सत्य और असत्य का संघर्ष शुरू से ही चला आ रहा है। यह आज भी जारी है।
इसे पहचानने के लिए हमें यह देखना होगा कि हमारे समाज में कौन सकारात्मक सोच फैला रहा है और कौन नकारात्मक सोच का प्रचार कर रहा है ?
सकारात्मकता एक नया शब्द है। पुराने दौर में इसके अच्छाई और भलाई का शब्द इस्तेमाल होता था। ऐसे ही नकारात्मकता को पाप और बुराई नाम से जाना जाता था। दौर बदल गया है। शब्द बदल गए हैं लेकिन लोगों की प्रवृत्तियां आज भी वही हैं। किसी इंसान को देखकर लोग उसे देवता और फ़रिश्ते की उपाधि देते हैं और किसी इंसान को देखकर राक्षस और शैतान की।
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