@ जनाब वकील साहब अख़तर ख़ान अकेला ! मैं चाहूं भी तो आपसे दूर जा नहीं सकता। आजकल मैं आप लोगों को पढ़ता रहता हूं। मैं अपनी वापसी की रूपरेखा बना ही नहीं पा रहा हूं और इसीलिए वापस भी नहीं लौट पा रहा हूं। दुश्मन तो मेरा कोई है नहीं, हां कुछ विरोधी ज़रूर हैं। मैंने अपने नव अवतरण का ख़ाका बनाने की ज़िम्मेदारी उन्हीं लोगों पर डाल दी है। जब वे लोग मुझे अपने सुझाव दे देंगे, तभी मैं अपनी वापसी का ऐलान कर दूंगा। मैंने उनसे कहा है कि
आप मेरे नव अवतरण की रूपरेखा बना दें आपकी पोस्ट को मैंने दोबारा फिर पढ़ा तो मेरी नज़र आपके इस वाक्य पर अटक गई : आप ऐसे ही करते रहे तो मेरी दुकान बंद हो जाएगी और मैं बहुत सुखी इंसान हो जाऊंगाए क्योंकि मेरा विरोध अनवर जमाल से नही उन बातों से है जिनका विरोध आपने मेरे ब्लॉग पर देखाए मेरी मौत एक सुखद घटना होगी और आपका नव अवतरण उससे भी सुखद।
इसमें कुछ बिन्दु हैं , जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए 1. मेरी दुकान बंद हो जाएगी। 2. मैं सुखी इंसान हो जाऊंगा। 3. मेरा विरोध अनवर जमाल से नहीं है। 4. मेरी मौत एक सुखद घटना होगी। 5. आपका नव अवतरण उससे भी ज़्यादा सुखद होगा।
जब इन तथ्यों पर मैं ईमानदारी से सोचता हूं तो मैं खुद चाहता हूं कि आप एक सुखी इंसान हो जाएं लेकिन मैं यह नहीं चाहता कि आपके ब्लॉग की मौत हो जाए। आप अच्छा लिखते हैं और मैं आपको पढ़ता हूं। आपने मेरी जायज़ बातों का भी विरोध किया, इसलिए मैंने आपकी बात को गंभीरता से नहीं लिया और उसका नतीजा यह हुआ कि जहां आप सही थे, उसे भी मैंने नज़रअंदाज़ कर दिया। यह मेरी ग़लती थी, जिसे कि मैंने आपकी सलाह के मुताबिक़ सुधार लिया है। आपने मेरे नव अवतरण के प्रति भी अच्छी आशा जताई है और मैं खुद भी यही चाहता हूं कि मेरी वजह से आपमें से किसी को कोई कष्ट न पहुंचे। मेरे नव अवतरण की आउट लाइंस क्या होंगी ? यह मैं अभी तक तय नहीं कर पा रहा हूं। इसलिए मैं चाहता हूं कि आप ही मेरे नव अवतरण की रूपरेखा तैयार कर दीजिए और मैं उसे फ़ॉलो कर लूं। मेरे नव अवतरण की भूमिका तैयार करना खुद मेरे लिए जिन कारणों से मुश्किल हो रहा है, वे प्रश्न आपको भी परेशान करेंगे लेकिन मुझे उम्मीद है कि आपकी प्रबुद्ध मंडली उनका कुछ न कुछ हल निकालने में ज़रूर कामयाब होगी। जो चीज़ मुझे इस वर्चुअल दुनिया में लाई है वह है ईश्वर, धर्म और धार्मिक महापुरूषों का मज़ाक़ बना लेना। मैं इसे पसंद नहीं करता कि कोई भी व्यक्ति ऐसा करे। इनमें से कुछ लोग रंजिशन ऐसा करते हैं और ज़्यादातर नादानी की वजह से। आज भी श्रीरामचंद्र जी , श्रीकृष्ण जी और शिवजी के बारे में ग़लत बातें लिखी जा रही हैं। मुझे कोई एक भी हिंदू कहलाने वाला भाई ऐसा नज़र नहीं आया जो कि उन्हें इन महापुरूषों की सच्ची शान बता सकता। मैंने जब भी बताया तो मुझसे यह कहा गया कि आप एक मुसलमान हैं, आप हमारे मामलों में दख़ल न दें। 1. आप मुझे बताएं कि अगर हिंदू महापुरूषों और ऋषियों का अपमान कोई हिंदू करता है तो क्या मुझे मूकदर्शक बने रहना चाहिए ? 2. कुछ हिंदू भाई ऐसा लिखते रहते हैं कि कुरआन में अज्ञान की बातें हैं, अल्लाह को गणित नहीं आता, मांस खाना राक्षसों का काम है, औरतों के हक़ में इसलाम एक लानत है। इससे भी बढ़कर पैग़म्बर साहब की शान में ऐसी गुस्ताख़ी करते हैं, जिन्हें मैं लिख भी नहीं सकता। दर्जनों ब्लाग और साइटों पर तो मैं खुद अपील कर चुका हूं और ऐसे अड्डे सैकड़ों से ज़्यादा हैं। जब इस तरह की पोस्ट पर मैं हिंदी ब्लाग जगत के ‘मार्गदर्शकों‘ को वाह वाह करते देखता हूं तो पता चलता है कि अज्ञानता और सांप्रदायिकता किस किस के मन में कितनी गहरी बैठी हुई है ? ऐसी पोस्ट्स पर मेरी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए ?
3. मैं अपने देशवासियों में अनुशासनहीनता और पाखंड का आम रिवाज देख रहा हूं। एक आदमी खुद को मुसलमान कहता है और शराब का व्यापारी है। जब इसलाम में शराब हराम है तो कोई मुसलमान शराब का व्यापार कर ही कैसे सकता है ? कैसे कोई मुसलमान सूद ले सकता है ? कैसे कोई मुसलमान खुद को ऊंची जाति का घोषित कर सकता है जबकि इसलाम में न सूद है और न ही जातिगत ऊंचनीच ? ऐसा केवल इसलिए है कि इसलाम उनके जीवन में नहीं है बस केवल आस्था में है। चोरी, व्यभिचार, हत्या, बलवा और बहुत से जुर्म आज मुस्लिम समाज में आम हैं जबकि वे सभी इसलाम में हराम हैं। यही हाल हिंदू समाज का है कि हिंदू दर्शन सबसे ज़्यादा चोट ‘माया मोह‘ पर करता है और मैं देखता हूं कि हिंदू समाज में धार्मिक जुलूसों में रथों की रास पकड़ने से लेकर चंवर डुलाने तक हरेक पद की नीलामी होती है और पैसे के बल पर ‘माया के मालिक‘ इन पदों पर विराजमान होकर अपनी शान ऊंची करते हैं। दहेज भी ये लोग लेते हैं और कन्या भ्रूण हत्या भी केवल दहेज के डर से ही की जा रही है। जो सन्यासी इन्हें रोक सकते थे, उनके पास भी आज अरबों खरबों रूपये की संपत्ति जमा है। हिंदू बालाएं फ़ैशन और डांस के नाम पर अश्लीलता परोस रही हैं जबकि काम-वासना और अश्लीलता से उन्हें रूकने के लिए खुद उनका धर्म कहता है। मैं चाहता हूं कि हरेक नर नारी जिस सिद्धांत को अपनी आत्मा की गहराई से सत्य मानता हो, वह उस पर अवश्य चले वर्ना पाखंड रचाकर समाज में धर्म को बदनाम न करे। हिंदू हो या मुसलमान जब वे नशा करते हैं, दंगों में एक दूसरे का खून बहाते हैं तो उससे धर्म बदनाम होता है। जो लोग कम अक़्ल रखते हैं और धर्म के आधार पर लोगों को नहीं परखते बल्कि लोगों के कामों को ही धर्म समझते हैं वे धर्म का विरोध करने लगते हैं और दूसरों को भी धर्म के खि़लाफ़ बग़ावत के लिए उकसाते हैं जैसा कि पिछले दिनों एक वकील साहब ने किया। धर्म को बदनाम करने वाले पाखंडियों को धर्म पर चलने के लिए कहना ग़लत है क्या ? धर्म का विरोध करने वाले नास्तिकों को ईश्वर और धर्म की खिल्ली उड़ाने से कैसे रोका जाए ? इसी तरह के कुछ सवाल और भी हैं जो इनसे ही उपजते हैं। मैंने कभी हिंदू धर्म की निंदा नहीं की और हमेशा हिंदू महापुरूषों का आदर किया और उनका आदर करने की ही शिक्षा दी। मेरी सैकड़ों पोस्ट्स इस बात की गवाह हैं। मैं खुद को भी एक हिंदू ही मानता हूं लेकिन डिफ़रेंट और यूनिक टाइप का हिंदू। बहरहाल, अगर आप मुझे हिंदू नहीं मानते तो न मानें। मैं इस पर बहस नहीं करूंगा लेकिन मैं यह ज़रूर चाहूंगा कि आप उपरोक्त सवालों पर ग़ौर करके मेरे नव अवतरण की रूपरेखा बना दें ताकि मेरे शब्द आपके लिए किसी भी तरह कष्ट का कारण न बनें। मैं आपका आभारी रहूंगा। शुक्रिया ! http://ahsaskiparten-sameexa.blogspot.com/2011/03/blog-post_19.html?showComment=1300612412366#c5412010183540951113
आपने मेरे लिए जितने भी अच्छे अल्फ़ाज़ अदा किए हैं, मैं उनके लिए आपका शुक्रगुज़ार हूं और अपने रब से दुआ करता हूं कि वह मुझे आपके गुमान से बेहतर बनाए और आपको इल्मो इरफ़ान से मालामाल करे। आमीन , या रब्बल आलमीन !
bhaia jaan shukr he khudaa kaa ke aapne vaapsi ki jldi ummid jgayi he aapke drd ko hm smjh skte hen jo bhi trqqi krtaa he use rokne ke liyen kai bar aesaa hota he bchpan me daadaa daadi naana naani khaani sunaate the ke aek raaj kumaar kisi ke tilasm ko todne ke liyen gyaa to use hr baar khaa jaata thaa ke brmit krne vaali aavaaze aayengi draaya jaayegaa agar usen pichhe mudhkar dekha to voh fir ptthar ka ho jaayegaa or sidhaa chlaa to dushmnon ko khtm kar jit jaayegaa or fir apne paas to pyaar ki aesi tlvar or sbr ke sath khaamoshi kaa aesa bm he ke hm to bdhi bdhi ldaayi chutkiyon me jit skte he or aap ka virodh aapki uspthiti aapki pahchaan ka prichayak he or isi liyen bloging ki duniya me aapki phchan kisi ki mohtaaj nhin he to intizaar ki ghdiyaa ab hm khtm smjhenaa . akhtar khan akela kota rajsthan
19- दुनिया में सबसे ज्यादा शादियाँ करने वाला कौन है? इसका श्रेय भारत के ज़ियोना चाना को जाता है। मिजोरम के निवासी 64 वर्षीय जियोना चाना का परिवार 180 सदस्यों का है। उन्होंने 39 शादियाँ की हैं। इनके 94 बच्चे हैं, 14 पुत्रवधुएं और 33 नाती हैं। जियोना के पिता ने 50 शादियाँ की थीं। उसके घर में 100 से ज्यादा कमरे है और हर रोज भोजन में 30 मुर्गियाँ खर्च होती हैं। http://gyaankosh.blogspot.com/2011/07/blog-post_14.html
सबसे बड़े करेंसी नोट
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1946 में जारी इस नोट का मूल्य 100 क्विंटिलियन पेंगो था, जिससे दूसरे
विश्वयुद्ध ...
ल़डकियों में बढ़ती मर्दानगी
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नारी सशक्तिकरण के लिए प्राचीन भारत से ही एड़ी से लेकर चोटी तक का जोर
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म...
एक आईना हमारे आज के लिए
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*एक दौर था जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम को बदनाम किया गया — एक आईना हमारे आज के
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मुजफ्फरनगर का नाम विजयलक्ष्मी नगर हो
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उत्तर प्रदेश विधान परिषद में भाजपा एमएलसी और प्रदेश उपाध्यक्ष मोहित बेनीवाल
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आज अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस (Human Rights Day) है. पूरे
विश्व में 10 दिसंबर को इसे मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने
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गाँधी जी पूछ रहें हैं हमसे,
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रोटी,...
बचपन की यादें
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कल अपने भाई के मुख से कुछ पुरानी बातों कुछ पुरानी यादों को सुनकर मुझे बचपन
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट बेंच स्थापना संघर्ष समिति की बैठक कल
दिनाँक 4.1.2020 को बिजनौर में हुई, बैठक में सभी दलों के नेताओं ने एक सुर
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जो इंसान जिस स्वभाव का होता है उसका झुकाव उसी स्वभाव के लोगों की ओर होता
है। अच्छे लोग अपने जैसे लोगों की ओर ही जाते हैं और बुरे लोग अपने जैसे बुरे
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तुम जब भी उदास होते हो
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और उन ख़ूबसूरत पलों को
याद करती हूँ
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maulana sanaullah amritsari [Under Construction]
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सनाउल्लाह अमृतसारी ثناء اللہ امرتسری, Sanaullah Amritsari
मौलाना साना अल्लाह अमृतसरी (जन्म: 12 जून 1868 , मृत्यु 15 मार्च 1948)
प्रसिद्ध विद्वान थे जो अमृ...
परेशाँ रात सारी है ...... क़तील शिफाई
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* परेशाँ रात सारी है सितारों तुम तो सो जाओहमें ये रात भारी है सितारों तुम
तो सो जाओ तुम्हें क्या आज भी कोई अगर मिलने नहीं आयाये बाज़ी हमने हारी है
स...
कुछ तो है... (Kuch toh hai...)
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कुछ अंदर दबा हुआ सा है
चुभता है ठूंठ सा
अपनी आवाज को भी नहीं सुनता मैं
चीखता हूँ गूँज सा।
एक तरफ तन्हाइयों का शोर है
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रेडियो: एक सच्ची सखी
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रेडियो: एक सच्ची सखी
...........
यह कोई कोरी लिजलिजी भावुकता नही है और न ही यह देहात बनाम शहरी का कोई
संसाधनमूलक विमर्श की भूमिका है.यह रेडियो की यारी स...
वेरा पावलोवा की दो कविताएँ
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*"एल्बम फॉर द यंग (ऐंड ओल्ड)" नाम है वेरा पावलोवा के नए कविता संग्रह का.
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कविताओं का भ...
बेतरतीब - IV
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*१. गुजरी वो मेरे पास से लहराती हुई फ़िज़ा सी यूँ फिर भी हुई मुझको भला सांस
लेने में तकलीफ क्यों? *
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चलो नया एक रंग लगाएँ
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लाल गुलाबी नीले पीले,
रंगों से तो खेल चुके हैं,
इस होली नव पुष्प खिलाएँ,
चलो नया एक रंग लगाएँ ।
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स्नेह सरस से सना हो जो,
ऐसी होली खू...
सत्यमेव जयते ! ... (?): सफर 2015 से 2016 का...
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सत्यमेव जयते ! ... (?): सफर 2015 से 2016 का...: 2016 आ गया। यह साल कैसा
होगा, यह तो समय के गर्भ में हैं लेकिन हर कोई अपने अपने अंदाज में इसकी
व्याख्या करन...
अफ्रीकी फुटबॉलर इमानुअल ने अपनाया इस्लाम
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*मशहूर अफ्रीकी फुटबॉलर इमानुअल एडबेयर का मानना है कि ईसाइयों की तुलना में
आज मुसलमान ईसा मसीह की बातों को ज्यादा मानते हैं। ईसा मसीह को मानने का दावा
करन...
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वह एक ख़ामोश कज़रारी शाम
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वह एक ख़ामोश कज़रारी शाम थी जब किसी ने पीछे से कन्धे पर हाथ रखकर खनकती आवाज़
में पूछा था "मेरे साथ चलोगे बाबू!" और उसे बिना देखे मेरे मुँह से अनायास
निकला था...
आओ, सब मिलकर बस प्यार करें.
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“सफलता के सात आध्यात्मिक नियम”
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माँ बाप की अहमियत और फ़ज़ीलत
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इस्लाम में हुक़ूक़ुल ऐबाद की फ़ज़ीलत व अहमियत
इंसानी मुआशरे में सबसे ज़्यादा अहम रुक्न ख़ानदान है और ख़ानदान में सबसे ज़्यादा
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विदेश में ईनाम क्यों बांटता है बड़ा ब्लॉगर ?Nepal
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‘सरदार, आपके नॉर्थ एशिया में छपे इंटरव्यू पर ब्लॉगर्स बड़ा ताव खा रहे
हैं‘-जंगलायतन वाले ने आकर सांभा स्टाइल में अपने बॉस को ख़बर दी।
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वुजू से रहिए, तंदुरुस्त रहोगे
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शायद आपको जानकर हैरत हो कि वुजू स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद फायदेमंद और
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*ईसा मसीह परमेश्वर की ओर से लोगों को मार्ग दिखाने के लिए भेजे गए थे।
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एक वल्लरी, जो की हमारे दरवाजे के सामने फैली तथा दीवारों से चढ़ कर दरवाजे
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ब्लॉगर सेवा के दस साल पूरे होने के साथ ही चिट्ठाकारों को नई सौगातें मिलने
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बहुप्रतीक्षित...
3 comments:
@ जनाब वकील साहब अख़तर ख़ान अकेला ! मैं चाहूं भी तो आपसे दूर जा नहीं सकता। आजकल मैं आप लोगों को पढ़ता रहता हूं। मैं अपनी वापसी की रूपरेखा बना ही नहीं पा रहा हूं और इसीलिए वापस भी नहीं लौट पा रहा हूं। दुश्मन तो मेरा कोई है नहीं, हां कुछ विरोधी ज़रूर हैं। मैंने अपने नव अवतरण का ख़ाका बनाने की ज़िम्मेदारी उन्हीं लोगों पर डाल दी है। जब वे लोग मुझे अपने सुझाव दे देंगे, तभी मैं अपनी वापसी का ऐलान कर दूंगा। मैंने उनसे कहा है कि
आप मेरे नव अवतरण की रूपरेखा बना दें
आपकी पोस्ट को मैंने दोबारा फिर पढ़ा तो मेरी नज़र आपके इस वाक्य पर अटक गई :
आप ऐसे ही करते रहे तो मेरी दुकान बंद हो जाएगी और मैं बहुत सुखी इंसान हो जाऊंगाए क्योंकि मेरा विरोध अनवर जमाल से नही उन बातों से है जिनका विरोध आपने मेरे ब्लॉग पर देखाए मेरी मौत एक सुखद घटना होगी और आपका नव अवतरण उससे भी सुखद।
इसमें कुछ बिन्दु हैं , जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए
1. मेरी दुकान बंद हो जाएगी।
2. मैं सुखी इंसान हो जाऊंगा।
3. मेरा विरोध अनवर जमाल से नहीं है।
4. मेरी मौत एक सुखद घटना होगी।
5. आपका नव अवतरण उससे भी ज़्यादा सुखद होगा।
जब इन तथ्यों पर मैं ईमानदारी से सोचता हूं तो मैं खुद चाहता हूं कि आप एक सुखी इंसान हो जाएं लेकिन मैं यह नहीं चाहता कि आपके ब्लॉग की मौत हो जाए। आप अच्छा लिखते हैं और मैं आपको पढ़ता हूं। आपने मेरी जायज़ बातों का भी विरोध किया, इसलिए मैंने आपकी बात को गंभीरता से नहीं लिया और उसका नतीजा यह हुआ कि जहां आप सही थे, उसे भी मैंने नज़रअंदाज़ कर दिया। यह मेरी ग़लती थी, जिसे कि मैंने आपकी सलाह के मुताबिक़ सुधार लिया है।
आपने मेरे नव अवतरण के प्रति भी अच्छी आशा जताई है और मैं खुद भी यही चाहता हूं कि मेरी वजह से आपमें से किसी को कोई कष्ट न पहुंचे। मेरे नव अवतरण की आउट लाइंस क्या होंगी ?
यह मैं अभी तक तय नहीं कर पा रहा हूं। इसलिए मैं चाहता हूं कि आप ही मेरे नव अवतरण की रूपरेखा तैयार कर दीजिए और मैं उसे फ़ॉलो कर लूं।
मेरे नव अवतरण की भूमिका तैयार करना खुद मेरे लिए जिन कारणों से मुश्किल हो रहा है, वे प्रश्न आपको भी परेशान करेंगे लेकिन मुझे उम्मीद है कि आपकी प्रबुद्ध मंडली उनका कुछ न कुछ हल निकालने में ज़रूर कामयाब होगी।
जो चीज़ मुझे इस वर्चुअल दुनिया में लाई है वह है ईश्वर, धर्म और धार्मिक महापुरूषों का मज़ाक़ बना लेना।
मैं इसे पसंद नहीं करता कि कोई भी व्यक्ति ऐसा करे। इनमें से कुछ लोग रंजिशन ऐसा करते हैं और ज़्यादातर नादानी की वजह से। आज भी श्रीरामचंद्र जी , श्रीकृष्ण जी और शिवजी के बारे में ग़लत बातें लिखी जा रही हैं। मुझे कोई एक भी हिंदू कहलाने वाला भाई ऐसा नज़र नहीं आया जो कि उन्हें इन महापुरूषों की सच्ची शान बता सकता। मैंने जब भी बताया तो मुझसे यह कहा गया कि आप एक मुसलमान हैं, आप हमारे मामलों में दख़ल न दें।
1. आप मुझे बताएं कि अगर हिंदू महापुरूषों और ऋषियों का अपमान कोई हिंदू करता है तो क्या मुझे मूकदर्शक बने रहना चाहिए ?
2. कुछ हिंदू भाई ऐसा लिखते रहते हैं कि कुरआन में अज्ञान की बातें हैं, अल्लाह को गणित नहीं आता, मांस खाना राक्षसों का काम है, औरतों के हक़ में इसलाम एक लानत है। इससे भी बढ़कर पैग़म्बर साहब की शान में ऐसी गुस्ताख़ी करते हैं, जिन्हें मैं लिख भी नहीं सकता। दर्जनों ब्लाग और साइटों पर तो मैं खुद अपील कर चुका हूं और ऐसे अड्डे सैकड़ों से ज़्यादा हैं। जब इस तरह की पोस्ट पर मैं हिंदी ब्लाग जगत के ‘मार्गदर्शकों‘ को वाह वाह करते देखता हूं तो पता चलता है कि अज्ञानता और सांप्रदायिकता किस किस के मन में कितनी गहरी बैठी हुई है ?
ऐसी पोस्ट्स पर मेरी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए ?
3. मैं अपने देशवासियों में अनुशासनहीनता और पाखंड का आम रिवाज देख रहा हूं। एक आदमी खुद को मुसलमान कहता है और शराब का व्यापारी है। जब इसलाम में शराब हराम है तो कोई मुसलमान शराब का व्यापार कर ही कैसे सकता है ?
कैसे कोई मुसलमान सूद ले सकता है ?
कैसे कोई मुसलमान खुद को ऊंची जाति का घोषित कर सकता है जबकि इसलाम में न सूद है और न ही जातिगत ऊंचनीच ?
ऐसा केवल इसलिए है कि इसलाम उनके जीवन में नहीं है बस केवल आस्था में है। चोरी, व्यभिचार, हत्या, बलवा और बहुत से जुर्म आज मुस्लिम समाज में आम हैं जबकि वे सभी इसलाम में हराम हैं।
यही हाल हिंदू समाज का है कि हिंदू दर्शन सबसे ज़्यादा चोट ‘माया मोह‘ पर करता है और मैं देखता हूं कि हिंदू समाज में धार्मिक जुलूसों में रथों की रास पकड़ने से लेकर चंवर डुलाने तक हरेक पद की नीलामी होती है और पैसे के बल पर ‘माया के मालिक‘ इन पदों पर विराजमान होकर अपनी शान ऊंची करते हैं। दहेज भी ये लोग लेते हैं और कन्या भ्रूण हत्या भी केवल दहेज के डर से ही की जा रही है।
जो सन्यासी इन्हें रोक सकते थे, उनके पास भी आज अरबों खरबों रूपये की संपत्ति जमा है। हिंदू बालाएं फ़ैशन और डांस के नाम पर अश्लीलता परोस रही हैं जबकि काम-वासना और अश्लीलता से उन्हें रूकने के लिए खुद उनका धर्म कहता है।
मैं चाहता हूं कि हरेक नर नारी जिस सिद्धांत को अपनी आत्मा की गहराई से सत्य मानता हो, वह उस पर अवश्य चले वर्ना पाखंड रचाकर समाज में धर्म को बदनाम न करे।
हिंदू हो या मुसलमान जब वे नशा करते हैं, दंगों में एक दूसरे का खून बहाते हैं तो उससे धर्म बदनाम होता है। जो लोग कम अक़्ल रखते हैं और धर्म के आधार पर लोगों को नहीं परखते बल्कि लोगों के कामों को ही धर्म समझते हैं वे धर्म का विरोध करने लगते हैं और दूसरों को भी धर्म के खि़लाफ़ बग़ावत के लिए उकसाते हैं जैसा कि पिछले दिनों एक वकील साहब ने किया।
धर्म को बदनाम करने वाले पाखंडियों को धर्म पर चलने के लिए कहना ग़लत है क्या ?
धर्म का विरोध करने वाले नास्तिकों को ईश्वर और धर्म की खिल्ली उड़ाने से कैसे रोका जाए ?
इसी तरह के कुछ सवाल और भी हैं जो इनसे ही उपजते हैं।
मैंने कभी हिंदू धर्म की निंदा नहीं की और हमेशा हिंदू महापुरूषों का आदर किया और उनका आदर करने की ही शिक्षा दी। मेरी सैकड़ों पोस्ट्स इस बात की गवाह हैं। मैं खुद को भी एक हिंदू ही मानता हूं लेकिन डिफ़रेंट और यूनिक टाइप का हिंदू। बहरहाल, अगर आप मुझे हिंदू नहीं मानते तो न मानें। मैं इस पर बहस नहीं करूंगा लेकिन मैं यह ज़रूर चाहूंगा कि आप उपरोक्त सवालों पर ग़ौर करके मेरे नव अवतरण की रूपरेखा बना दें ताकि मेरे शब्द आपके लिए किसी भी तरह कष्ट का कारण न बनें।
मैं आपका आभारी रहूंगा।
शुक्रिया !
http://ahsaskiparten-sameexa.blogspot.com/2011/03/blog-post_19.html?showComment=1300612412366#c5412010183540951113
आपने मेरे लिए जितने भी अच्छे अल्फ़ाज़ अदा किए हैं, मैं उनके लिए आपका शुक्रगुज़ार हूं और अपने रब से दुआ करता हूं कि वह मुझे आपके गुमान से बेहतर बनाए और आपको इल्मो इरफ़ान से मालामाल करे।
आमीन , या रब्बल आलमीन !
bhaia jaan shukr he khudaa kaa ke aapne vaapsi ki jldi ummid jgayi he aapke drd ko hm smjh skte hen jo bhi trqqi krtaa he use rokne ke liyen kai bar aesaa hota he bchpan me daadaa daadi naana naani khaani sunaate the ke aek raaj kumaar kisi ke tilasm ko todne ke liyen gyaa to use hr baar khaa jaata thaa ke brmit krne vaali aavaaze aayengi draaya jaayegaa agar usen pichhe mudhkar dekha to voh fir ptthar ka ho jaayegaa or sidhaa chlaa to dushmnon ko khtm kar jit jaayegaa or fir apne paas to pyaar ki aesi tlvar or sbr ke sath khaamoshi kaa aesa bm he ke hm to bdhi bdhi ldaayi chutkiyon me jit skte he or aap ka virodh aapki uspthiti aapki pahchaan ka prichayak he or isi liyen bloging ki duniya me aapki phchan kisi ki mohtaaj nhin he to intizaar ki ghdiyaa ab hm khtm smjhenaa . akhtar khan akela kota rajsthan
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