कुमार राधारमण जी बता रहे हैं -
लो-एस्टीम है वजह
जब भी हम किसी से अपनी तुलना करके निराश होते हैं,
तो इसका मतलब यही है कि हम अपने आप से और अपने आस-पास की चीजों से खुश नहीं
हैं। साइकॉलजिस्ट डॉ. अमित चुग कहते हैं, 'दूसरों से कंपैरिजन पर
कॉम्प्लेक्स फील होता है, तो मान लें कि आपको खुद को एक्सेप्ट करने में
परेशानी हो रही है। अगर आप हमेशा यही सोचते रहेंगे कि वह बेहतर है या मैं
बेहतर हूं, तो कभी भी आपको दिमागी शांति नहीं मिल पाएगी।'
यही नहीं, ऐसी तुलना से आप अपनी स्पिरिट भी खोने
लगेंगे। हालांकि देखने में आया है कि ऐसे लोग रियल लाइफ में भी दूसरों से
कंपैरिजन कर ऐसे ही दुखी रहते हैं।
कैसे बचें
किसी भी तरह के कॉम्प्लेक्स से बचने का बेस्ट तरीका
है कि आप जैसे हैं, वैसे ही खुद को एक्सेप्ट कर लें। जितना आप अपने साथ
सहज होंगे, दूसरों की चीजें आपको उतना ही कम परेशान करेंगी। जब आप खुद को
पसंद करने लगेंगे, तो आपको क्या फर्क पड़ेगा कि कौन क्या कर रहा है और कहां
जा रहा है।
आकृति कहती हैं कि अगर आप अपने बारे में अच्छा नहीं सोच सकते, तो कोई आपको अच्छा महसूस करवा भी नहीं सकता है।
...तो मिलेगी खुशी
- सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर लिमिटेड टाइम गुजारें।
- याद रखें कि आप और बाकी सभी लोग अपने-आप में यूनीक हैं और सभी के पास अपना टैलंट है।
- अपनी तुलना बस खुद से ही करें और अपनी इंप्रूवमेंट के लिए कुछ गोल्स तय कर लें।
- अपने इंटरेस्ट की ऐक्टिविटीज में इंवॉल्व होकर नेगेटिव थॉट्स को दूर रखें।
- अगर कभी फ्रस्ट्रेशन हो, तो अपने विचारों को लिखें या फिर किसी फ्रेंड से शेयर करें।
- खुद से सवाल करें कि दूसरों की बड़ी समस्याओं के आगे आपकी यह लो-फीलिंग कितना मायने रखती है।
- और अगर यह सब आपके लिए काम नहीं करता है, तो बेहतर होगा कि आप अपना अकाउंट ही डिलीट कर दें
Source : http://upchar.blogspot.in/2012/07/blog-post_17.html
1 comments:
शुक्रिया जनाब।
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