क्या इसी सभ्यता पर करेंगे हिंदी का सम्मान [ दूसरा भाग]
पिछले भाग में हम बात कर रहे थे अशोभनीय टिप्पणियों की, बिना किसी लाग लपेट के हम कहना चाहेंगे की हम ब्लॉग में अपने अधिकारों का सदुपयोग नहीं दुरुपयोग कर रहे हैं. जब हम किसी से खुद के सम्मान की अपेक्षा रखते हैं तो निश्चित रूप से हमें दूसरों का भी सम्मान करना होगा, किसी भी एक व्यक्ति के लिए हम सम्पूर्ण समुदाय को दोषी नहीं ठहरा सकते, निश्चित रूप से कुछ भटके लोग इस्लाम या हिंदुत्व के नाम पर आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं. पर उनके किये गए कृत्यों से पूरा जनमानस प्रभावित होता है. चंद भटके हुए लोग सामाजिक विन्ध्वंस का काम करते हैं, जिसका भुगतान सर्व समाज को करना पड़ता है. पर उसके लिए कोई भी धर्म दोषी नहीं है. यदि यह जिम्मेदारी हम किसी विशेष धर्म या समुदाय के ऊपर थोपते हैं तो निश्चित रूप से सामाजिक विन्ध्वंस में हम भी दोषी है. यदि हम यह अपेक्षा करते हैं की दूसरे लोग सुधर जाय तो पहले हमें सुधर कर दिखाना होगा..... यहाँ आयें .........
और (ऐ रसूल) कु़रान में (कुछ) मूसा का (भी) तज़किरा करो इसमें शक नहीं कि वह
(मेरा) बन्दा और साहिबे किताब व शरीयत नबी था
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और (ऐ रसूल) कु़रान में (कुछ) मूसा का (भी) तज़किरा करो इसमें शक नहीं कि वह
(मेरा) बन्दा और साहिबे किताब व शरीयत नबी था (51)
और हमने उनको (कोहे तूर) की दाह...