ब्लॉगर्स मीट के बारे में
(1) रचना has left a new comment on the post "हिंदी ब्लोगिंग में स्नेह और प्यार -सतीश सक्सेना":
परिवार तो बच जाता हैं सतीश जी पर समाज रीढ़ विहीन हो जाता हैं जब हम मुद्दों से बचते हैं और स्नेह और समझदारी की बात करते हैं केवल इस लिये की टिप्पणी की संख्या में कमी .
(2) रचना has left a new comment on the post "हिंदी ब्लोगिंग में स्नेह और प्यार -सतीश सक्सेना":
ब्लॉग परिवार का ढोंग करने से क्या हासिल होता हैं ?
क्या आप के साथ कभी नहीं हुआ की इस परिवार के पीछे आप ने सच को नकार दिया वहाँ कमेन्ट नहीं दिया जहां आप के मित्र ब्लोग्गर गलत लिखते हैं क्या कभी आप की आत्मा ने आप को कचोटा हैं की हाँ मैने गलत किया इस मुद्दे पर अपने ख्याल ना देकर क्युकी ये मेरे दोस्त का ब्लॉग था और मेरे कमेन्ट करने से वो नाराज हो जाएगापरिवार तो बच जाता हैं सतीश जी पर समाज रीढ़ विहीन हो जाता हैं जब हम मुद्दों से बचते हैं और स्नेह और समझदारी की बात करते हैं केवल इस लिये की टिप्पणी की संख्या में कमी .
(2) रचना has left a new comment on the post "हिंदी ब्लोगिंग में स्नेह और प्यार -सतीश सक्सेना":
अब तो सबके कमेन्ट आ चुके हैं सो कुछ प्रश्न हैं सोचा अब पूछ ही लूँ
इतनी सारी ब्लॉग मीटिंग के बाद
हिंदी को कितना आगे लेजाने में आप सक्षम हुए हैं ?
ब्लोगिंग को इस से कितना फायदा हुआ हैं ?
किस सामाजिक समस्या के लिये ब्लॉग समाज जो वास्तविक धरातल पर मिल चुका उसने कुछ किया हैं
क्या मसौदा होता हैं इन मीट का और क्या उस पर कभी बात भी होती हैं ?
हर बार कहा ये ही जाता हैं { जो ब्लॉग पर पढ़ कर पता चलता हैं } समय अभाव के कारण ब्लोगिंग पर ज्यादा बात नहीं हुई बस मिलना हुआ .
केवल और केवल खाना पीना और ग्रुप बना कर एक दूसरे के ब्लॉग पर एक दूसरे की तारीफ़ में पोस्ट लिखना क्या यही हैं हिंदी ब्लॉग्गिंग की सकारात्मकता जिसके इतना बखान होता हैं ?
और क्या कभी आप ने ब्लॉग पर क़ोई सर्वे किया हैं की जो ज्यादा सक्रिय हैं ब्लोगिंग में वो इन मीटिंग में आते ही नहीं .
ये मीटिंग केवल अपने सामाजिक सरोकारों को बढ़ावा देना का माध्यम हैं और उससे ज्यादा कुछ नहीं
इतने चित्र डाल कर क्या हासिल होता हैं की हम कितने प्रिये और पोपुलर हैं !
चाय नाश्ता खाना पीना सब ठीक हैं अगर किसी मकसद से मिलना हो तो वर्ना इसको ब्लॉगर मीट कहना फिजूल ही हैं क्युकी ये फैशन हो गया हैं की हम ब्लोग्गर हैं , हम मिले , हम बैठे , हमने बीयर पी , हमने ब्लडी मेरी पिलाई .
ठीक हैं आप को या किसी को शौक हो सकता हैं अपने सामाजिक सरोकार बढाने का पर उसको मीट ना कहा करे . मीट हो तो क़ोई मुद्दा तो हो जिस पर डिस्कशन हो यहाँ तो गाना बजना , ग़ज़ल कविता होती हैं हम किसी कवि सम्मलेन में नहीं जा रहे और ना ही किसी की ग़ज़ल सुनने ये सब पहले ही बता देना चाहिये ताकि जो लोग आते हैं उनको पता हो किस लिये आना हैं .
स्नेह प्रदर्शन के लिये मीट जरुरी हैं पता नहीं था और स्नेह का प्रदर्शन भी होना चाहिये ये भी पता नहीं था .
इतनी सारी ब्लॉग मीटिंग के बाद
हिंदी को कितना आगे लेजाने में आप सक्षम हुए हैं ?
ब्लोगिंग को इस से कितना फायदा हुआ हैं ?
किस सामाजिक समस्या के लिये ब्लॉग समाज जो वास्तविक धरातल पर मिल चुका उसने कुछ किया हैं
क्या मसौदा होता हैं इन मीट का और क्या उस पर कभी बात भी होती हैं ?
हर बार कहा ये ही जाता हैं { जो ब्लॉग पर पढ़ कर पता चलता हैं } समय अभाव के कारण ब्लोगिंग पर ज्यादा बात नहीं हुई बस मिलना हुआ .
केवल और केवल खाना पीना और ग्रुप बना कर एक दूसरे के ब्लॉग पर एक दूसरे की तारीफ़ में पोस्ट लिखना क्या यही हैं हिंदी ब्लॉग्गिंग की सकारात्मकता जिसके इतना बखान होता हैं ?
और क्या कभी आप ने ब्लॉग पर क़ोई सर्वे किया हैं की जो ज्यादा सक्रिय हैं ब्लोगिंग में वो इन मीटिंग में आते ही नहीं .
ये मीटिंग केवल अपने सामाजिक सरोकारों को बढ़ावा देना का माध्यम हैं और उससे ज्यादा कुछ नहीं
इतने चित्र डाल कर क्या हासिल होता हैं की हम कितने प्रिये और पोपुलर हैं !
चाय नाश्ता खाना पीना सब ठीक हैं अगर किसी मकसद से मिलना हो तो वर्ना इसको ब्लॉगर मीट कहना फिजूल ही हैं क्युकी ये फैशन हो गया हैं की हम ब्लोग्गर हैं , हम मिले , हम बैठे , हमने बीयर पी , हमने ब्लडी मेरी पिलाई .
ठीक हैं आप को या किसी को शौक हो सकता हैं अपने सामाजिक सरोकार बढाने का पर उसको मीट ना कहा करे . मीट हो तो क़ोई मुद्दा तो हो जिस पर डिस्कशन हो यहाँ तो गाना बजना , ग़ज़ल कविता होती हैं हम किसी कवि सम्मलेन में नहीं जा रहे और ना ही किसी की ग़ज़ल सुनने ये सब पहले ही बता देना चाहिये ताकि जो लोग आते हैं उनको पता हो किस लिये आना हैं .
स्नेह प्रदर्शन के लिये मीट जरुरी हैं पता नहीं था और स्नेह का प्रदर्शन भी होना चाहिये ये भी पता नहीं था .
12 comments:
Rachna ji ne khari khari hi nahi sahi sahi bhi kahi hai .blogar meet me koi mudda to hona hi chahiye jisse bloging karne valon ko kuchh naya gyan mile .badhai Anwar ji Rachna ji ka comment yahan prastut karne ke liye .aabhar
क्या संबंधित बलॉग पर उक्त टिप्पणी की एडिटिंग कर दी गई है?
मुझे तो बस पहला परिच्छेद ही दिखाई दिया।
@ मनोज भारती जी , आप सही कह रहे हैं।
आपके ध्यान दिलाए जाने पर हमने भी जाकर देखा तो पाया कि रचना जी के दो कमेंट्स में से उनका पहला कमेंट तो मूल पोस्ट पर है लेकिन दूसरा कमेंट वहां नहीं है।
ख़ैर होगी कोई बात, जिसकी वजह से हटा दिया होगा।
यहां उनके दोनों कमेंट्स हैं और आप दोनों कमेंट्स यहां देख भी सकते हैं।
‘ब्लॉग की ख़बरें‘ इसी तरह अपने पाठकों को जागरूक रखता है नई नई हलचल के बारे में।
आप का शुक्रिया कि आपने जाकर चेक किया और फिर लौटकर बताया भी।
आप देखेंगे कि जल्दी ही वह दूसरा कमेंट भी वापस अपनी जगह आ जाएगा। जब उन्हें पता चलेगा कि हटाने के बावजूद भी हक़ीक़त बेनक़ाब है ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ पर !!!
ब्लॉगिंग के स्वरूप और भविष्य को लेकर ऐसी चर्चाओं से ही कोई रास्ता निकलेगा।
@ शिखा जी ! आपने बिल्कुल सही कहा है रचना जी के इन दोनों कमेंट्स की तरह। वैसे भी उनकी सारी बातें ग़लत नहीं होतीं।
आपका शुक्रिया ।
@ आदरणीय कुमार राधारमण जी ! आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। हिंदी ब्लॉगिंग को नुक्सान देने वाली बातों के प्रति जागरूकता लोगों में ऐसी चर्चाओं से ही आएगी और आ भी रही है जैसे कि रचना जी के कमेंट्स में उठाए गये मुद्दे आदमी को बग़लें झांकने पर मजबूर कर देते हैं।
आपका भी शुक्रिया !
बुरा मानो या भला, कुछ बातें खरी-खरी होनी भी चाहिए. पहला ब्लौगर्स मीट शायद रांची में ही हुआ था, जिसमें शामिल होने का मौका मुझे भी मिला था. हालत बहुत ज्यादा अलग नहीं थे, अलबत्ता शैलेश भारतवासी जी ने अपनी ओर से जानकारियां देने की कोशिश की थी. अपनी ओर से मैंने कुछ सुझाव भी पोस्ट्स के माध्यम से दिए थे. मगर अब भी यह फैमिली सीरियल्स के पुरष्कार समारोहों से ज्यादा अलग नहीं दिख रहा है.
1. http://ourdharohar.blogspot.com/2009/02/blog-post_26.html
2. http://ourdharohar.blogspot.com/2009/02/ii.html
ब्लोगर्स मीट को लेकर रचना जी के विचार सराहनीय हैं और ये सभी का कर्तव्य बनता hai ki सही बातें जहाँ से भी मिलें अपनाएं.सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार डॉ.साहब.
हमें भी ज्ञान मिला इस पोस्ट से!
*** दो साल ब्लॉगजगत में होने को आए। अब तक अपनी राह आप बनाकर चलता चल वाली स्थिति है .. आगे भी रहेगी। इसमें टिप्पणियों से प्रोत्साहन तो रहा है, मोह नहीं।
** जब तक कोई पोस्ट भड़काऊ, जाति-धर्म विद्वेश फैलाने वाली या व्यक्तिविशेष को केन्द्रीत कर आक्रोश और उन्माद से न लिखा गया हो मैं उसे अच्छा ही मानता हूं और सब पर जाकर टिप्पणी देना पसंद करता हूं।
*** अब तक किसी ब्लॉगर मीट में नहीं गया। कम से कम अफ़सोस नहीं है। हां, जहां तक मिलने मिलाने की बात होती है जहां दिल मिलते हैं, समय और सुअवसर हाथ लगता है मिल ही लेते हैं।
mai nahi jaanti ki blogger's meet mein kya hota hai... isiliye no comments...
par yadi "blog pariwaar" jaise shabdon ka upyog ho raha hai to kya pariwwar walo ko ek dooje se milne, ya kahi ek jagah ikathha hone ke liye muddon ki, bahasbaaziyon ki ya bhaasano ki aawyashkta hoti hai...
ya to sahi maayano mein ham kuch jyada hi busy,commercial, aur matlabi ho gae hain ki pariwaar walo se milne ke liye mudde chahiye...
Rachna jee ab badee ho agyee hain. Tippani zimmedaree ke saath kar rahe hain.
waise bhai yh doosree tippani kahan se laye?
rachna jee aap hee bataein yh doosree tippani kahan se ayee?
Maine ek buree adat seekhi Rachna jee se ,lagta hai satish ko bhee wahee adat lag gayee?
हमे भी ब्लाग के काफी जान्कारिया मिली है यहा आकर धन्यवाद्।
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