अमेरिका की गलतफहमी की जड़ यह है कि वह दुनिया में कहीं भी घटनाक्रम को मनचाहे ढंग से प्रभावित कर सकता है-या तो सीधे हस्तक्षेप से या किसी मोहरे के माध्यम से। ईरान में दोनों ही तरीके आजमाए जा चुके हैं। कभी किसी ‘हादसे’ में उस देश के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े वैज्ञानिक का देहांत हो जाता है या वह पागल हत्यारे का निशाना बनता है, ईरान पर नित नए प्रतिबंध लगाए जाते हैं या उसे धमकी दी जाती है कि इस्राइल उसके परमाणु ठिकानों पर हमला कर उन्हें ध्वस्त कर देगा। चुनाव के वक्त नए सामाजिक माध्यमों का भरपूर उपयोग वैधानिक तरीके से चुनी सरकार को अस्थिर करने के लिए किया गया।
अमेरिका का प्रयास यह भी रहा है कि वह भारत समेत दूसरे देशों को ईरान से विमुख कर सके। दुर्भाग्य से भारत इस जाल में फंस चुका है। अपने ऐतिहासिक संबंधों की अनदेखी कर अमेरिका के कहे अनुसार ईरान के पक्ष में मत न देकर उसने नाहक ईरान को खिन्न किया है। यह सुझाना बेमानी है कि उसने ऐसा अपने विवेक से या राष्ट्रहित में किया है, क्योंकि ईरान पाकिस्तान के एटमी कार्यक्रम को मदद देता रहा है। सच तो यह है कि इस खतरनाक तस्करी में हमारा अव्वल नंबर का आर्थिक साझीदार चीन और खुद अमेरिका भागीदार रहे हैं।
जहां तक ईरान का प्रश्न है, वहां इसलाम का स्वरूप सदियों से उदार, समन्वयात्मक और आध्यात्मिक-रहस्यवादी रहा है। हमारी संस्कृति को समृद्ध बनाने वाले तमाम सूफी ईरान से ही भारत आए थे। भाषा, भोजन, वेश-भूषा, भवन निर्माण जाने कहां-कहां ईरान के दर्शन अनायास भारत में होते हैं। हमारे लिए अपने राष्ट्रहित की हिफाजत के लिए अमेरिकी चश्मे से तत्काल निजात पाना बेहद जरूरी है।
अमेरिका का प्रयास यह भी रहा है कि वह भारत समेत दूसरे देशों को ईरान से विमुख कर सके। दुर्भाग्य से भारत इस जाल में फंस चुका है। अपने ऐतिहासिक संबंधों की अनदेखी कर अमेरिका के कहे अनुसार ईरान के पक्ष में मत न देकर उसने नाहक ईरान को खिन्न किया है। यह सुझाना बेमानी है कि उसने ऐसा अपने विवेक से या राष्ट्रहित में किया है, क्योंकि ईरान पाकिस्तान के एटमी कार्यक्रम को मदद देता रहा है। सच तो यह है कि इस खतरनाक तस्करी में हमारा अव्वल नंबर का आर्थिक साझीदार चीन और खुद अमेरिका भागीदार रहे हैं।
जहां तक ईरान का प्रश्न है, वहां इसलाम का स्वरूप सदियों से उदार, समन्वयात्मक और आध्यात्मिक-रहस्यवादी रहा है। हमारी संस्कृति को समृद्ध बनाने वाले तमाम सूफी ईरान से ही भारत आए थे। भाषा, भोजन, वेश-भूषा, भवन निर्माण जाने कहां-कहां ईरान के दर्शन अनायास भारत में होते हैं। हमारे लिए अपने राष्ट्रहित की हिफाजत के लिए अमेरिकी चश्मे से तत्काल निजात पाना बेहद जरूरी है।
1 comments:
अमेरिका अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकता है।
विचारणीय पोस्ट।
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