एक सांचे में ढाल रखा था.
हमने सबको संभाल रखा था.
एक सिक्का उछाल रखा था.
और अपना सवाल रखा था.
सबको हैरत में डाल रखा था.
उसने ऐसा कमाल रखा था.
कुछ बलाओं को टाल रखा था.
कुछ बलाओं को पाल रखा था.
हर किसी पर निगाह थी उसकी
उसने सबका ख़याल रखा था.
गीत के बोल ही नदारत थे
सुर सजाये थे, ताल रखा था.
उसके क़दमों में लडखडाहट थी
उसके घर में बवाल रखा था.
उसकी दहलीज़ की रवायत थी
हमने सर पर रुमाल रखा था.
साथ तुम ही निभा नहीं पाए
हमने रिश्ता बहाल रखा था.
-देवेंद्र गौतम
ग़ज़लगंगा.dg: हमने रिश्ता बहाल रखा था:
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और अपनी (क़ौम की) बेशौहर औरतों और अपने नेक बख़्त गुलामों और लौंडियों का
निकाह कर दिया करो अगर ये लोग मोहताज होंगे तो खुदा अपने फज़ल व (करम) से
उन्हें मालदार बना देगा और ख़ुदा तो बड़ी गुनजाइश वाला वाकि़फ कार है
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और (ऐ रसूल) इमानदार औरतों से भी कह दो कि वह भी अपनी नज़रें नीची रखें और
अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने बनाव सिंगार (के मक़ामात) को (किसी
पर) ज़ा...
1 comments:
अछि प्रेना देती हुई पोस्ट है.
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