ख़्वाजा बख़्तियार काकी र.अ. का जन्म ऊश (अफ़ग़ानिस्तान) में 1173 ई. में हुआ था।...हज़रत ख़्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी र.अ. ने सूफ़ीमत का
कोई औपचारिक सिद्धांत तैयार नहीं किया था, फिर भी भारत में सूफीमत पर उनका
प्रभाव बहुत है। चिश्ती सिलसिले में उन्होंने विश्व-बंधुत्व और परोपकार के
पारंपरिक विचारों का विकास जारी रखा। इसके फलस्वरूप भारत में इस्लाम का एक
नया आयाम विकसित होने लगा जो अब तक मौजूद नहीं था। उन्होंने तत्कालीन सरकार
के साथ गैर-भागीदारी की नीति अपनाया। उनका मानना था कि शासकों और सरकार के
साथ संबंध रखना उनके मन में सांसारिकता के प्रति इच्छाओं को जागृत कर
देगा। हालांकि उन्होंने किसी भी राजनीतिक पद धारण करने से मना कर दिया था,
फिर भी उनकी ख़ानक़ाह सभी क्षेत्र के लोगों के लिए संगम स्थल बन गई और वहां
भारी संख्या में लोग आते रहते थे। वह मजलिस, सभा, का आयोजन करते थे, जहां
अपने प्रवचन से लोगों को आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित
करते थे। आम जनता को निर्देशित उनके उपदेशों में, त्यागपूर्ण जीवन जीने की
सलाह होती थी साथ ही ईश्वर पर पूरा भरोसा रखने के लिए कहा जाता था। वे
लोगों को सभी मनुष्यों के साथ समान व्यवहार रखने की सीख देते थे। परिणामकी
चिंता किए बिना जरूरतमंद की मदद करने में उनका दृढ़ विश्वास था। जो कुछ
उन्हें दान आदि में मिलता, आमतौर पर उसे वे उसी दिन लोगों की भलाई के लिए
ख़र्च कर दिया करते थे। वे इस्लामी पैग़म्बर के “अल-फ़क्रो फ़ख़्री”
(निर्धनता पर गर्व) के सिद्धांत पर अमल करने वालों में से थे। हज़रत ख्वाजा
क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी र.अ. ने हमेशा यही उपदेश दिया कि ईश्वर प्राप्ति
के लिए संयम की बहुत आवश्यकता है। मनुष्य को थोड़ा खाना, थोड़ा सोना, थोड़ा
बोलना और सांसारिक धन्धों में थोड़ा ही फंसना चाहिए। जो व्यक्ति इन चार
सिद्धांतों को अपना सकेगा वह ईश्वर प्राप्ति के मार्ग पर चलने के योग्य बन
सकेगा।
देहदानी गौरव पट्टीका देख,शहरवासी देहदान के लिये हो रहे जागरूक,सप्ताह में
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1 comments:
हमारे ब्लॉग और रचना को यहां स्थान देने के लिए शुक्रिया।
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