Thursday, April 18, 2013

हेतम खां का किलाःजमींदोज होता गौरवशाली

 भाई HBFI के सदस्य हैं . उनका एक ईमेल मिला . जिसमें उनके लेख के लिंक्स  थे. हमने उन्हें देखा तो दिल खुश हो गया . आप भी देखें .

Afsar Khan
11:11 PM (9 hours ago)
to Amalendume1SushmaAA&Maalokanshaamadmi1aamiraamir1981AanchalAarsiaayushabAbadAbdulAbdullahabdusabhadarshanabhadarshanabhaysingh_008abhiAbhijeetABHISHEKAbhishek

1- हेतम खां का किलाःजमींदोज होता गौरवशाली

main gate

खण्डहर सिर्फ खण्डहर नहीं होते
बेशकीमती खजाना छुपाये रहते हैं अपने दिलों में
चुप रहते हैं तो सदियों तक चुप रहते हैं
पर जब चुप्पी टूटती है तो
कई नालन्दा, कई तक्षशिला जीवित हो उठते हैं।
इतिहास और कुछ नहीं, समाजों व सभ्यताओं की स्मृति है। हम सभ्यताओं के बीते हुए समय को साक्षात देख सकते हैं, छू सकते हैं, उसमें सशरीर प्रवेश कर सकते हैं। सभ्यताओं की ये स्मृतियां सुरक्षित और प्रत्यक्ष रूप में उसके भग्नावशेषों में रहती हैं। खण्डहर, किले, पुराने नगर, और बर्तन, आभूषण, कलाकृतियां सब एक बीत चुके समय में होते हैं। इतिहास को जानने व समझने के लिए इनको सुरक्षित रखना बेहद जरूरी है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी से 55 किमी0 पूरब की तरफ महाईच परगना के धानापुर ब्लाक में स्थित हेतमपुर चन्दौली जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी0 दूरी पर है। चन्दौली जनपद में अनेक प्रकार के ऐतिहासिक व प्राकृतिक सम्पदायें मौजूद हैं। इसी में एक है हेतम खां का किला।
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2- कहां गुम हो गईं बैलगाडियां

By  on April 5, 2013

Bail
होर्रे…. होर, आवा राजा बायें दबा के। ना होर ना। शाबाश… चला झार के। बाह रे बायां… बंगड़ई नाही रे। अरे… अरे देही घुमा के सोटा। जीआ हमार लाल, खट ला; खट ला आज से खोराक बढ़ी। आज जो पचास से उपर हैं वो जानते हैं कि बैलगाड़ी हांकना और घोड़े की लगाम थामने में वही अन्तर था जो आज कार व बस को चलाने में है। यही नहीं चूंकि उनके अन्दर भी आत्मा थी, अतः इस दौरान उनसे उपरोक्त संवाद भी करने में कामयाब थे। चढ़ाई, ढ़लान व मोड पर महज बागडोर से नहीं बल्कि संवाद से भी गाइड किये जाते थे बैल। इन पर साहित्यकारों व कवियों ने भी खूब कलम चलाया है
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3- गुलाबों का शहर गाजीपुर


एम. अफसर खां सागर
पावन व पवित्र गंगा नदी के तट पर बसा गाजीपुर गंगा-जमुनी तहजीब को समेटे उत्तर प्रदेश में अपना अलग पहचान रखता है। ऐतिहासिक, सामाजिक, राजनैतिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक व व्यावसायिक नजरिये से यह शहर किसी पहचान का मोहताज नहीं। इस शहर का गुलाब, नील व अफीम विश्व प्रसिद्ध है। तारीख गवाह है कि धर्म के नाम पर यहां कभी दंगा-फसाद नहीं हुआ। ग़ाजियों कर शहर गाजीपुर पूरे भारत में अपनी बहादुरी के लिए प्राचीन काल से ही जाना जाता है। चीनी यात्री हवेनसांग ने अपने ‘यात्रा-वृतान्त’ में गाजीपुर को चिन-चू यानि बहादुरों का देश बताया है। वीरता का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र भी गाजीपुर के चैड़े सीने पर टंका चम-चमा रहा है।
गाजीपुर की धरती की टोकरी इतिहास के विभिन्न रंग के फूलों से भरा पड़ा है। वैदिक युग से आधुनिक युग के अनेकों ऐतिहासिक साक्ष्य गाजीपुर में बिखरे पड़े हैं। ऐसा माना जाता है कि महान संत महर्षि गाधि के नाम पर इस शहर का नाम पड़ा। जबकि दूसरा तथ्य है कि अमीर सैयद मसउद बिन जलालुददीन के मुल्कुस्सादात ग़ाजी उपाधि धारण करने के बाद गाजीपुर नाम पड़ा। इस बात का जिक्र अंग्रेज इतिहासकार विल्टन ओल्ढ़म ने अपनी पुस्तक ‘मेमायर्ज आफ गाजीपुर’ में लिखा है कि ‘‘गाजीपुर का नाम अमीर सैयद मसउद बिन जलालुद्दीन के ‘मुल्कुस्सादात गाजी’ उपाधि को चिरस्मरणीय रखने के लिए सन् 1330 ई0 में गाजीपुर नगर की बुनियाद रखी।’ इतिहासकार डा0 अवध नारायण सिंह ने अपनी पुस्तक ‘गाजीपुर जनपद का इतिहास की दृष्टि में’ लिखा है  कि ‘‘सन् 1330 ई0 में सैयद मसउद ने राजा मानधता अैर उसके भतीजे को युद्ध में पराजित किया और उस वर्ष वर्तमान शहर की स्थापना की। प्रसन्न होकर बादशाह फिरोज शाह ने उसे ‘मुल्कुस्सादात गाजी’ की उपाधि प्रदान किया और जिसके नाम पर शहर का नाम पड़ा। गाजी के माने बहादुर होता है। 

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