रांची शहर की शांति भंग करने की लगातार साजिश रची जा रही है और पुलिस प्रशासन साजिशकर्ताओं की नकेल कसने में आंशिक भूमिका ही निभा पा रही है. कल 10 अगस्त को असम और मयांमार की घटनाओं के विरोध में अल्पसंख्यकों की रैली निकली तो यह विरोध के जनतांत्रिक अधिकारों का उपयोग था. लेकिन रैली में शामिल कुछ लोग यदि दुकानों में लूटपाट और दूसरे संप्रदाय को भड़काने का काम करने लगे तो यह एक साजिश और शरारत थी.रांची शहर की शांति भंग करने की लगातार साजिश रची जा रही है और पुलिस प्रशासन साजिशकर्ताओं की नकेल कसने में आंशिक भूमिका ही निभा पा रही है. कल 10 अगस्त को असं और मयांमार की घटनाओं के विरोध में अल्पसंख्यकों की रैली निकली तो यह विरोध के जनतांत्रिक अधिकारों का उपयोग था. लेकिन रैली में शामिल कुछ लोग यदि दुकानों में लूटपाट और दूसरे संप्रदाय को भड़काने का काम करने लगे तो यह एक साजिश और शरारत थी. जाहिर है कि कुछ लोगों ने भीड़ में शामिल होकर उसे उपद्रवी बनाने की कोशिश की. दूसरे संप्रदाय के लोग भी मुकाबले के लिए सड़क पर आ गए. पुलिस ने स्थिति को संभाला. विधान सभा अध्यक्ष सीपी सिंह ने भी मौके पर स्वयं पहुंच कर लोगों को समझाया बुझाया और मामला शांत किया. लेकिन पुलिस भीड़ में छुपे साजिशकर्ताओं को चिन्हित नहीं कर पाई. हालांकि उस वक़्त यह संभव भी नहीं था. शांति बरक़रार रखना तात्कालिक ज़रुरत थी. लेकिन इतना तय है कि कुछ लोग लगातार शांति भंग करने की कोशिश कर रहे हैं. उनकी नकेल कसना ज़रूरी है.
अभी चार दिन पहले शहर की कुछ जगहों पर एक तालिबानी पोस्टर सात कर लड़कियों को जींस पहनने पर तेज़ाब फेंक देने की धमकी दी गयी थी. हालाँकि उस पोस्टर में तालिबान के अलावा नक्सली, आपराधिक और लोकल-बाहरी विभेद के स्वर भी आ रहे थे. पुलिस ने इसे कुछ शरारती तत्वों का काम माना था. लेकिन यदि शरारत का लक्ष्य दहशत फैलाना हो तो उसे हलके ढंग से नहीं लेना चाहिए. वह भी स्वाधीनता दिवस की पूर्व बेला में. हो सकता है इन साजिशों के पीछे कोई संगठन न हो और कुछ शरारती तत्व व्यक्तिगत स्तर पर विभिन्न तरीकों से यह साजिश रच रहे हों लेकिन ऐसी शरारतें तभी सूझती हैं जब पुलिस-प्रशासन की सतर्कता घटती है और उसकी क्षमता कमजोर दिखती है. इसलिए वो जो भी हों उन्हें सबक सिखाना ज़रूरी है.
--देवेंद्र गौतम
fact n figure: रांची की शांति भंग करने की साजिश:
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सच्चे ईमानदार तो बस वही लोग हैं कि जब (उनके सामने) ख़़ुदा का जि़क्र किया
जाता है तो उनके दिल हिल जाते हैं और जब उनके सामने उसकी आयतें पढ़ी जाती हैं
तो उनके इमान को और भी ज़्यादा कर देती हैं और वह लोग बस अपने परवरदिगार ही पर
भरोसा रखते हैं
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सूरए अनफ़ाल मदीना में नाजि़ल हुआ और इसमें पच्हत्तर (75) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
(ऐ रसूल) तुम से लोग...
3 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (12-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत सटीक और यथार्थ को बताता हुआ सार्थक लेख बहुत बधाई आपको /
मेरे ब्लॉग में आपका स्वागत है /चार महीने बाद फिर में आप सबके साथ हूँ /जरुर पधारिये /
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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