डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' लिखते हैं -
अन्ना के समर्थकों के समक्ष निराशा का आसन्न संकट?
मेरा
राजनैतिक अनुमान है, कि धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के मुद्दों को
अपनाये बिना, इस देश में कोई राजनैतिक पार्टी स्थापित होकर राष्ट्रीय स्तर
पर सफल हो ही नहीं सकती और इसे "अन्ना का दुर्भाग्य कहें या इस देश का"-कि
अन्ना की सभाओं में या रैलियों में अभी तक जुटती रही भीड़ को ये दोनों ही
संवैधानिक अवधारणाएँ कतई भी मंजूर नहीं हैं! बल्कि कड़वा सच तो यही है कि
अन्ना अन्दोलन में अधिकतर वही लोग बढचढकर भाग लेते रहे हैं, जिन्हें देश के
धर्मनिरपेक्ष स्वरूप में कतई भी आस्था नहीं है। जिन्हें इस देश में
अल्पसंख्यक, विशेषकर मुसलमान फूटी आँख नहीं सुहाते हैं और जो हजारों वर्षों
से गुलामी का दंश झेलते रहे दमित वर्गों को समानता का संवैधानिक हक प्रदान
किये जाने के सख्त विरोध में हैं। जो स्त्री को घर की चार दीवारी से बाहर
शक्तिसम्पन्न तथा देश के नीति-नियन्ता पदों पर देखना पसन्द नहीं करते हैं।
यह भी सच है कि
इस प्रकार के लोग इस देश में पॉंच प्रतिशत से अधिक नहीं हैं, लेकिन इन
लोगों के कब्जे में वैब मीडिया है। जिस पर केवल इन्हीं की आवाज सुनाई देती
है। जिससे कुछ मतिमन्दों को लगने लगता है कि सारा देश अन्ना के साथ या
आरक्षण या धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ चिल्ला रहा है। जबकि सम्भवत: ये लोग ही
इस देश की आधुनिक छूत की राजनैतिक तथा सामाजिक बीमारियों के वाहक और देश की
भ्रष्ट तथा शोषक व्यवस्था के असली पोषक एवं समर्थक हैं।
इस कड़वी सच्चाई
का ज्ञान और विश्वास कमोबेश अन्ना तथा बाबा दोनों को हो चुका है। इसलिये
दोनों ने ही संकेत दे दिये हैं कि अब देश के सभी वर्गों को साथ लेकर चलना
होगा।
3 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (05-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
माथा भन्नाता विकट, हजम करारी हार |
छाया सन्नाटा अटल, तम्बू-टेंट उखार |
तम्बू-टेंट उखार, खार खाए थी सत्ता |
हफ़्तों का उपवास, हिला न कोई पत्ता |
कांगरेस की जीत, निरंकुश उसे बनाए |
राजनीति की दौड़, अगर अन्ना लगवाये ||
अन्ना टीम की गिरी विकेट,मंच लिया उजार
कांग्रेस की जीत हुई, अन्ना टीम हो गई हार,,,
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