एक धर्म की ख़ास, करे नारी पर रचना
है सच्चा इंसान, अगर गलती वह माने |
विषय जाइए भूल, यही कह गए सयाने ||
उन्होंने लिंक देकर बताया कि इस घटना का सम्बन्ध पत्रकार अख्तर खान अकेला जी से है .
The very first torch bearer of Virtual Journalism in Hindi.
@ रचना जी ! ब्लॉगर को टोका जाय और अखबार को छोड़ दिया जाय, यह नीति ठीक नहीं है. ग़लत लगे तो सबको टोको, इसमें अपना पराया मत देखो. हमारा तो यही मानना है और जो हम मानते हैं वही करते हैं.
मल्टीनेशनल कंपनियों की पूँजी पर आज अखबार और कुछ ब्लॉगर दोनों चल रहे हैं.
अपने ईमान को भुलाकर ये हमेशा सच के ख़िलाफ़ ही बोलते हैं.
भास्कर की पोस्ट के नीचे भी पाठकों से उनके विचार मांगे गए हैं. अखतर साहब के लिंक देने के बाद भी कोई उधर न गया ?
देखते हैं अपनी आपत्ति जताने अब कौन उधर जाता है ?
अख्तरखान बड़े ब्लागर हैं। उन की पोस्टें सचिव लिखा करते हैं। लिखते क्या हैं? कट पेस्ट करते हैं।
(आप ने यह सीक्रेट उजागर करने के पहले अख्तर भाई से पूछ तो लिया था न?)
सारे ही धर्म हमेशा से आम लोगों को उल्लू बनाते आए हैं और जब तक रहेंगे बनाते रहेंगे। जो अपने धर्म का बचाव करता है वह खुद को धोखा देता है। दुनिया में जो पैदा होता है वह मरता है यह अटल सत्य है। सभी धर्म मानव विकास की किसी अवस्था में पैदा हुए हैं और किसी न किसी अवस्था में वे अवश्य मर जाएंगे।
समय और काल के हिसाब से हमें अपनी सोच में भी परिवर्तन लाना चाहिए।
जो आपत्तिजनक है वहौर उसका विरोध होना चाहिए, चाहे वह कहीं हो।
@ रचना जी ! आपने अख्तर खान साहब को सलाह दी कि
'dusrae kae dharm par jo likhae haen apnae dharm par bhi likhae'
आपको सलाह देने का या ऐतराज़ करने का पूरा हक़ है. हमें आपके कथन पर कोई ऐतराज़ नहीं है लेकिन हम यह ज़रूर जानना चाहते हैं कि यह अख्तर खान साहब के साथ ही क्यों ?
क्या ऐसा सिर्फ वही करते हैं या दूसरे ब्लॉगर भी ऐसा ही करते हैं ?
आपको एक ब्लॉगर का लिंक डा. अयाज़ अहमद साहब की पोस्ट पर शाहनवाज़ जी दे भी चुके हैं. उस पर यह नियम बताने के लिए आप न पहले पहुँचीं और न अब .
यह पक्षपात क्यों ?
@ आदरणीय द्विवेदी जी ! धर्म कब बने और किस धर्म में क्या कमी है ?
इसकी विवेचना करना इस पोस्ट का विषय नहीं है. आप खुद भी कह चुके हैं कि सभी विषयों पर एक साथ बात करना संभव नहीं है.
इस पोस्ट का विषय टिप्पणी करने वाले हिंदी ब्लॉगर्स की दोहरी मानसिकता को सामने लाना है.
उम्मीद है कि आप बात समझ गए होंगे.
धोखे में वे लोग हैं जो अपनी माँ के साथ रिश्ते की पवित्रता भी बनाए रखते हैं और ईश्वर का इन्कार भी करते हैं. पवित्रता ईश्वर के नाम से ही है. पवित्रता नास्तिकता और विज्ञान का विषय नहीं है.
जो पवित्रता को मानता है और उसे क़ायम करने वाले ईश्वर को नहीं मानता, वह अपनी हठ के कारण सदा अंतर्द्वंद और विरोधाभास में जीता है और इसी में वह मर जाता है.
धन्यवाद.
rachan madam lagta hai aap KHURSHEED aur SALEEM ko bhoool gayeen hai....
@ रचना जी ! अख्तर खान अकेला जी ने
१-बहस से बचने के लिए पोस्ट डिलीट कर दी और
२-उस पोस्ट में भास्कर का लिंक भी नहीं था.
३- वह पोस्ट उनके सचिव ने तैयार की थी.
४-उस पोस्ट का मुद्दा हमारी रिपोर्ट के मुद्दे से अलग था.
रविकर जी ने अपनी पोस्ट क्यों डिलीट की है ?, पता नहीं लेकिन उनकी पोस्ट का मुद्दा भी हमारी रिपोर्ट के मुद्दे से अलग था.
१- हम बहस से बचना नहीं चाहते बल्कि उसे आमंत्रित करते हैं.
२- हमारी पोस्ट में भास्कर का लिंक भी है.
३-अपनी पोस्ट को हमने खुद लिखा है.
४-इस पोस्ट का मुद्दा है 'हिंदी ब्लॉगर्स की दोहरी मानसिकता' को सामने लाना.
इसलिए इस पोस्ट को डिलीट करने से हज़ारों ब्लॉगर्स बड़े कहलाने वाले हिंदी ब्लॉगर्स के बारे में सही सूचना से वंचित रह जायेंगे.
अतः इस पोस्ट को डिलीट करने का कोई उचित कारण नहीं है.
हम सब का नहीं बल्कि सच का साथ देते हैं. यही हमारी पहचान है.
@हम सब का नहीं बल्कि सच का साथ देते हैं. यही हमारी पहचान है.
डॉ साहेब, चिंता मत कीजिए आप की पहचान सब के सामने होगी, झूठ की हंडिया ज्यादा दिन चूल्हे पर नहीं चढती.
आदरनीय डॉ साहेब,
वैसे तो आपके कई ब्लॉग है, पर आपके ब्लॉग “ब्लॉग की खबरें” पर इसी पोस्ट में एक टीप द्वारा में अपनी बात रखना चाहता हूँ,
LIKE कॉलम के अन्तरगत कुछ पोस्ट जो कई महीनो से चमक रही हैं जैसेकि
धर्म के नाम पर ‘सेक्स’ का खेल
सम्भोग रहस्य
यहाँ पर इस पोस्टों के साथ संबद्ध चित्र को देख कर ऐसा लगता है मानो इन ब्लोग्गरों ने कुछ इस टाइप का लेखन किया हो. पर ऐसा कुछ भीं नहीं है. अत: आपसे ये सादर अनुरोध है की उक्त पोस्टों को अपने ब्लॉग से डिलीट कर देवें.
इस विषय में आपसे पहले भी टीप द्वारा सूचित किया है, पर आपने बजाये कुछ कदम उठाने के मेरी टीप ही डिलीट कर दी. एक अनुभवी और विद्वान ब्लोग्गोर है, अत: अपेक्षा करता हूँ कि तुरंत ऐसी पोस्ट डिलीट कर आप स्वस्थ ब्लॉग्गिंग को मज़बूत करेंगे.
सादर
दीपक बाबा
@ आदरणीय दीपक जी ! आपकी कोई टिप्पणी डिलीट नहीं की गई है. आपकी अन्य टिप्पणियां इस पोस्ट के बाद वाली नई पोस्ट पर हैं.
हम आपकी भावना का सम्मान करते हैं.
भाई, 'धर्म के नाम पर 'सेक्स' का खेल' नामक रिपोतार्ज को तो अभी ४ दिन भी नहीं हुए हैं तब आपने इसे 'लाइक' कालम में महीनों से चमकते हुए कैसे देख लिया ?
इस रिपोतार्ज में जिसका फोटो है, उसका स्टेटमेंट भी बिना किसी संपादन के दिया गया है.
'सम्भोग रहस्य' में भी वंदना जी का फ़ोटो इसलिए है क्योंकि पूरा रिपोतार्ज उनकी महाप्रसिद्ध कविता पर ही आधारित है.
हिंदी ब्लॉगजगत में कई ब्लॉग हैं जो पोस्ट या टिप्पणी का चर्चा करते हुए पोस्ट और टिप्पणी के लेखक का चित्र भी साथ में देते हैं.
अतः पोस्ट या टिप्पणी का चर्चा करते हुए पोस्ट और टिप्पणी के लेखक का चित्र साथ में देना किसी भी तरह स्वस्थ ब्लॉगिंग के खिलाफ नहीं है.
'संभोग रहस्य' वंदना जी की कविता का विरोध करने वालों के निराकरण के लिए लिखी गई एक पोस्ट है. यह पोस्ट उनके नज़रिए के समर्थन में लिखी गई है. जब तक इंटरनेट पर वंदना जी को अश्लील गालियाँ देने वालों के पोस्ट्स रहेंगी तब तक इस पोस्ट का बने रहना ज़रूरी है.
पोस्ट्स डिलीट करने की बात आप उन पोस्ट्स पर जा कर ज़रूर कहें जिन्होंने ब्लागर डोट कॉम और फेसबुक पर वंदना जी को गालियाँ दी हैं. उस समय वन्दना जी को ज़रूरत भी थी कि कोई उन्हें गालियाँ देने वालों को रोके.
तब दर्जनों पोस्ट और कमेंट्स के ज़रिये हमने उन्हें रोका. हमने उन्हें टोका.
तब आप कहाँ थे भाई साहब ?
क्या आप भी कुछ कहने से पहले ब्लॉगर का नाम देखते हैं ?
चलिए, अब देख लेते हैं कि आपको वंदना जी से कितनी हमदर्दी है ?
वन्दना जी को अश्लील गालियाँ देने वाले हिंदी ब्लागर्स को आप अब क्या कहते हैं ?, अब देख लेते हैं.
अगर नापने के पैमाने एक हो जाएँ तो आपको या किसी को कोई पोस्ट डिलीट करने के लिए कभी कहना नहीं पड़ेगा क्योंकि तब हमें यह सब लिखने के ज़रूरत ही नहीं रहेगी.
धन्यवाद.
@आपकी कोई टिप्पणी डिलीट नहीं की गई है.
जी नहीं मैंने ४ मर्तबा टीप की कोशिश की .... पर आपने डिलीट नहीं की.
@ 'धर्म के नाम पर 'सेक्स' का खेल' नामक रिपोतार्ज को तो अभी ४ दिन भी नहीं
मैंने दूसरे पोस्ट के साथ इसकी बात कर रहा हूँ, क्या वंदना जी की पोस्ट को २ महीने नहीं हो गए. उसके बाद रचना जी का चित्र. आपकी मंशा क्या जनाब... खुल कर लिखिए.
@ उनकी महाप्रसिद्ध कविता
देखिये चूक किसी से भी हो सकती है... उन्होंने कोई कविता लिख दी, पर उनको इस बात का इल्म हुआ, कि गलती हो गयी है... अत: उन्होंने ये कविता अपने ब्लॉग से हटा ली, पर आप अभी तक उसे चिपका कर घूम रहे वो भी गलत टाईटल के साथ. ... उनकी कविता का टाईटल था, संभल कर विषय जरा बोल्ड है. और आपने सम्भोग का रहस्य कर दिया.
@ पोस्ट या टिप्पणी का चर्चा करते हुए पोस्ट और टिप्पणी के लेखक का चित्र भी साथ में देते हैं.
क्या दिक्कत है दीजिए पर ऐसे किसी संभ्रांत महिला के विषय में उलूल फजूल लिख कर मत चित्र चास्पाइए .
@ 'संभोग रहस्य' वंदना जी की कविता का विरोध करने वालों के निराकरण के लिए लिखी गई एक पोस्ट है.
कितना निराकरण किया है आपने – ये आपका खुदा जानता है या फिर मेरा. टीप देने वालों ने दे दी, पोस्ट लिखने वाले ने लिख कर डिलीट कर दी, पर एक आप हैं जो अपने ब्लॉग पर लाईक में चिपका रखी है.
@ वन्दना जी को अश्लील गालियाँ देने वाले हिंदी ब्लागर्स को आप अब क्या कहते हैं ?, अब देख लेते हैं.
अगर नापने के पैमाने एक हो जाएँ तो आपको या किसी को कोई पोस्ट डिलीट करने के लिए कभी कहना नहीं पड़ेगा क्योंकि तब हमें यह सब लिखने के ज़रूरत ही नहीं रहेगी.
डॉ साहेब, जो मसला था सब निपट गया, टीप भी पोस्ट भी. पर आपने क्यों उस पोस्ट को अपने ब्लॉग पर लगा रखा है... समझ नहीं आता ...
मालिक हो साहेब, ब्लॉग आपका है, मेम्बेर्स तो बस नाममात्र के बना रखे हैं आपने....
क्या सोच कर टीप डिलीट कर देते हैं, और फिर क्या सोच कर दुबारा पब्लिश करते हैं, जहाँपना ... आप तो बहुत पहुंचे हुए संत फकीर है.
please remove my photo from your blog post
its very simple to paste the comment yet not paste the photo
ok you are a very learned man of india then you should know using a womans photo on your blog post without her permission is punishable under cyber crime and also under crime against woman
i am asking you to remove my photo immediately
please go and read the guide lines of NCW if you are not sure
@ दीपक बाबा ! आपकी टिप्पणियाँ स्पैम में जा रही हैं. वहाँ से हमें लानी पड़ रही हैं.
आपकी दूसरी टिपण्णी में आपने बेवजह अभद्रता से काम लिया है. इसलिए आपकी दूसरी टिप्पणी हटा दी जायेगी. इससे संवाद की स्तरीयता बनी रहेगी.
बहुत से लोगों ने एक साथ वंदना जी पर हल्ला बोला और उन्हें अश्लील टिप्पणियां दीं तो उन्हें घबरा कर पहले टिप्पणियां हटानी पड़ें लेकिन फिर भी लोगों की गिरी हुई हरकतें बंद नहीं हुईं तो उन्हें मजबूरन अपनी कविता को भी हटाना पडा.
किसी एक दो ने अपनी पोस्ट चाहे हटा ली हो लेकिन वंदना जी के विरोध में लिखी गई ज़्यादातर पोस्ट्स अभी तक नेट पर मौजूद हैं. आप उनकी कविता का शीर्षक गूगल में डालकर ढूंढेंगे तो उनमें से कुछ आपको नज़र भी आ जायेंगी. इसलिए यह पोस्ट अभी भी प्रासंगिक है.
जब किसी कविता की समीक्षा की जाती है और एक कवयित्री के पक्ष में लेख लिखा जाता है तो उस स्वतंत्र रचना का शीर्षक हमेशा कविता से जुदा होता है.
मुधुशाला की समीक्षा लिखी जायेगी तो क्या उसका शीर्षक भी मधुशाला ही होगा ?
यह एक कॉमन सेन्स की बात है. जिसे आप समझना चाहते तो आसानी से समझ सकते थे.
रचना जी आप एक बार इस्लाम धर्म कुबूल करने वाले सवाल में मुहं की खा चुकी हैं सन 2009 में और फिर से ! कम से कम कुछ तो सोचा करिए कहीं पिछली बार की तरह ऐसा न हो कि आपको अपनी प्रोफाईल से सब कुछ हटाना न पड़ जाए !
बहुत बढ़िया… लगे रहो सब के सब…
साइड बार के Like और Popular post का Content देखकर Taste का पता चल रहा है…
इतने दिनों बाद भी इधर कुछ भी नहीं बदला… :P :P
कुछ अच्छा कीजिए.... अच्छा न हो तो बुरा मत कीजिए.....
विवादों से किसी का भला नहीं होता....
देवदासियां दलित समुदाय से आती हैं और उच्च वर्गीय उनसे अपनी काम पिपासा शांत करते हैं. दलितों पर जारी अत्याचार पर पर्दा पड़ा रहे, इसी के लिए यह छल प्रपंच किया जा रहा है.
अपना चेहरा दिखाना जिन्हें गवारा नहीं है, उन्होंने भी भास्कर को महिलाओं का नंगा चित्र दिखाने से न रोका क्योंकि वे दलित हैं.
समस्या दलित नारी की हो तो फिर नारी समस्याओं पर मुखर होने वाले भी कैसे कन्नी काटते हैं ?
इसे यहाँ साक्षात दिखाने के लिए धन्यवाद !!!
जनता को जागरूक करने के लिए इस पोस्ट को न हटाने का आग्रह है.
हमारे पुराने गिले शिकवे इसमें बाधा न बनेंगे, ऐसी आशा है.
@ अतुल जी ! आप एक ज़िम्मेदार पत्रकार हैं. किसी की ईमेल मिली तो कमेन्ट करना आप की मजबूरी क्यों बन गई ?
क्या आप अपने अखबार में नक्सलवाद के ख़िलाफ़ लिखना महज़ इसलिए छोड़ सकते हैं कि नक्सलवादी 'विवाद' करने के लिए आ जायेंगे ?
तथ्यों को किसी विवादी के डर से छिपाना पत्रकारिता के धर्म के ख़िलाफ़ है.
@ सत्य गौतम ! स्वर्ण दलित मुद्दे पर बहस के लिए यह पोस्ट मुनासिब नहीं है और न ही किसी पुरानी बात को याद दिलाने का यह कोई मौक़ा है.
उचित कारण न मिले तो हम कोई पोस्ट हटाते ही नहीं. अब तक यहाँ ऐसा ही हुआ है.
बात कहाँ से चली और कहाँ पहुँच गयी? किसी भी प्रकाशित पत्र से रचना उठा कर उसको लगा कर पोस्ट बना देना , नैतिक रूप से गलत है और सबसे बड़ा गलत ये है कि अख्तर खान जी का ब्लॉग उनके सचिव चलाते हें फिर भी पोस्ट को पोस्ट होने से पहले अख्तर खान जी के बार देखते तो होंगे न. वहाँ से चली बात और उसे कोई और लेकर उड़ा लिया और आपत्तिकर्ता की आपत्ति को देखते हुए खुद उसी को विषय बना दिया गया क्यों? आप अपने विषय पर बहस कीजिये न कि किसी की फोटो पर. ये व्यक्तिगत मामले पर हम आपत्ति करने वाले कोई नहीं होते हें. लिखने वाली की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह अपने ब्लॉग पर क्या लगा रहा है?
मैं नहीं समझाती हूँ कि जितनी चर्चा ऐसे विवादस्पद विषयों पर चर्चा होती है बजाय उनके कि जो सार्थक और सामाजिक हित की पोस्ट होती हें. और फिर चर्चा चलते चलते व्यक्तिगत जीवन पर आकार ख़त्म होती है या फिर कटाक्ष में बदल जाती है. ये क्या हमारी स्वस्थ और बुद्धिजीवी मानसिकता की द्योतक है. अगर नहीं तो फिर वाद विवाद सार्थक होना चाहिए जिसका कोई परिणाम निकले. न कि हम व्यर्थ की बातें करते रहें.
:P :P :P :) :) :) :) :) :P :P
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डॉ साहब, कल मैंने यहाँ एक कमेन्ट किया था, लेकिन शायद वो स्पैम में चला गया है. उसे प्रकाशित करें प्लीज़.
@ वन्दना दुबे जी ! कुछ लोग किसी के आमंत्रण पर यहां आकर अभद्र भाषा में कमेंट कर रहे हैं या फिर उनका कमेंट पोस्ट के विषय से हटकर होता है। उनका जवाब दिया जाए तो पाठकों का ध्यान इस पोस्ट के विषय से हट जाता है। इस लिए पोस्ट के मूल विषय से हटकर की गई टिप्पणियों को हटा दिया गया है। इस क्रम में हमने अपनी दो टिप्पणियों को भी हटा दिया है।
हमने अपने ब्लॉग ‘अहसास की परतें‘ पर एक पोस्ट में रचना जी का फ़ोटो दिया था। उस पर रचना जी ने आपत्ति की थी। हमने अपनी पोस्ट से उनका फ़ोटो तुरंत हटा दिया था। अब भी उन्हें चित्र को लेकर आपत्ति है। उनके चित्र का सत्यापन होते ही उनका चित्र हटा दिया जाएगा।
@@ रेखा जी !
नाम देखकर न्याय की परिभाषा बदल दी जाती है हिंदी ब्लागिंग में। इसके बावजूद आपके कहे का मान रखने के लिए हम अपनी ज़िंदगी में पहली बार अपनी दो टिप्पणियां हटा रहे हैं ताकि अपने निजी अहं के लिए ब्लॉगिंग करने वाले इसे कोई सांप्रदायिक रंग न दे सकें, जैसा कि उन्होंने एक ताज़ा पोस्ट लिखकर यह घिनौनी कोशिश की भी है और उन्हें इस पर टोकने के लिए कोई भी न पहुंचा। दोहरी मानसिकता की एक बानगी ख़ुद उनकी ताज़ा पोस्ट पर भी देखी जा सकती है।
धन्यवाद !
@@@ झटका जगाने के लिए दिया जाता है कि सबको एक पैमाने से नापो !
झटका लगा है तो कुछ न कुछ लोग जागे भी ज़रूर होंगे। इंसानियत का पहला तक़ाज़ा है कि जो व्यवहार अपने लिए पसंद करते हो वही व्यवहार दूसरों के साथ करो।
‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्यवरान्निबोधत‘
उठो जागो और श्रेष्ठता का वरण करो।
शीशा हमें तो आपको पत्थर कहा गया
दोनों के सिलसिले में ये बेहतर कहा गया
ख़ुददारियों की राह पे जो गामज़न रहे
उनको हमारे शहर में ख़ुदसर कहा गया
महिला ब्लॉगर का नाम और फ़ोटो हटाकर आपने अच्छा किया। फ़ित्नागरों के लिए पोस्ट के असल मुददे से ध्यान हटाना अब मुमकिन न हो सकेगा। शायद अब लोग संजीदगी से सोचें कि एक ही काम सौ लोग करते हैं तो 99 को छोड़कर एक को ही क्यों टोका जाता है ?
अन्दरूनी तब्दीली हो जाए तो बाहर उसका असर आना तय है।
आपकी पोस्ट को मैंने अपने ब्लाग पर शेयर किया है।
लिंक यह है-
http://drayazahmad.blogspot.in/2012/07/dr-anwer-jamal.html
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kuchh to chaettae