रविश कुमार जी भी इस मानसिकता से बख़ूबी वाक़िफ़ हैं। अपनी एक पोस्ट में वह अपना अनुभव इन अल्फ़ाज़ में लिखते हैं-
"मैंने देखा है कि चार आने के एंकरों को टेढ़ा होकर चलते हुए और सामने आते हुए लोगों को गेस करते हुए कि ये वाला पहचानेगा कि नहीं। पहचान लिया तो बस हां हां। ये सब बीमारी है।"
दूसरे ब्लोगों को बकवास कहना हिन्दी ब्लोगिंग को नुकसान पहुँचाना है
Dr. Ayaz Ahmad |
Gyan Darpan
और अगर उनकी बात गलत है तो रचना जी को उचित जवाब देना चाहिए। मगर इस बात से तल्खी का कोई भी ताल्लुक नहीं होना चाहिए। ब्लॉग जगत में वैचारिक मतभेदों से मनभेद की नौबत आना ठीक बात नहीं है।