धर्म को विदा करो, विवेक को अपनाओ (कहानी)
ज्ञानतंत्र की रहस्यबोध कथाएं वैसे तो उनका नाम तुषार था लेकिन श्री श्री गजदन्त प्रवेश पीड़क देव जी महाराज ने उसका अनुवाद करके उसे सरल कर दिया था। वह उन्हें ओला कहकर बुलाते थे। ओला बाबू ग़ज़ब के पियक्कड़थे। जब वे पी लेते थे तो बाज़ारे हुस्न की तरफ़ उनके क़दम ख़ुद ब ख़ुद उठ जाते थे। घर पर भी उनकी गर्लफ़्रेंड सेलेकर ब्वायफ़्रेन्ड तक सभी...
1 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार को (22-11-2013) खंडित ईश्वर की साधना (चर्चा - 1437) में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Post a Comment