‘अल्लाह ने क़ुरआन उतारे जाने का मक़सद उसमें ग़ौर व फ़िक्र करना और उससे नसीहत हासिल करना बताया है ताकि इंसान अपने दुष्मन षैतान के बहकावे में आकर बुरे काम करने से बच सके। इसीलिए क़ुरआन में कहा गया है कि हमने क़ुरआन को नसीहत हासिल करने के लिए और याद करने के लिए आसान कर दिया है, क़ुरआन की अरबी बहुत आसान है। इसे बहुत कम मेहनत से सीखा जा सकता है। जिससे नमाज़ में रोज़ाना बार बार पढ़ा जाने वाला क़ुरआन समझ में आने लगता है और इससे फ़ायदा यह होता है कि समझ में आने के बाद नमाज़ और क़ुरआन में भी दिल लगता है और एक नमाज़ी एक बेहतरीन इंसान बन जाता है। बार बार अल्लाह के हुक्म को सुनने के बाद उसके लिए ज़ुल्म ज़्यादती करना, किसी का हक़ मारना और गुनाह करना मुमकिन नहीं रहता।‘उक्त विचार जनाब अब्दुर्रहीम नईमुददीन साहब ने व्यक्त किए। वह ‘अंडरस्टैंड क़ुरआन एकेडमी, हैदराबाद‘ की ओर से मुस्लिम डिग्री कॉलिज मुरादाबाद में ‘आओ क़ुरआन और नमाज़ समझें‘ षीर्शक के अंतर्गत एक 4 दिवसीय प्रषिक्षण शिविर में 190 लोगों के सामने बोल रहे थे। दिनांक 23 दिसंबर 2012 से दि. 26 दिसंबर तक चलने वाले इस षिविर का आयोजन डा. नदीम हाषमी की ओर से किया गया। इस शिविर में ख़ालिद एडवोकेट, गुफ़रान अहमद सिददीक़ी, ज़ाहिद साहब, जव्वाद अहमद, साजिद अहमद, इक़बाल ज़फ़र, ख़ालिद भाई, बरकतुल्लाह, डा. एम रहमान, मुमताज़ आदि ने अपना सक्रिय सहयोग दिया। कॉलिज के प्रिंसिपल जमील अहमद ख़ां व सीनियर असिस्टेंट मैनेजर अनवर आलम लतीफ़ी के उत्तम प्रबंध को सराहते हुए षिविर में भाग लेने वालों ने जल्दी ही इस प्रोग्राम को फिर से करवाने की तमन्ना ज़ाहिर की। इस अवसर पर तुलनात्मक धार्मिक अध्ययन के लिए विष्व विख्यात विद्वान सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ व रूहानी षैख़ सैयद हफ़ीज़ अहमद नक्षबंदी भी मौजूद थे। जनाब अब्दुर्रहीम नईमुददीन साहब ने नगर के बुद्धिजीवियों व विभिन्न स्कूलों के प्रधानाचार्यों के सामने एक अलग सत्र में अपने इस कोर्स की विषेशताओं पर एक विस्तृत लेक्चर देकर स्कूल पाठयक्रम में इसे पढ़ाए जाने की आवष्यकता पर बल दिया। उन्होंने बताया कि 3 खंडों में सिखाया जाने वाला यह कोर्स मदरसों के परंपरागत पाठ्यक्रम से अलग है और आधुनिक वैज्ञानिक षोध पर आधारित है। यह कोर्स विष्व की 18 भाशाओं में उपलब्ध है और दुनिया के बहुत से देशों में इसे स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है।
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