Khushdeep Sehgal said...
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दो दोस्तों ने फलों के कारोबार का फैसला किया...एक संतरे का टोकरा लेकर बैठ गया...एक केले का...दोनों ने फैसला किया सिर्फ कैश बिक्री करेंगे, उधार का कोई काम नहीं...थोड़ी देर बाद संतरे वाले को भूख लगी, उसने दो का सिक्का केले वाले को देकर केला लेकर खा लिया...केले वाले ने कहा, चलो बोहणी तो हुई...शाम तक दोनों के टोकरे खाली हो गए...पास ही संतरे और केले के छिलके के ढेर लग गए थे...दोनों ने कहा, चलो बिक्री तो बहुत बढ़िया हुई...अब कैश गिन लिया जाए...लेकिन ये क्या दोनों के पास कुल मिलाकर वो दो का सिक्का ही निकला...पूरा दिन वो एक दूसरे से कैश ले लेकर खुद ही सारे संतरे और केले चट कर गए थे....
- भाई ख़ुशदीप सहगल जी ने यह कथा हमें एक पुरानी पोस्ट पर सुनाई थी। आज जब उस पोस्ट पर जाना हुआ तो लगा कि यह कथा तो हमारे हिंदी ब्लॉग जगत का सच है।
‘प्रगतिशील ब्लॉग लेखक संघ‘ ने शिखर सम्मान की घोषणा कर दी है।
उत्सुकतापूर्वक हमने लिंक पर झांका तो वहां प्रमुख पुरस्कारों में हमें अपने श्री रवीन्द्र प्रभात जी और श्री अविनाश वाचस्पति जी के नाम नज़र आए।
अब हम बदल चुके हैं लिहाज़ा हम इन पुरस्कारों को न तो ‘उधार की चीनी के लेन देन से उपमा देंगे‘ और न ही ‘अंधे के रेवड़ी बांटने से‘।
वैसे भी अंधा इतनी ईमानदारी तो बरतता ही है कि रेवड़ियां अपनों को भले ही दे लेकिन ख़ुद कभी नहीं खाता।
यह ब्लॉगिंग भी बड़ी अजीब है,
यहां मेहनत भी करनी पड़ती है और फिर ख़ुद को पुरस्कृत भी स्वयं ही करना पड़ता है।
अगर ऐसा न किया जाए तो यहां कोई पुरस्कार देने वाला नहीं है चाहे वह कुमार राधारमण जी की तरह रोज़ाना सेहत पर लाभकारी जानकारी देता रहे या फिर अख़तर ख़ान अकेला की तरह निष्पक्ष ब्लॉगिंग करता रहे या फिर मासूम साहब की तरह ‘अमन का पैग़ाम‘ देता रहे या फिर वह 'भड़ास' की तरह सर्वाधिक पढ़ा जाने वाले ब्लॉग का संचालन ही करता रहे।
इतनी बात भी हम जाने क्यों कह गए ?
...लेकिन फिर हम यह भी सोचते हैं कि सच नहीं बोलेंगे तो आखि़र हम करेंगे क्या ?
वर्ना तो भाई दस पांच लोग आपस में मिलजुल कर ख़र्चा किसी पूंजीपति के ज़िम्मे थोप कर प्यार मुहब्बत से हंस बोल रहे हैं तो इसमें किसी का क्या जा रहा है ?
दूसरे भी इस तरह सम्मानित होना चाहें तो वे उन्हें रोक थोड़े ही रहे हैं।
अंत में हमें अपने चचा हकीम साहब याद आ गए। वे फल और सब्ज़ियों के आढ़ती वास्तव में ही हैं।
जो भी किसान अपना फल बेचने आता है। उसे बेचने से सबसे पहले वे उसमें से एक दो पीस अपने लिए रख लेते हैं।
...और भाई रखे भी क्यों न ?
दूसरा तो कोई इस बात का ख़याल करने से रहा कि बेचारा इतनी मेहनत करता है, इसे कोई पुरस्कार ही दे दो।
13 comments:
ब्लॉगजगत की कोई खबर (पोस्ट) आपकी नज़र से छुपती नहीं !
हिन्दी ब्लागिरी की जय हो!
अब तो सबको मान लेना चाहिये कि ब्लोग्गिन्ग भी साहित्य-जगत का ही हिस्सा है...
कर्म करते रहिए... फल की चिंता न करें।
सम्मान की प्रक्रिया पर आपत्ति हो सकती है,किन्तु किसी के सम्मान पर किसी को आपत्ति कैसे हो सकती है ? जब इस सम्मान के लिए मरे द्वारा एक वर्ष पूर्व ही प्रविष्टियाँ आमंत्रित की गयी थी और प्राप्त प्रविष्टियों के आधार पर ही चयन हुआ है तो फिर ब्लॉग जगत के किसी चिरकुटानन्द को इससे नाराजगी कैसे हो सकती है जिन्होनें न तो किसी प्रकार की प्रविष्टि प्रेषित की और न किसी के नाम का अनुमोदन ही किया !
### मनोज कुमार साहब , जो भी हिंदी ब्लॉगर है वह हिंदी की खि़दमत ही कर रहा है। ऐसे में आपके द्वारा किसी भी हिंदी ब्लॉगर को चिरकुटानंद कहना उसका अपमान करना है।
हिंदी ब्लॉगर का अपमान करने वाले आप जैसे लोगों को प्रतिष्ठित हिंदी ब्लॉगर्स ने प्रविष्टियां न भेजकर बता दिया है कि हक़ीक़त में इस हिंदी ब्लॉग जगत के चिरकुट आप ख़ुद ही हैं।
आइन्दा ज़रा सोच समझकर प्रविष्टियां मंगवाना वर्ना हर साल अपने ही ग्रुप के लोगों को सम्मानित करके काम चलाना पड़ सकता है।
ब्लॉग पर आना और लेखन कार्य केवल सम्मान पाने के लिए ही नहीं होता |लेखन मन के भाव जताने की एक सामान्य प्रक्रिया है |
लेख अच्छा है |
आशा
ब्लॉगिंग का अर्थ
@ आशा जी ! आपने लेख की तारीफ़ खुले दिल से की तो लगा कि हां सच को खुलकर स्वीकारने वाली औरतें आज भी हैं।
ब्लॉग एक ऐसी ऑनलाइन डायरी है जो दूसरे पढ़ने वालों के लिए भी खुली हुई है। इसमें आदमी कुछ भी लिख सकता है। जिसके दिल में जो भाव है या जो कुछ उसका तजर्बा है, वह बयान कर रहा है। जिसकी जैसी क्षमता है वह वैसा ही लिख रहा है।
चंद लोगों को पुरस्कार मिलना उन हज़ारों हिंदी ब्लॉगर्स के हौसले को पस्त कर देता है जो कि पुरस्कार पाने की तकनीक से नावाक़िफ़ हैं।
पुरस्कार वितरण और आयोजन प्रबंधन के लिए धन चाहिए और धन का जुगाड़ केवल कोई जुगाड़ी आदमी ही कर सकता है। इसी जुगाड़ में हिंदी ब्लॉगिंग का कबाड़ा हो चुका है लेकिन भाई लोग बाज़ ही नहीं आ रहे हैं।
जो लोग हमसे ज़्यादा समझदार हैं वे ख़ामोश हैं या गोल मोल बोल रहे हैं।
छल और प्रपंच का पर्दाफ़ाश किया जाए तो होता यह है कि वे ख़ुद तो ख़ामोश रहते हैं लेकिन कुछ ‘रीते हुए बर्तन‘ बजने लगते हैं ताकि वे उनकी नज़र में चढ़ जाएं कि देखो हम तुम्हारे ‘आड़ टैम‘ में काम आए थे। अगली बार कुछ बांटो तो कोई टुकड़ा हमारी तरफ़ भी उछाल देना।
इस पुरस्कार वितरण ने इस हद तक ज़मीरफ़रोशी पर आमादा कर दिया है, यह एक अफ़सोस की बात है।
ब्लॉगर बनकर भी सच खुलकर न कहा तो फिर ब्लॉगिंग का अर्थ ही न जाना। ऐसा हम समझते हैं।
आपके आने, सराहने और पसंद करने के लिए हम आपके तहे दिल से शुक्रगुज़ार हैं।
जो सम्मान जैसे पाक लफ्ज के विरोध में बातें कर रहे हैं वे ब्लॉग जगत के नए-नए मुल्ले है. ये भी कहाबत मशहूर है कि नया मुल्ला प्याज ज्यादा खाता है !
@ मनोज साहब ! अगर कोई ब्लॉगर आपको पुरस्कार पाने हेतु प्रविष्टि न भेजे या किसी के नाम का अनुमोदन न करे और आपके पुरस्कार वितरण की समीक्षा करे तो कभी आप उसे ‘चिरकुट‘ कहते हैं और कभी आप उसे नया मुल्ला कहते हैं।
यह तो आपका स्तर है सोचने का, और आप चाहते हैं कि हिंदी ब्लॉगर आपसे पुरस्कार पाने के लिए लाइन लगाकर खड़े हो जाएं।
आप अपनी पहली ब्लॉग पोस्ट देखें और फिर मुल्ला जी की चेक कर लीजिए,
आपको पता चल जाएगा कि नया मुल्ला है या कि पंडा ?
एक लेख ने ही इतना हवन्नक़ बना कर रख दिया है तो आगे कैसे झेल पाओगे ?
यहां सब लोग एक जैसे नहीं हैं।
कुछ लोग यहां सच ही बोलते हैं और किसी के ईनाम या विरोध की परवाह क़तई नहीं करते।
यह वक्त विजेताओं को शुभकामनाएं देने का है। आशा है,उनकी रचनाधर्मिता बाकियों को प्रेरित करती रहेगी।
शुरूआत से ही,ब्लॉगर जमात से कोई लालसा नहीं रही। पुरस्कार तो दूर की बात है,टिप्पणी की भी नहीं। जो सहज भाव से मेरे ब्लॉग को पढ़ते या उस पर कोई टिप्पणी करते हैं,उनका स्वागत है। जो नहीं करते,उनके प्रति शिकायत का कोई कारण नहीं बनता।
ओशो सिद्धार्थ कहते हैं-
देता है कोई पुरस्कार,नाहक पुलकित हो जाते हो
करता है कोई तिरस्कार,तुम व्यर्थ ख़फ़ा हो जाते हो
फटकार मिले या पुरस्कार
कौड़ी जैसे,दोनों अ-सार!
golmal hai bhai sab golmal hai .
कहानी बहुत अच्छी लगी |अंधा बांटे रेवड़ी फिर फिर अपने को दे |
आशा
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