असम हिंसा को लेकर पूरे देश में अफवाह फ़ैलाने के लिए पाकिस्तान और बांग्लादेश से जिस तरह सोशल नेटवर्किंग साइट्स और वेबसाइट्स का दुरूपयोग किया गया उसे देखते हुए प्रेस काउंसिल की तर्ज़ पर एक वेब काउंसिल के गठन की जरूरत महसूस हो रही है. भारत सरकार ने इस दिशा में पाकिस्तान सरकार से लेकर नेटवर्किंग साइट्स की भूमिका पर आपत्ति जताई है. केस-मुक़दमे की भी तैयारी है. लेकिन भविष्य में इस तरह की साजिश न हो और हो तो उसका तुरंत मुहतोड़ जवाब दिया जा सके इसके लिए इतना पर्याप्त नहीं है. यह सही है कि इंटेलिजेंस एजेंसियों में साइबर अपराध पर नियंत्रण के लिए विशेष सेल हैं. लेकिन इस तरह की साजिशों से निपटने की लिए जिस मुस्तैदी की जरूरत पड़ती है उसके लिए भारत के वेब जगत के सक्रिय लोग ज्यादा कारगर भूमिका निभा सकते हैं. वे अपनी रचनाओं और अपने नेटवर्क के जरिये तुरंत इस हमले की काट कर सकते हैं. इसमें जांच और उसकी रिपोर्ट आने और उसका विश्लेषण किये जाने तक की मोहलत नहीं होती. यदि सरकार ब्लॉग, वेबसाट्स और पोर्टल का संचालन करनेवाले जिम्मेवार लोगों को मिलकर वेब काउंसिल का गठन करे तो आनेवाले दिनों में राष्ट्र विरोधियों के छायायुद्ध का बेहतर जवाब दिया जा सकेगा.
--देवेंद्र गौतम
fact n figure: प्रेस काउंसिल की तर्ज़ पर बने वेब काउंसिल:
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ऐ मेरे पालने वाले जिस बात की ये औरते मुझ से ख़्वाहिश रखती हैं उसकी निस्वत
(बदले में) मुझे क़ैद ख़ानों ज़्यादा पसन्द है और अगर तू इन औरतों के फ़रेब
मुझसे दफा न फरमाएगा तो (शायद) मै उनकी तरफ माएल (झुक) हो जाँऊ ले तो जाओ और
जाहिलों में से शुमार किया जाऊँ
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तो जब ज़ुलेख़ा ने उनके ताने सुने तो उस ने उन औरतों को बुला भेजा और उनके
लिए एक मजलिस आरास्ता की और उसमें से हर एक के हाथ में एक छुरी और एक (नारंगी)
दी (...
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