एक ब्लोगर भाई धीर गम्भीर और कविता गुरु कुंवर कुसुमेश जी हैं जिन्हें अगर में नहीं पढ़ पाता या जिन तक मेरी पहुंच नहीं होती तो शायद में खुद को इस ब्लोगिंग और अध्ययन की दुनिया में अधूरा मानता इनका रोज़ लिखा जाने वाला काव्य साहित्य सीधे आँखों के रास्ते से कुंवर कुसुमेश जाकर दिल में उतरता है और फिर दिमाग को सोचने पर जमीर को झकझोरने पर मजबूर कर देता है लेखन की जमीर को जगा देने वाली जो ताकत है वोह इन जनाब कुंवर कुसुमेश जी में है .
आदरणीय कुंवर कुसुमेश जी लखनऊ उत्तर प्रदेश में जीवन बीमा निगम में जिला प्रबन्धक पद से रिटायर है और बीमा कम्पनी में क्लेम देते वक्त फाइनल करते वक्त कई लोगों का दर्द इन्होने नजदीक से देखा हे , कई लोगों के फर्जी क्लेम उठाने का झूंठ इन्होने पकड़ा हे कुशल प्रंबधक के रूप में इन्होने दफ्तर का काम अनुशासन से किया हे इसीलियें अनुशासन और अदब इनकी पहली शर्त हे अदब में साहित्य और तमीज़ दोनों चीजें शामिल हैं .
कुंवर कुसुमेश जी ऐसे पहले ब्लोगर हैं जिन्हें पढ़कर मुझे इनसे जलन हुई हे क्योंकि भाई में टिप्पणी फकीर हूँ और यह टिप्पणी सेठ टिपण्णी के धीरुभाई अम्बानी हैं इनकी हर रचना पर कमसेकम सत्तर लोगों की दाद होती हे और अधिकतम तो सो से भी ऊपर होती ही हे इनकी प्रमुख रचना फिर सलीबों पर मसीहा होगा जरा देखें जिंदगी का सच समझ में आ जाएगा इनके अनुभवों की वजह हे जो कुंवर कुसुमेश जी ने मोसम,युद्ध फोजी से लेकर जिंदगी के हर पहलु को अपनी रचना में समेटा हे और इनकी हर रचना पढ़नेवालों के दिल में इस कद्र उतरी है के उसके मुंह से बेसाखता वाह और हाथों की उँगलियों से कम्प्यूटर पर टिप्पणी निकल पढ़ी हे इन जनाब ने अब तक तीन बहतरीन पुस्तकों का प्रकाशन भी कर दिया है इनकी रचनाएँ कम लेकिन गुणवत्ता वाली है और फालतू लफ्फाजी दे दूर और कुछ ना कुछ सोच को लेकर लिखी गयी होती हैं इन जनाब ने जुलाई २०१० से ब्लोगिंग की और आज १०९ लोग इनके फोलोवार्स हैं जबकि सेकड़ों लोग इनके टिप्पणीकार हैं ऐसे साहित्यकार की रचनाएँ पढ़ कर में तो भाई धन्य हो गया ..........
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
14 comments:
भाई अख्तर खान अकेला जी, आपने इस लेख के ज़रिये जिस एह्तरामो-इज्ज़त से मुझे नवाज़ा है उसके लिए मैं आपका शुक्र गुज़ार हूँ.मैंने हमेशा दूसरे के दर्द को अपना समझा है,उसे शिद्दत से महसूस किया है,बस इसी की झलक मेरी कविताओं/ग़ज़लों आदि के माध्यम से मुमकिन है आप तक और अन्य पाठकगण तक स्वतः पहुंच पा रही होगी,ऐसा मैं समझता हूँ. किसी के भी दिल से निकली हुई बात एक खुशबू की मानिंद होती है जिसे हर हाल में दूर तक जाना ही होता है, हालात और माहौल चाहे कुछ भी हो . टिप्पणियों का ज़िक्र करते हुए आपने लिखा कि आपको मुझसे जलन होती है,मुझे तो इसमें भी आपका प्यार ही नज़र आता है,जलन ज़रा सी भी नहीं.मुझे जीवन में अभी भी बहुत कुछ सीखना है,मुझे अपने दोस्तों और शुभचिंतकों की हमेशा ज़रुरत रहेगी.मुझे यक़ीन है कि मुझे उनका साथ हमेशा मिलता रहेगा.भाई अनवर जमाल जी का भी शुक्रिया कि उन्होंने मुझे इस लायक समझा और आप द्वारा, मुझसे सम्बंधित, लिखी पोस्ट अपने ब्लॉग पर लगाई.
जनाब अख्तर खान साहब ! आपने एक ऐसे शख्स के बारे में जानकारी दी जो कि शायरी के फ़न में एक आला मक़ाम रखते हैं . इस बहाने कुसुमेश जी यहाँ तक आये तो सही . हम चाहेंगे कि जब वे आ ही गए हैं तो फिर वापस न जाने पायें बिना मेंबर बने . कुसुमेश जी अगर इस समाचार पत्र में योगदान के लिए जुड़ें तो हमें दिली खुशी होगी .
शुक्रिया आपका भी और कुसुमेश जे का भी .
आप संतुलन ढूंढ लीजिये आपको धर्म मिल जायेगा या फिर आप धर्म ढूंढ लीजिये आपको सभ्यता के संतुलन का सूत्र मिल जायेगा Balance your life and society
आदरणीय जी कुंवर कुसुमेश की रचनाओं का तो में भी कायल हूँ उन्हें पढना सकूँ देता है और उनकी प्रत्येक रचना दिल पर असर करती है जो कि इनकी रचनात्मकता का एक सकारात्मक पहलु है ...आपका आभार इनका परिचय इस रूप में करवाने के लिए ...!
कुँवर सुसुमेश जी मेरे मित्रों में हैं!
इनका परिचय प्रकाशित करने के लिए आपका आभार!
अख्तर जी कुसुमेश जी के लेखन के तो हम भी कायल हैं और उनके बारे मे जानकारी आपने दी है वो पढकर और अच्छा लगा……………आपका आभार्।
अख्तर जी कुसुमेश जी के बारे में कुछ भी कहना हमारे वश कि बात नहीं है.काव्य जगत को इनके रूप में सच कहूँ तो एक दूसरा "कोहनूर" मिला है.ऐसा बहुत कम देखने में आता है.आपका यह प्रयास सराहनीय है.
aapki kalam ne kusumesh ji ko sahi samman diya hai
अख्तर जी कुसुमेश जी कि रचनाओं के तो हम जबरदस्त फैन हैं | और रही बात उनकी टिप्पड़ियों कि तो टिप्पड़ियां तो अलग हैं , इनकी रचनाएं बहुत पड़ी जाती हैं और लोग बहुत पसन्द करते हैं , यहाँ तक कि हमारे महाविद्यालय में मेरे जो सह्कर्मिन हैं वो सब बहुत पसन्द करतें हैं |
कुवर साहब के ग़ज़ल और दोहे महज ग़ज़ल और दोहे नहीं होते बल्कि समाज के प्रति जिम्मेदार भी होते हैं. पर्यावरण पर उनके कई दोहे उत्कृष्ट हैं और मुझे अब भी याद हैं जैसे....
"अभी भी हो रहा पृथ्वी का दोहन,
पचासों ज़लज़ले झेले भयंकर."
पौधे अवशोषित करें,हर ज़हरीली गैस.
मानव करता फिर रहा,उनके दम पर ऐश.
चुपके चुपके काटता,जंगल सारी रात.
दिन भर जो करता मिला,हरियाली की बात.
अरे ! कुल्हाड़ी पेड़ पर,क्यों कर रही प्रहार.
ये भी मानव की तरह,जीने के हक़दार.
ग्रहण विषैली गैस कर,प्राणवायु का त्याग.
पेड़ प्रदर्शित कर रहे,जग के प्रति अनुराग.
मैं खुदको कहुश्किस्मत समझता हूँ कि मुझे कुसुमेश जी को पढ़ने का मौका मिलते रहता है ... इनकी रचनाएँ बहुत सुन्दर और उच्च कोटि के होती हैं ...
केवल इतना ही नहीं इनका व्यक्तित्व भी बहुत सुन्दर है ...
इनको ढेरों शुभकामनायें !
दर्द उठे जिस हृदय में,देख जगत का क्लेश !
गीत,ग़ज़ल दोहे लिखें, नाम 'कुंवर कुसुमेश' !
अदभुत रचनाकार हैं कुसुमेश जी !
आभार !
कुंवर जी को मैं ब्लॉग जगत में ग़ज़लों का बादशाह कहता हूं। वे उन विरल रचनाकारों में से हैं जिनकी रचनाएं एक अलग राह अपनाने को प्रतिश्रुत दिखती हैं। अपने समय के ज्वलंत प्रश्नों को समेट बाज़ारवादी आहटों और मनुष्य विरोधी ताकतों के विरुद्ध उन्होंने कई रचनाएं लिखी हैं जो अपनी उदासीनताओं के साथ सोते संसार की नींद में खलल डालता है। उनकी रचनाएं सनसनी नहीं संवेदना में जीती हैं।
kusumesh ji uchchkoti ke kvi hain ismen sndeh nhi
esi post likhne ke lie akela ji bhi bdhaai ke patr hain
कुसुमेश जी के लेखन के तो हम भी कायल हैं
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