बस यहीं पर विराम देता हूं। मेरा आशय किसी के विरोध या समर्थन करना नहीं है।
8 comments:
करें यहाँ गम गलत सब, सच्ची दुनिया छोड़ |
ढोंगी दुर्जन स्वार्थी, देखे वहाँ करोड़ |
देखे वहाँ करोड़, होड़ अब यहाँ देखता |
तुलसी स्वांत-सुखाय, यज्ञ लहलहा देखता |
पुरस्कार का लोभ, क्षोभ ना होता भैया |
रविकर जो पा जाय, बजाऊं द्वार बधैया ||
सेवा है साहित्य सुमन व्यापार नहीं
लेखन में प्रतिबंध मुझे स्वीकार नहीं
प्रायोजित रचना से कोई प्यार नहीं
बच के रहना साहित्यिक दुकानों से
जी कर लिखता हूँ कोई बीमार नहीं
मठाधीश की आज यहाँ बन आई है
कितने डर से करते हैं तकरार नहीं
धन प्रभाव के बल पर उनकी धूम मची
कितने जिनको साहित्यक आधार नहीं
रचना में ना दम आती विज्ञापन से
ऐसे जो हैं लिखने का अधिकार नहीं
उठे कलम जब दिल में मस्ती आ जाए
खुशबू रचना में होगी इनकार नहीं
खुशबू होगी तो मधुकर भी आयेंगे
सेवा है साहित्य सुमन व्यापार नहीं
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
पता नहीं क्या गंध सी मचा रखी है. न सम्मान देने वाले का कोई वजूद, न लेने वाले की बिसात. कछुए की ग्रैंड रेस में .. स्नेल अवार्ड देगा. इन सब से बाहर निकलो यार .. !!
जिसको सम्मान पाने का गरूर हो, वह इस साम्मान के बदौलत रेलवे किराये में छूट पाए और जिसे सम्मान न मिलने का अफसोस हो .. वह अपना सम्मान बना अपने को ही दे दे . न कोई जानता और न कोई पूछता.
और हाँ ., एक बात बताना भूल गया .. राष्ट्रीय ब्लॉगर का सम्मान भी बचा है .. कोई बनाये और कोई ले ले .. हे हे ! मेरा काम था बताना !
कुछ न करने से कुछ करना बेहतर है।
बांध तारीफों के पुल
रेत को दरिया न कर.
क्या जलवेदार बातें कहीं हैं जी! वाह!
चुनाव का पता तो हनें भी न था .....
हमें तो तब पता चला जब एक ब्लोगर मित्र ने वोट के लिए लिंक भेजा ..
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