न नौसबा की बात है, न ये किसी बयार की
ये दास्तान है नजर पे रौशनी के वार की
ये दास्तान है नजर पे रौशनी के वार की
किसी को चैन ही नहीं ये क्या अजीब दौर है
तमाम लोग लड़ रहे हैं जंग जीत-हार की
तमाम लोग लड़ रहे हैं जंग जीत-हार की
न मंजिलों की जुस्तजू, न हमसफर की आरजू
न काफिलों की चाहतें न गर्द की, गुबार की
न काफिलों की चाहतें न गर्द की, गुबार की
जहां तलक है दस्तरस वहीं तलक हैं हासिलें
न कोशिशों की बात है न बात अख्तियार की
न कोशिशों की बात है न बात अख्तियार की
हमारे पास तीरगी को चीर के चली किरन
तुम्हारे पास रौशनी तो है मगर उधार की
तुम्हारे पास रौशनी तो है मगर उधार की
मुसाफिरों के हौसले पे बर्फ फेरता रहा
कहानियां सुना-सुना के वो नदी की धार की
देवेंद्र गौतम 08860843164कहानियां सुना-सुना के वो नदी की धार की
ग़ज़लगंगा.dg: न काफिलों की चाहतें न गर्द की, गुबार की
3 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-07-2015) को "जब बारिश आए तो..." (चर्चा अंक- 2025) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया
umda kalaam.
shukriya.
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