कबीर दास जी ने अपने समय में सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जितना कड़ा संघर्ष किया, वह उन्हें समाज में सम्मान दिलाने के लिये काफ़ी है. हम भी उनकी कोशिशों का सम्मान करते हैं. उनका सम्मान करने के बावजूद उनसे असहमति हो सकती है. इसे सामने रखते हुए निम्न परिचर्चा में भाग लें-
बैकुण्ठ के विषय में कबीर दास जी का अनुमान क्या था ?
वह अपने एक दोहे में कहते हैं कि
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय।
जो सुख साधु संग में, सो बैकुंठ न होय।।
कबीर दास जी के आराध्य राम उन्हें बैकुंठ अर्थात स्वर्ग में आने का बुलावा भेजते हैं तो वह रोने लगते हैं। उन्हें लगा कि बैकुंठ से ज़्यादा सुख साधुओं की संगत में मिलता है। कबीर दास जी को लगा कि बैकुण्ठ में साधुओं का संग नहीं मिलेगा. उनका यह अनुमान ग़लत था. बैकुण्ठ में भी साधुओं का संग मिलता है और भरपूर मिलता है. बैकुण्ठ में केवल साधुओं का संग ही मिलता है , वहां दुर्जन नहीं होते. इसी के साथ बैकुण्ठ में अपने आराध्य से मिलन भी उच्चतम स्तर पर होता है . वेद, बाइबिल और क़ुर्,आन सबमें यही लिखा है. जो बात आम आदमी भी जानता है, उसे कबीर दास जी नहीं जान पाये और लोग है कि उन्हें संत और परम संत मानते हैं बल्कि कुछ भ्रम के मारे तो उन्हें परमेश्वर तक कह देते हैं. किसी को संत या परमेश्वर कहने से पहले उसके लक्षण ज़रूर चेक कर लीजिये. तभी पता चलेगा कि उसे हक़ीक़त का कितना इल्म है ?
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