उसने चाहा था ख़ुदा हो जाए
सबकी नज़रों से जुदा हो जाए.
उसने चाहा था ख़ुदा हो जाए.
चीख उसके निजाम तक पहुंचे
वर्ना गूंगे की सदा हो जाए.
अपनी पहचान साथ रहती है
वक़्त कितना भी बुरा हो जाए.
थक चुके हैं तमाम चारागर
दर्द से कह दो दवा हो जाए.
उसके साए से दूर रहता हूं
क्या पता मुझसे खता हो जाए.
कुछ भला भी जरूर निकलेगा
जितना होना है बुरा हो जाए.
होश उसको कभी नहीं आता
जिसको दौलत का नशा हो जाए.
घर में बच्चा ही कहा जाएगा
चाहे जितना भी बड़ा हो जाए.
-देवेंद्र गौतम
उसने चाहा था ख़ुदा हो जाए.
चीख उसके निजाम तक पहुंचे
वर्ना गूंगे की सदा हो जाए.
अपनी पहचान साथ रहती है
वक़्त कितना भी बुरा हो जाए.
थक चुके हैं तमाम चारागर
दर्द से कह दो दवा हो जाए.
उसके साए से दूर रहता हूं
क्या पता मुझसे खता हो जाए.
कुछ भला भी जरूर निकलेगा
जितना होना है बुरा हो जाए.
होश उसको कभी नहीं आता
जिसको दौलत का नशा हो जाए.
घर में बच्चा ही कहा जाएगा
चाहे जितना भी बड़ा हो जाए.
-देवेंद्र गौतम
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3 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (14-12-2014) को "धैर्य रख मधुमास भी तो आस पास है" (चर्चा-1827) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर प्रविष्टि
nice.
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