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एक बेहतरीन व्यंग्य के माध्यम से सच्चाई को सामने रख रहे हैं जनाब समीर लाल जी । देखिए उनकी रचना का एक अंश।
स्रोत :
http://udantashtari.blogspot.com/2011/08/blog-post_18.html?utm_source=feedburner&utm_medium=feed&utm_campaign=Feed%3A+udantashtari+%28udantashtari%29
तो खैर मैं उसे चायनीज़ में लिखा मान कर चल रहा हूँ. डिलिट करने की इच्छा होते हुए डर रहा हूँ या यूँ कहें कि संकोच कर रहा हूँ कि कहीं चाईना में कोई सम्मान समारोह में सम्मानित करने के लिए तो नहीं बुलाया गया है और मैं डिलिट करके बैठ जाऊँ. बाद में पछताने के सिवाय क्या हाथ लगेगा? हो सकता है हिन्दी के प्रचार प्रसार का हमारा जज्बा देखकर वो चाईनीज़ के प्रसार प्रसार के लिए मुझे प्रेरणा पुँज मानते हों और बुलाकर सम्मान करना चाहते हों, कौन जाने!!! वैसे भी सम्मान समारोह में, मुद्दा आपका काम नहीं, मुद्दा उनके द्वारा सम्मान देने का है. दृढ़ इच्छा शाक्ति सम्मान के प्रायोजकों की मायने रखती है, फिर एक बार उन्होंने यह तय मान लिया कि आपका सम्मान करना है तो सम्मानित करने की कोई न कोई वजह तो हर व्यक्ति में निकाली जा सकती है.
बहुत संभव है कि शायद मुझे बुला कर सम्मान में चाईना रत्न या चाईना का साहित्य भूषण देना चाहते हों. हो सकता है कि चाईना रत्न बिना जुगाड़ के सच में सराहनीय कार्य करने के लिए दिया जाता हो या चाईना साहित्य भूषण वाकई साहित्यिक प्रतिभा को आधार मान कर देते हों. भारतीय होने की वजह से यह किचिंत आश्चर्यजनक बात लग सकती है किन्तु हर देश के अपने अपने रिवाज और नितियाँ होती हैं. हो सकता है चाईना में ऐसा होता हो.
और जब बात सम्मान की है तो यूँ भी हिन्दी वालों को सम्मान के सिवाय और उम्मीद भी कौन बात की रहती है. नगद या बुकर प्राईज़ तो मिलने से रहा!! जो भी नगद राशि सम्मान प्रशस्ति पत्र के साथ नथ्थी कर दो, सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं. वरना तो शाल और नारियल में भी हर्षित रहते हैं.
4 comments:
आपका आभार!!! यह भी एक सम्मान हो गया. :)
चाइना का सम्मान लेने से तो अच्छा है की ब्लोगर सारी जिंदगी बगैर किसी सम्मान के रह ले
वह दिन खुदा करे कि तुझे आजमायें हम
" gurudev ka jawab nahi "
हिन्दी वाले हिन्दोस्तान में ख़ूब सम्मानित हैं अब चाइना में ही बाकी है जमाल साहब! एक 'ग़ाफ़िल' से मुलाक़ात याँ पे हो के न हो
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