Sunday, October 23, 2011

पाइये ग़लत धारणाओं से मुक्ति

 
पुस्‍तक '''इस्लामिक आंतकवाद का इतिहास' ' के लेखक स्वामी लक्ष्मीलक्ष्मीशंकराचार्य जी की पुस्‍तक के बारे में कल 'हमारी अन्‍जुमन' पर जानकारी डाली गयी थी, कि आपने इस किताब का स्‍वयं ही रद करके पुस्‍तक 'इस्लाम आतंक? या आदर्श ' में कुरआन में लिखीं जिहादी 24 आयतों को विस्‍तार से समझाया है कि इनमें अच्‍छा ही अच्‍छा है बुरा कुछ भी नहीं, सोचा यह जानकारी हिन्‍दू-मुस्लिम प्‍यार बढाने वाली है क्‍यूं ने इसमें कुछ बढोतरी करके पेश किया जाये जिससे वह भी देख सकें जो कल नहीं देख सके थे, मेरी नजर में तो मुसलमानों को आपने शर्मिन्‍दा कर दिया जो काम उनको करना था वह स्‍वामी जी न कर दिखाया, मैं अल्‍लाह से दुआ करता हूं अल्‍लाह इस नेक काम का उनको बदला दे, आमीन

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लेखक-स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य

laxmishankaracharya@yahoo.in

ए-१६०१,आवास विकास कॉलोनी,हंसपुरम,नौबस्ता,कानपुर-२०८०२१

इस्लाम आतंक? या आदर्श- यह पुस्तक का नाम है जो कानपुर के स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य जी ने लिखी है। इस पुस्तक में स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य ने इस्लाम के अपने अध्ययन को बखूबी पेश किया है।

स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य के साथ दिलचस्प वाकिया जुड़ा हुआ है। वे अपनी इस पुस्तक की भूमिका में लिखते हैं-
मेरे मन में यह गलत धारणा बन गई थी कि इतिहास में हिन्दु राजाओं और मुस्लिम बादशाहों के बीच जंग में हुई मारकाट तथा आज के दंगों और आतंकवाद का कारण इस्लाम है। मेरा दिमाग भ्रमित हो चुका था। इस भ्रमित दिमाग से हर आतंकवादी घटना मुझ इस्लाम से जुड़ती दिखाई देने लगी।
इस्लाम,इतिहास और आज की घटनाओं को जोड़ते हुए मैंने एक पुस्तक लिख डाली-'इस्लामिक आंतकवाद का इतिहास' जिसका अंग्रेजी में भी अनुवाद हुआ।

पुस्तक में स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य आगे लिखते हैं-

जब दुबारा से मैंने सबसे पहले मुहम्मद साहब की जीवनी पढ़ी। जीवनी पढऩे के बाद इसी नजरिए से जब मन की शुद्धता के साथ कुरआन मजीद शुरू से अंत तक पढ़ी,तो मुझो कुरआन मजीद के आयतों का सही मतलब और मकसद समझाने में आने लगा।
सत्य सामने आने के बाद मुझ अपनी भूल का अहसास हुआ कि मैं अनजाने में भ्रमित था और इस कारण ही मैंने अपनी उक्त किताब-'इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास' में आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ा है जिसका मुझो हार्दिक खेद है

==नमूना====

पैम्‍फलेट में लिखी 8 वें क्रम की आयत हैः

''हे 'ईमान' लाने वालो!......और 'काफिरों' को अपना मित्र मत बनाओ, अल्‍लाह से डरते रहो यदि तुम ईमान वाले हो'' सूरा 5, आयत 57

Swami Laxmi Sankaracharya:

यह आयत भी अधूरी दी गई है, आयत के बीच का अंश जान बूझकर छिपाने की शरारत की गई है, पूरी आयत है

'ऐ ईमान लाने वालो! जिन लोगों को तुमसे पहले किताबें दी गई थीं, उन को और काफिरों को जिन्‍होंने तुम्‍हारे धर्म को हंसी और खेल बना रखा है, मित्र न बनाओ और अल्‍लाह से डरते रहो यदि तुम ईमान वाले हो - कुरआन ,पारा6 , सूरा 5, आयत 57

आयत को पढने से साफ है कि काफ़िर कुरैश तथा उनके सहयोगी यहूदी और ईसाई जो मुसलमानों के धर्म की हंसी उडाया करते थे, उन को दोस्‍त न बनाने के लिये यह आयत आई, यह लडाई-झगडे के लिये उकसाने वाली या घृणा फैलाने वाली कहां से है ? इसके विपरीत पाठक स्‍वयं देखें कि पैम्‍फलेट में 'जिन्‍होंने तुम्‍हारे धर्म को हंसी और खेल बना रखा है' को जानबूझकर छिपा कर उसका मतलब पूरी तरह बदल देने की साजिश करने वाले क्‍या चाहते हैं ?

=======स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य ने अपनी पुस्तक में 

मौलाना को लेकर इस तरह के विचार व्यक्त किए हैं-
इस्लाम को नजदीक से ना जानने वाले भ्रमित लोगों को लगता है कि मुस्लिम मौलाना,गैर मुस्लिमों से घृणा करने वाले अत्यन्त कठोर लोग होते हैं। लेकिन बाद में जैसा कि मैंने देखा,जाना और उनके बारे में सुना,उससे मुझो इस सच्चाई का पता चला कि मौलाना कहे जाने वाले मुसलमान व्यवहार में सदाचारी होते हैं,अन्य धर्मों के धर्माचार्यों के लिए अपने मन में सम्मान रखते हैं। साथ ही वह मानवता के प्रति दयालु और सवेंदनशील होते हैं। उनमें सन्तों के सभी गुण मैंने देखे। इस्लाम के यह पण्डित आदर के योग्य हैं जो इस्लाम के सिद्धान्तों और नियमों का कठोरता से पालन करते हैं,गुणों का सम्मान करते हैं। वे अति सभ्य और मृदुभाषी होते हैं।
ऐसे मुस्लिम धर्माचार्यों के लिए भ्रमवश मैंने भी गलत धारणा बना रखी थी।

लक्ष्मीशंकराचार्य अपनी पुस्तक की भूमिका के अंत में लिखते हैं-

मैं अल्लाह से,पैगम्बर मुहम्मद सल्ललल्लाहु अलेह वसल्लम से और सभी मुस्लिम भाइयों से सार्वजनिक रूप से माफी मांगता हूं तथा अज्ञानता में लिखे व बोले शब्दों को वापस लेता हूं। सभी जनता से मेरी अपील है कि 'इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास' पुस्तक में जो लिखा है उसे शून्य समझों।

एक सौ दस पेजों की इस पुस्तक-इस्लाम आतंक? या आदर्श में शंकराचार्य ने खास तौर पर कुरआन की उन चौबीस आयतों का जिक्र किया है जिनके गलत मायने निकालकर इन्हें आतंकवाद से जोड़ा जाता है। उन्होंने इन चौबीस आयतों का अच्छा खुलासा करके यह साबित किया है कि किस साजिश के तहत इन आयतों को हिंसा के रूप में दुष्प्रचारित किया जा रहा है।

उन्होंने किताब में ना केवल इस्लाम से जुड़ी गलतफहमियों दूर करने की बेहतर कोशिश की है बल्कि इस्लाम को अच्छे अंदाज में पेश किया है।

अब तो स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य देश भर में घूम रहे हैं और लोगों की इस्लाम से जुड़ी गलतफहमियां दूर कर इस्लाम की सही तस्वीर लोगों के सामने पेश कर रहे हैं।

साभारः

'हमारी अन्‍जुमन'

3 comments:

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

आपकी यह उत्कृष्ट प्रविष्टि कल दिनांक 24-10-2011 के सोमवारीय चर्चामंच http://charchamanch.blogspot.com/ पर भी होगी। सूचनार्थ

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

संदर जानकारी,उत्क्रट पोस्ट..बधाई

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए....

Bharat Bhushan said...

अच्छा है कि कुछ लोगों में समझ लौटी है.

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