सीनियर ब्लागर जनाब मासूम साहब कहते हैं कि
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जैसे शरीर में खाने कि भूख होती है वैसे ही शरीर में सेक्स को भी भूख होती है | इसकी भी एक उम्र होती है | कुछ साल तो ऐसा युवा अपने को दूसरी बातों में मसरूफ रख के इसे रोक पाता है क्यों कि उस समय यह भूख उतनी तेज नहीं होती लेकिन एक उम्र आ जाती हैं जब इसे रोकना आसान नहीं हुआ करता |ऐसे में इंसान फितरत के अनुसार अपनी इस भूख को मिटाने के रास्ते तलाशना शुरू कर देता है |
आज के युग में शादियाँ होती हैं देर से और युवा को कम से कम १० -१५ वर्ष इस भूख को सहन करना पड़ता है | लोग अजीब अजीब हल निकल लेते हैं इस भूख को खत्म करने का और इन्तेज़ार किया करते हैं कब उनको भी एक साथी मिले | आज के खुले माहौल में युवाओं से यह आशा करना कि वो सब्र करेंगे बेवकूफी के सिवाए कुछ भी नहीं है | हाँ बहुत से ऐसे हैं जो सब्र करते हैं और सही वक्त का सालों इन्तेज़ार कर लिया करते हैं | ऐसे लोगों कि संख्या दिन- ब -दिन अब कम होती जा रही है |आज के खुले माहौल में तो यह और भी मुश्किल होता जा रहा है |
इसका कोई हल हमें निकलना तो चाहिए | हाथ पे हाथ धरे बैठने से या यह तय कर लेने से कि हमें तो सेक्स कि आवश्यकता पूरी करने के लिए अधेड उम्र में भी एक पत्नी चाहिए लेकिन हमारी जवान ओलादों को इसकी आवश्यकता नहीं | वो सब्र करेंगे जैसे ख्यालात समस्या से भागने के सिवाए कुछ भी नहीं है | समस्या से भागने से समस्या हल नहीं हो जाती और न ही उससे सच झूट में बदल जाता |
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mahan post
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हर दिन जैसा है सजा, सजा-मजा भरपूर |
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अब बात केवल माता-पिता की नहीं रही। स्वयं बच्चे भी देर से विवाह करने के इच्छुक होते हैं।
देर से विवाह के कारण,नव-दम्पत्ति में सेक्स के प्रति वह आकर्षण नहीं रह जाता जो एकदम युवा में होता है। ऐसे लोग सीधे गार्जियन की भूमिका में आ जाते हैं।
सेक्स का स्थान दूसरी प्राथमिकताओं ने ले लिया है जिनके कारण सेक्स-जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों संबंधी सर्वेक्षण जब-तब छपते ही रहते हैं।
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