हकीकत यही है
ये हम जानते हैं
कि गोली चलने का कोई इरादा
तुम्हारा नहीं है.
कोई और है जो
तुम्हारे ही कंधे पे बंदूक रखकर
तुम्हीं को निशाना बनाता रहा है.
सभी ये समझते हैं अबतक यहां पर
जो दहशत के सामां दिखाई पड़े हैं
तुम्हीं ने है लाया .
तुम्हीं ने है लाया
मगर दोस्त!
सच क्या है
हम जानते हैं
कि इन सब के पीछे
कहीं तुम नहीं हो.....
फकत चंद जज्बों के कमजोर धागे
जो उनकी पकड़ में
रहे हैं बराबर .
यही एक जरिया है जिसके सहारे
अभी तक वो सबको नचाते रहे हैं
ये तुम जानते हो
ये हम जानते हैं
तुम्हारी ख़ुशी से
तुम्हारे ग़मों से
उन्हें कोई मतलब न था और न होगा
उन्हें सिर्फ अपनी सियासत की मुहरें बिछाकर यहां पर
फकत चाल पर चाल चलनी है जबतक
हुकूमत की चाबी नहीं हाथ आती
हकीकत यही है
ये तुम जानते हो
ये हम जानते हैं
हमारी मगर एक गुज़ारिश है तुमसे
अगर बात मानो
अभी एक झटके में कंधे से अपने
हटा दो जो बंदूक रखी हुई है
घुमाकर नली उसकी उनकी ही जानिब
घोडा दबा दो
उन्हें ये बता दो
कि कंधे तुम्हारे
हुकूमत लपकने की सीढ़ी नहीं हैं.
--देवेंद्र गौतम
ग़ज़लगंगा.dg: हुकूमत की चाबी.....:
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(ऐ रसूल) पहर दिन चढ़े की क़सम
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सूरए जुहा मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी ग्यारह (11) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
(ऐ रसूल) पहर दिन चढ़े की...
1 comments:
किया हकीकत को बयां, क्या बढ़िया अंदाज |
अंदाजा उनको नहीं, जिनके कंधे आज |
जिनके कंधे आज, रखे ढेरों बंदूकें |
दें तुमको ही दाग, अगर तुम किंचित चूके |
चुके हुवे वे लोग, चुकाते हैं क्या बदला |
बदला यह जग खूब, किन्तु बदला न अगला ||
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