यह एक अच्छी और ईमानदार टिप्पणी है.
- सबसे बढ़िया है शाकाहारी होना । हालाँकि एक डॉक्टर के रूप में मैं ऐसा नहीं कह सकता । see : http://veerubhai1947.blogspot.in/2012/03/blog-post_14.html
13 comments:
वह लेख जिस पर आदरणीय दराल साहब की यह टिप्प्पणी है वह आलेख एक शोध प्रबंध पर आधारित पूर्णरूप से वैज्ञानिक अनुसंधान और तथ्यों का निष्कर्ष है।
चिकित्सा विज्ञान स्वयं वैज्ञानिक अनुसंधानों और तात्विक निष्कर्षों का ही परिणाम होता है।
डॉक्टर दराल का आशय किसी भी प्रचार से बचना है।
वह लेख जिस पर आदरणीय दराल साहब की यह टिप्प्पणी है वह आलेख एक शोध प्रबंध पर आधारित पूर्णरूप से वैज्ञानिक अनुसंधान और तथ्यों का निष्कर्ष है।
चिकित्सा विज्ञान स्वयं वैज्ञानिक अनुसंधानों और तात्विक निष्कर्षों का ही परिणाम होता है।
डॉक्टर दराल का आशय किसी भी प्रचार से बचना है।
----वैग्यानिक तथ्य व शोध, अनुसंधान भी कभी पूर्णत: सही नहीं होते...इसीलिये वे कुछ समय बाद प्राय:उलट भी जाते हैं.....जन जन में प्रचलित दीर्घावधि ग्यान व अनुभव प्राय सही होता है....
---इस टिप्पणी ( डा दराल साहब की ) से पोस्ट बनाने वाले प्रसन्न न हों...डा दराल का यह व्यक्तिगत मत है...कोई प्रामाणिक चिकित्सकीय मत नही....
----- मैं तो यह बात डाक्टर के रूप में भी कह सकता हूं ...इसमे प्रचार जैसी कोई बात नहीं है...
Dr. Daral is correct. To be non- vegeterial is quiet natural and harmless, even spritually. Practically we see that non-vegeterials have more tender heart, are more caring and helping.
Zafar.
आज सुबह नेट खोला तो पाया , इस विषय पर गंभीर और गहन चर्चा चल रही है . हमारे कमेन्ट पर भी काफी चर्चा हुई है .
पहले तो मैं यह बताना चाहूँगा की मैं पूर्णतया शाकाहारी हूँ . लेकिन मेरा मानना है की मांसाहारी या शाकाहारी होना पूर्ण रूप से एक व्यक्ति विशेष की रुचि पर निर्भर करता है . हालाँकि इसमें परिवार , धर्म , प्रान्त और देश की रीति रिवाजें और धार्मिक सोच भी रोल प्ले करती है . किताबें पढ़कर या रिसर्च पेपर पढ़कर कोई यह निर्णय नहीं लेता की उसे क्या खाना है .
जहाँ तक बात है शोध और शोध पत्रों की -सब वैसा नहीं होता , जैसा दिखता है . अनुसंधान के परिणाम रोज बदलते हैं . उन पर आँख बांध कर विश्वास नहीं किया जा सकता . बहुत से पेपर्स विभिन्न कारणों से प्रभावित होते हैं . एक रिसर्च से कुछ पता चलता है , दूसरी रिसर्च बिलकुल उल्टा रिजल्ट निकाल कर दे देती है --किसकी मानेंगे आप .
अंतत: अपनी सोच पर ही निर्भर रहना चाहिए .
चिकित्सक की दृष्टि से देखें तो विभिन्न मांसाहार में सभी पौषक तत्त्व भरपूर मात्रा में होते हैं . बल्कि कुछ ऐसे भी तत्त्व होते हैं जो या तो शाकाहार में नहीं होते या कम होते हैं .
रोगों की उत्पत्ति अक्सर किसी एक फैक्टर पर निर्भर नहीं होती . हेल्थ एक मल्टीफेक्टोरल उत्पाद होता है . इसलिए यह नहीं कहा जा सकता की किसी एक के होने या न होने से केंसर या अन्य घातक रोग होना अनिवार्य है . ( कुछ विशेष स्थितियों को छोड़कर ) .
विश्व में अधिकांश लोग मांसाहार पर निर्भर हैं . फ़ूड चेन को भी देखें तो विश्व की ७ बिलियन आबादी को शाकाहार पर नहीं पाला जा सकता . आज यदि मांसाहार को पूर्ण रूप से निषिद्ध कर दिया जाए , तो कुछ ही दिनों में सिविल वार हो जायेगा, खादान्न की कमी से .
non-vegeterials have more tender heart, are more caring and helping.
---zafar --saahab ne yah baat kis shodh patr ya granth men padhee dekhee...
---- मुझे नहीं लगता मांसाहार में कुछ एसे तत्व होते हैं जो शाकाहार में नहीं होते .....निश्चय ही मांस भी मूलतः शाकाहार से ही बनता है... हां हानिकारक यौगिक निश्चय ही मांस में हो सकते हैं।
Respected Dr. Shyam Gupt Ji,
I have quoted it from my personal experience. I have a large number of friends and I can quote for some of them to be the best souls in this world and by a good chance all of them are non-veg. That's all.
My apologies for all if my comment has hurt any one.
Best Regards
Zafar.
Comments of Dr. T.S. Daral is the best and most logical.
विश्व में अधिकांश लोग मांसाहार पर निर्भर हैं . फ़ूड चेन को भी देखें तो विश्व की ७ बिलियन आबादी को शाकाहार पर नहीं पाला जा सकता . आज यदि मांसाहार को पूर्ण रूप से निषिद्ध कर दिया जाए , तो कुछ ही दिनों में सिविल वार हो जायेगा, खादान्न की कमी से .
विटामिन बी १२ सबसे ज्यादा मीट और फिश में पाया जाता है . जबकि शाकाहार में बस दूध में थोड़ा सा होता है . इसलिए शुद्ध शाकाहारी लोगों को इसकी कमी होने का खतरा रहता है . इसे पूरा करने के लिए फोर्टीफाइड फूड्स का सहारा लेना पड़ता है जैसे ब्रेड . इसी तरह विटामिन ऐ सबसे ज्यादा कॉड लीवर ऑयल में मिलता है . शाकाहार में पीले फल और सब्जियों में मिलता है लेकिन कम .
अंतत : आहार का संतुलित होना ज्यादा ज़रूरी है जिसमे सभी तत्त्व उचित मात्रा में होने चाहिए.
विटामिन बी १२ एक बैकटेरिया जनित तत्व है। यह रक्त बनाने में सहायक है, जो बहुत ही थोडी मात्रा में शरीर को चाहिए। लगभग 3 माईक्रोग्राम से भी कम। यह दूध और ब्रेड के साथ साथ सभी खमीर उठा कर बनाए शाकाहारी पदार्थों से पाया जा सकता है। शरीर विटामिन बी १२ को संचित रखता है। उलट अगर भारी मात्रा में मांसादि पदार्थो से लिया जाय तो शरीर संचय करना बंद कर देता है ऐसी दशा में फिर हमेशा मांसादि या बाहरी सप्लीमेंट के अलावा कोई चारा नहीं रहता। इसलिए पर्याप्त मात्रा ही योग्य है जो शाकाहारी पदार्थों से भंडारण में रहती है।
इसी प्रकार पीले फलों और हरी सब्जियों से प्राप्त विटामिन ए भी आवश्यक मात्रा में लिया जाना चाहिए।
आहार में पोषण्मूल्यों का संतुलन नितांत ही आवश्यक है पर वह मांसाहार से ही संतुलित हो कोई आवश्यक नहीं है। आहार संतुलन की दृष्टि से मांसाहार में शाकाहार का संयोजन 80% जरूरी है, जबकि शाकाहार में मांसाहार की आवश्यकता 0% भी नहीं।
निरामिष: रक्त निर्माण के लिये आवश्यक है विटामिन बी12
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