पावन ऋग्वेद के दसवें मण्डल के एक सौ सत्रहवें सूक्त के छठे मंत्र में भी उल्लेख है "केवलाघो भवति केवलादी" अर्थात् जो अपनी रोटी अकेले खाता है, वह पाप करता है, अर्थात् रोटी बांटकर खाओ। इस प्रकार ईद-उल-फितर में निहित पवित्र कुरआन के संदेश और ऋग्वेद के मंत्र में बड़ी समानता है।
एक दान-पर्व है ईद-उल-फितर Eid 2012
3 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
साझा करने के लिए धन्यवाद!
महिमा गायें पंथ सब, सभी सिखाते दान |
बांटो अपना खास कुछ, करो जगत उत्थान |
करो जगत उत्थान, फर्ज है समझदार का |
मानवता का कर्ज, उतारो हर प्रकार का |
जो निर्बल मोहताज, करे कुछ गहमी गहमा |
होय मुबारक ईद, दान की हरदम महिमा ||
ऋगवेद से तुलना कर
समानता बताई है
बहुत सुंदर अंदाज है
ये बात हमें बहुत भाई है
काश सब पर्व अगर
आदमी के पर्व कहलाये जाते
स्वर्ग और जन्नत भी एक हो जाते !!!
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