चर्चा मंच: "दिल को देखो : चेहरा न देखो ! " (चर्चा मंच-693)
हम चर्चा मंच के नियमित पाठक हैं। पिछले बुधवार की चर्चा में भाई अरूणेश दवे जी ने हमारे विरूद्ध लिखी एक पोस्ट को प्रमुखता से यहां पेश किया लेकिन हमने उस पर टिप्पणी नहीं दी क्योंकि एक व्यंग्यकार को हक़ है कि वह जो कहना चाहता है कहे।
अरूणेश जी को शायद हमसे ऐसी ख़ामोशी की अपेक्षा नहीं थी। सो वह अगले बुधवार की प्रतीक्षा करते रहे और आज यहां उन्होंने हमारे विरूद्ध लिखी व्यंग्यात्मक पोस्ट्स के लिंक भी दिए और यह भी बताया कि हमारा नज़रिया क्या है ?
अपनी पोस्ट्स के और दूसरों की पोस्ट्स के लिंक्स देना तो उनका हक़ है लेकिन उन्होंने हमारा नज़रिया जो बताया है वह एक अनाधिकार चेष्टा है।
सभी ब्लॉगर्स यह अच्छी तरह जानते हैं कि
1. मौलाना वस्तानवी का विरोध करने वाले आलिमों को हमने ऐलानिया ग़लत कहा।
2. अन्ना हजारे का विरोध करने पर हमने मौलाना अहमद बुख़ारी साहब के नज़रिये और तरीक़े को ग़लत कहा।
3. इंडिया इस्लामिक सभागार दिल्ली में नाच गाना होने के बाद हमने कहा कि ‘मुसलमानों का परम चरम पतन‘ हो चुका है।
इसी सिलसिले में हमने एक पोस्ट में कहा है कि उच्च शिक्षा को समस्याओं का समाधान समझा जाता है लेकिन जैसे जैसे उच्च शिक्षा बढ़ रही है, युवा वर्ग और देश की समस्याएं भी बढ़ रही हैं। इसका मतलब यह है कि इस आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में कहीं न कहीं कुछ कमी ज़रूर है।
4. हमने कहा है कि
जब हम मुसलमानों को दूध का धुला साबित नहीं कर रहे हैं तो फिर आप कैसे कुछ भी कह सकते हैं ?
‘लिव इन रिलेशनशिप‘ में रहने वाली लड़कियां सभी उच्च शिक्षित हैं।
आधुनिक शिक्षा भारतीय नौजवान लड़कियों को यह बना रही है।
इमोशनल अत्याचार नामक सीरियल में देखो कि क्या कर रहे हैं पढ़े लिखे हिंदू ?
...................
हमारा कहना यह है कि इन्होंने हिंदू का लेबल लगा लिया है लेकिन हिंदू होने के लिए कुछ साधना करनी पड़ती है वह इन्होंने की ही नहीं है। अगर ये उस साधना को करते तो ये इन कुकर्मों को कभी न करते।
बताओ हमारी बात कहां ग़लत है ?
यही बात जरायम पेशा मुसलमानों के लिए कहता हूं कि मुसलमान का केवल लेबल लगा लिया है। इस्लामी क़ायदे क़ानून पर चलते तो वे दूसरों की तबाही का ज़रिया न बनते।
देखिए लिंक :
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/BUNIYAD/entry/%E0%A4%95-%E0%A4%AF-%E0%A4%AE%E0%A4%B0-%E0%A4%B0%E0%A4%B9-%E0%A4%B9-%E0%A4%89%E0%A4%9A-%E0%A4%9A-%E0%A4%B6-%E0%A4%95-%E0%A4%B7-%E0%A4%A4-%E0%A4%B9-%E0%A4%A8-%E0%A4%A6-%E0%A4%AF-%E0%A4%B5
...और लुत्फ़ की बात यह है कि यह पूरी पोस्ट एक समाचार मात्र है जिसमें हमारी लिखी हुई केवल 3 पंक्तियां हैं और उन तीनों पंक्तियों में एक शब्द भी हिंदू धर्म की आलोचना में नहीं है।
......और यह भी सही है कि हम लोगों के विरोध को सकारात्मक रूप में ही देखते हैं और अपने विरोधियों को हमेशा अपने प्रचारक के रूप में ही देखते हैं। इनसे हमें अभी तक लाभ ही हुआ है। यही वजह है ज़्यादातर विरोधियों से हमारे दोस्ताना ताल्लुक़ात हैं।
वैसे भी हम इन्हें दिल का बुरा नहीं मानते, बस ग़लतफ़हमी का शिकार ही मानते हैं।
चर्चा मंच के व्यवस्थापक , पाठक और सभी लेखकों को शुभकामनाएं।
भाई अरूणेश दवे जी को विशेष तौर पर शुभकामनाएं !!!
और आख़ेरत और दुनिया (दोनों) ख़ास हमारी चीज़े हैं
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और जब वह हलाक होगा तो उसका माल उसके कुछ भी काम न आएगा (11)
हमें राह दिखा देना ज़रूर है (12)
और आख़ेरत और दुनिया (दोनों) ख़ास हमारी चीज़े हैं (13)
तो हमने ...
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