धीरे-धीरे कट रहा है हर नफ़स का तार क्यों.
जिंदगी से हम सभी हैं इस कदर बेजार क्यों.
हम खरीदारों पे आखिर ये नवाजिश किसलिए
घर के दरवाज़े तलक आने लगा बाज़ार क्यों.
दूध के अंदर किसी ने ज़ह्र तो डाला ही था
यक-ब-यक बच्चे भला पड़ने लगे बीमार क्यों.
धूप में तपती नहीं धरती जहां एक रोज भी
रात दिन बारिश वहां होती है मुसलाधार क्यों.
बात कुछ तो है यकीनन आप चाहे जो कहें
आज कुछ बदला हुआ है आपका व्यवहार क्यों.
पांव रखने को ज़मी कम पड़ रही है, सोचिये
यूं खिसकता जा रहा है आपका आधार क्यों.
---देवेंद्र गौतम
ग़ज़लगंगा.dg: धीरे-धीरे कट रहा है हर नफ़स का तार क्यों:
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और शैतान का उन लोगों पर कुछ क़ाबू तो था नहीं मगर ये (मतलब था) कि हम उन
लोगों को जो आख़ेरत का यक़ीन रखते हैं उन लोगों से अलग देख लें जो उसके बारे
में शक में (पड़े) हैं और तुम्हारा परवरदिगार तो हर चीज़ का निगरा है
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और शैतान का उन लोगों पर कुछ क़ाबू तो था नहीं मगर ये (मतलब था) कि हम उन
लोगों को जो आख़ेरत का यक़ीन रखते हैं उन लोगों से अलग देख लें जो उसके बारे
में शक ...
1 comments:
उम्दा -
बहुत बढ़िया-
आभार आदरणीय ||
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