इंसानी दिमाग स्त्री और पुरुषों को अलग-अलग तरीके से देखता है. स्त्रियों का दिमाग भी यह भेदभाव करता है.
नज़र का फर्क
यह शिकायत महिलाओं, बल्कि संवेदनशील पुरुषों की भी रही है कि समाज में स्त्री को एक वस्तु की तरह देखा जाता है, इंसान की तरह नहीं। मनोरंजन के साधन और व्यावसायिक हित महिलाओं को वस्तु की तरह पेश किए जाने को बढ़ावा दे रहे हैं। स्त्री-पुरुष बराबरी हासिल करने के लिए जरूरी है कि स्त्रियों को सिर्फ एक वस्तु नहीं, एक इंसान की तरह सम्मान देना जरूरी है। लेकिन इसके लिए यह जानना जरूरी है कि इस दुराग्रह या पक्षपात की जड़ें कितनी गहरी हैं। द यूरोपियन जर्नल ऑफ सोशल साइकोलॉजी में एक शोध प्रकाशित हुआ है, जिसके मुताबिक इंसानी दिमाग स्त्री और पुरुषों को अलग-अलग तरीके से देखता है। वह पुरुषों को अलग नजरिये से देखता है और स्त्रियों को अलग। इसी वजह से स्त्रियों को यौन सुख का एक साधन मानने की प्रवृत्ति विकसित हुई है। शोध एक चौंकाने वाला निष्कर्ष भी देता है कि सिर्फ पुरुषों का ही नहीं, स्त्रियों का दिमाग भी यह भेदभाव करता है।
2 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (30-09-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
-----परा-दर्शन में वास्तव में स्त्री --प्रकृति है, माया है और पुरुष- पुरुष है, ब्रह्म है .....
---प्रकृति जड होती है..भोग्या व ब्रह्म व पुरुष ..जीव रूप में ...भोक्ता ..
---माया रूप में प्रकृति स्वयं ही जीव को मायावश करके भोक्ता बनाकर स्वयं को भोग्या रूप में प्रस्तुत करती है...ताकि संसार चलता रहे ...यही विग्यान-शोध ने भी कहा ..कोई नयी बात नहीं है ...
---यह शाश्वत सत्य है ...सभी स्त्री-पुरुषों को समझना चाहिए ..और तदनुसार व्यवहार करना चाहिए ....
---यह प्राणी वर्ग का मूल गुण-धर्म है ...धर्म है ...
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