कुछ लोग नेता नहीं होते लेकिन अपनी पूंजी या ज़ोरदार भाषणबाज़ी के बल पर वे संसद या विधान सभा के लिए चुन लिये जाते हैं। उन्हें समस्याओं को हल करना नहीं आता और उन्हें हल करना भी नहीं होता। उनके क्षेत्र के लोगों से पूछिए तो वे उनसे नाराज़ मिलेंगे। ठोस काम न करने वाले ऐसे नेता हमेशा चुनाव में जनता द्वारा ठुकरा दिए जाते हैं। लिहाज़ा तुरूप के पत्ते के तौर पर वे भावनात्मक मुददे उठाते हैं। जनता को एक दूसरे के खि़लाफ़ नफ़रत दिलाते हैं।
‘वंदे मातरम्‘ पर विवाद ऐसे ही लोगों की देन है। जनता को ऐसे नेताओं से होशियार रहना चाहिए। जिनके अमल से समाज कां आपसी सद्भाव ख़त्म होता हो और नफ़रत बढ़ती हो।
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‘वंदे मातरम्‘ पर विवाद ऐसे ही लोगों की देन है। जनता को ऐसे नेताओं से होशियार रहना चाहिए। जिनके अमल से समाज कां आपसी सद्भाव ख़त्म होता हो और नफ़रत बढ़ती हो।
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3 comments:
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल १४ /५/१३ मंगलवारीय चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
बिल्कुल सही कहा है आपने .आभार .अख़बारों के अड्डे ही ये अश्लील हो गए हैं .
@ Rajesh ji ! मेरी पोस्ट् का लिंक देने के लिये आभार .
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