ब्लॉगिंग से मोह भंग की मूल वजह जो है उसे कहना समझदारी के खिलाफ़ समझ लेने से भी हिन्दी ब्लॉगिंग पर बुरा असर पड़ा है.
See:
डा. टी. एस. दराल साहब अपनी लम्बी पोस्ट में यह मूल वजह कितनी स्पष्ट कर पाए हैं ?
यह देखना आपका काम है .
अंतर्मंथन: 2012 -- ब्लॉगिंग की राह में मज़बूर हो गए --- हिंदी ब्लॉगिंग का कच्चा (चर्चा) चिट्ठा !
अब आप Tarkeshwar Giri की एक छोटी सी पोस्ट भी देखिये, ब्लॉगिंग छोड़ने से पहले उन्होंने क्या कहा है ?
कमेन्ट माफिया
आज कल हमारे ब्लॉग जगत पर एक अलग सा माफिया ग्रुप का कब्ज़ा हो गया। इस माफिया ग्रुप का नाम मैंने रखा हैं कमेन्ट माफिया या सी कंपनी भी कह सकते हैं।
कुछ लोगो का आपसी ग्रुप इतना मजबूत हो चूका हैं कि अगर किसी ब्लोगेर ने दादी कि सुनी हुई कहानी भी लिख दी तो ७०- ८० कमेन्ट तो मिल ही जाता हैं। और कुछ ब्लोगेर बंधू तो ऐसे हैं कि सिर्फ महिलावो के ब्लॉग पर ही टिप्पड़ी करेंगे। और कुछ कि तो बात ही अलग हैं।
कुछ बंधू तो nice लिख कर के चलते बनते हैं।
भाई लोग ऐसा क्यों करते हैं। मैंने बहुत से ऐसे ब्लॉग देखे हैं जिनमे बहुत सी अच्छी -अच्छी जानकारी दी गई, होती हैं, धर्म के उपर बहुत से ब्लॉग अच्छी जानकारी देते हैं। समाज के उपर हो या विज्ञानं के उपर लेकिन ऐसे लेख बिना पढ़े ही रह जाते हैं। आज कि राजनितिक हलचल हो या महंगाई , कोई नहीं जाता , बेचारा लिखने वाला भी सोचता हैं कि में क्या लिखू।
में अपनी बात ही कह दू, कि अगर मैं किसी कि बुराई करता नज़र आ जाऊ तो लोग दबा के टिप्पड़ी करेंगे लेकिन अगर कोई अच्छी बात लिखने लगु तो ऐसे लगता हैं कि साली टिप्पड़ी भी नासिक के प्याज के खेते से आ रही हैं।
खैर अब देखता हूँ।
3 comments:
सत्संग में लोग कम ही आते हैं...
मगर ड्रामेबाजी में....?
@ शास्त्री जी ! आपने सही कहा .
धन्यवाद .
लिखना यदि ढेर सारी टिप्पणियाँ बटोरने के लिए हो रहा है तो रचनाकार को नीराश होना पड़ेगा ! क्यों न हम सबको अपनी अपनी पसंद रूचि के अनुसार पढने की, टिप्पणी करने की छुट दे ?
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