गुल्लक (कहानी) -विकेश निझावन
-ममी! इस बार कितने दिन के लिये आई हो? शिप्रा ने आईने पर से नज़र हटाते हुए मेरी ओर देखते हुए पूछा तो मैं खिलखिला कर हँस दी। शिप्रा को बाँहों में भरते हुए मैंने कहा- मेरी बेटी जब तक चाहेगी मैं उसके पास रह लूँगी। -अगर मैं वापिस ही न जाने दूँ...?
-तो हम नहीं जाएँगे।
-सच कह रही हो ममी?
-क्या हम अपनी बेटी से झूठ बोलेंगे?
-आई लव यू ममी! आई रियली लव यू! शिप्रा ने मेरे दाएँ गाल पर किस किया और मेरी बाँहों का घेरा तोड़ते हुए बाहर को भाग गई।
शिप्रा के इस निश्छल स्नेह को मैं समझ पा रही थी। यकीनन मेरे प्यार के लिए वह अतृप्त है। इस पूरे साल के बीच मैं बहुत ही कम आ पायी हूँ। सरकारी नौकरी में कितना काम है कितने बन्धन हैं -इन बातों को शिप्रा क्या समझे। उसकी यह उम्र भी तो नहीं है ये सब समझने की। लेकिन इस बार अपनी इस लम्बी छुट्टी के बीच मैं उसे पूरी तरह से अतृप्त कर ही दूँगी। अपना पिछला एकाकीपन भी भूल जाएगी वह।
मैं तो अपनी छुट्टियों का भूली ही चली जा रही थी। वर्मा साहब ने रजिस्टर पर नज़र दौड़ाते हुए मुझे कनखियों से देखते हुए कहा था- मिसेज श्रीवास्तवा क्या इस बार श्रीवास्तव साहब से झगड़ा करके आयी हैं?
-क्या मतलब? मैं चौंकी थी।
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3 comments:
achchhi prastuti
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