बहुप्रतिक्षित उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2012 संपन्न हो गये, आशा के विपरीत समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला, बसपा क्यों हारी, राहुल का जादू क्यों नहीं चला या अखिलेश ने पार्टी को बदल दिया, यह विषय टीवी और अखबारों पर खूब देखा सुना, लेकिन भाजपा क्यों हारी, इस पर मंथन नहीं हुआ.
वास्तव में चुनावों के पूर्व बाबू सिंह कुशवाहा को गले लगाकर तो भाजपा ने अपनी हार के लिये सिर्फ एक बहाना ढूँढा था अन्यथा पार्टी ने अपनी हार की पटकथा पहले ही लिख दी थी.
सत्य यह है भाजपा अब नेताओं की पार्टी बन चुकी है, अब वह कैडर और कार्यकर्ताओं की पार्टी नहीं रही. नेताओं के भाषण और कृति में बडा फर्क हो चुका है. कार्यकर्ताओं एवं समाज को एकता व सद्भाव का पाठ पढाने वाले नेताओं मे ही आपसी फूट है. पार्टी पर वंशवाद और टिकट वितरण में धाँधली के आरोप लगते रहे हैं.
वास्तव में चुनावों के पूर्व बाबू सिंह कुशवाहा को गले लगाकर तो भाजपा ने अपनी हार के लिये सिर्फ एक बहाना ढूँढा था अन्यथा पार्टी ने अपनी हार की पटकथा पहले ही लिख दी थी.
सत्य यह है भाजपा अब नेताओं की पार्टी बन चुकी है, अब वह कैडर और कार्यकर्ताओं की पार्टी नहीं रही. नेताओं के भाषण और कृति में बडा फर्क हो चुका है. कार्यकर्ताओं एवं समाज को एकता व सद्भाव का पाठ पढाने वाले नेताओं मे ही आपसी फूट है. पार्टी पर वंशवाद और टिकट वितरण में धाँधली के आरोप लगते रहे हैं.
आज पार्टी के किसी भी कार्यकर्ता को यह विश्वास नहीं है कि जमीन पर मेहनत करने से उसकी तरक्की हो सकती है, जोडतोड कर सरकार बनाने वाली यह पार्टी अपने कार्यकर्ताओं से जोडतोड की अपेक्षा ही रखती है. पार्टी में आगे बढने का मार्ग सेवा एवं कर्तब्य भावना नहीं चापलूसी हो चुकी है.
6 comments:
बढ़िया विश्लेषण ||
har koi satta ka bhookha yahi har ki mukhya vajah.nice.
गाफिल जी हैं व्यस्त, चलो चलें चर्चा करें,
शुरू रात की गश्त, हस्त लगें शम-दस्यु कुछ ।
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
सोमवारीय चर्चा-मंच पर है |
charchamanch.blogspot.com
सही आकलन है आपका ! इसके अलावा एक कारण और भी है भाजपा की हार का कि इसमें सारे नेता वयोवृद्ध हैं जिनमें ज़मीन पर उतर कर आम आदमी के साथ उसकी कठनाइयों और संघर्ष से जुड़ कर ज़मीन पर काम करने की ना तो क्षमता है ना ही आग्रह ! वह सिर्फ नारेबाजों की पार्टी बन कर रह गयी है !
सही विश्लेषण किया है |
आशा
सटीक विश्लेषण।
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